सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अनवर की आत्महत्या के बाद इलेक्ट्रानिक मीडिया के काम काज के तौर तरीकों पर एक बार फिर उंगली उठने लगी है। एक टीवी न्यूज चैनल पर कुछ दिन पहले मणिपुर की एक लड़की ने खुर्शीद अनवर का नाम लिया और कहा कि अनवर ने उसके साथ बलात्कार किया। लड़की का आरोप है कि वो एक दिन रात में अनवर के घर पहुंची , यहां खुर्शीद ने कोल्ड ड्रिंक में नशीली दवा मिलाकर उसे पिला दिया। दवा की असर की वजह से वो वहीं सो गई। सुबह नींद खुलने पर उसे पता चला कि रात में उसके साथ बलात्कार किया गया है। कुछ दिन से इस मामले में सोशल मीडिया में भी काफी बहस चल रही थी। हालाकि पहले इस बहस में खुद खुर्शीद ने भी हिस्सा लिया और खुली चुनौती दी कि इस मामले की जांच हो ताकि सच सामने आए। आत्महत्या के बाद उनके यहां से मिले पत्र में उन्होंने कहा है कि लड़की के साथ सेक्स सहमति से हुआ था, ये रेप नहीं था। बहरहाल ये खबर जब मीडिया में चली तो शायद वो बर्दाश्त नहीं कर पाए और ऐसा रास्ता चुना जिसे हम तो सही नहीं मानते।
बहरहाल आत्महत्या की कहानी अब कई दिशा में बदल गई है। आत्महत्या की खबर मिलने के बाद कुछ लोगों ने एक न्यूज चैनल को गरियाना शुरू कर दिया और कहाकि उनकी वजह से एक सामाजिक कार्यकर्ता आत्महत्या करने को मजबूर हो गया। वजह बताई गई कि चैनल पर एक तरफा स्टोरी चल रही थी, जिस अंदाज में स्टोरी चल रही थी, उसे देखकर कोई भी व्यक्ति खुद को अपमानित महसूस करता और कोई भी कदम उठा सकता था। बहस शुरू हुई तो कहा गया कि सिर्फ टीआरपी के लिए चैनल ने इतना गंदा खेल खेला। इतना ही नहीं ये मसला काफी पुराना था लेकिन इसे एक साजिश के तहत कहानी को जानबूझ कर 16 दिसंबर को चलाया गया, क्योंकि 16 दिसंबर निर्भया की पहली बरसी थी, लिहाजा पूरे देश में लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। खुद खुर्शीद भी इस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा रहे। लेकिन रात में जब चैनल ने उन्हें ही कटघरे में खड़ा किया और रेपिस्ट बता दिया, तो खुर्शीद बुरी तरह हिल गए। मैं भी इसी मत का हूं कि टीआरपीबाज मीडिया ट्रायल खुर्शीद अनवर को इतना गहरा सदमा दे गया कि उन्होंने मौत को गले लगाना ही बेहतर समझा।
खुर्शीद अनवर ने आत्महत्या के पहले जो पत्र लिखा, उससे तो मेरी आंखे खुल गईं। एक तरफ उन पर गंभीर आरोप थे, जिसकी वजह से वो आत्महत्या करने जा रहे थे। दूसरी ओर उन्होंने इस पत्र में सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए अपनी इच्छा जताई कि मरने के बाद उन्हें दफनाया ना जाए, बल्कि उनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह मे किया जाए। ये अलग बात है कि उन्होंने इस पत्र में स्पष्ट कर दिया कि लड़की के साथ जो कुछ हुआ वो दोनों की सहमति से किया गया सेक्स था, उसे बलात्कार की श्रेणी में रखना गलत होगा। खुर्शीद ने ये भी खुलासा किया है कि उस दिन लड़की ने जरूरत से ज्यादा शराब पी ली थी। वो इतने नशे में थी कि कहीं जा नहीं सकती थी। इसलिए उसे अपने घर में रुकने को कहा। फिलहाल पुलिस ये तय नहीं कर पा रही है कि घर से बरामद तीन पन्नों की चिट्ठी सुसाइड नोट है या डायरी। यही वजह है कि पुलिस सीएफएसएल से चिट्ठी की जांच करा रही है।
महिलाओं का पूरा सम्मान करते हुए मैं कहना चाहता हूं कि जो कुछ दिखाई दे रहा है उससे कहीं हम महिलाओं और पुरुषों के बीच बड़ी खाई तो पैदा नहीं कर रहे हैं। लड़के लड़कियां पहले तो एक साथ घूमें फिरें, मौज मस्ती करें। फिर महीने दो महीने बाद आरोप लगा दें कि लड़के ने यौनशोषण किया ! मुझे तो ये बहुत ही खतरनाक ट्रेंड नजर आ रहा है। क्योंकि इस्लाम, हिंदू से लेकर हर तरह के धर्मों के कट्टरपंथियों से मोर्चा लेने वाला ये जांबाज, कवि, शायर, चिंतक और समाजसेवी खुर्शीद बस मीडिया ट्रायल से इतना सहम गया कि उसने दुनिया ही छोड़ जाने का फैसला कर लिया। सच कहूं तो ये बड़ा खतरनाक वक्त है। माफ कीजिएगा, पर मुझे कहना है कि जो लड़की पिछले कई महीनों से जाने कहां-कहां रहती रही, जाने क्या-क्या कहती-करती रही, अचानक एक दिन आकर कहती है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है, और मीडिया बिना कुछ जाने समझे उसके पीछे खड़ा हो गया। मेरा सवाल है कि यह लड़की तो निर्भया आंदोलन की अगुवा रही है, ऐसे में तो उसमें इतना साहस होना ही चाहिए था कि जिस दिन उसके साथ रेप हुआ, उसी दिन पुलिस के पास जाती और रिपोर्ट दर्ज कराती। पर क्या कहा जाए, आजकल का जो दौर है, जो कानून हैं, जो माहौल है, उसमें तो सिर्फ लड़की के कह भर देने से पुलिस आपको पकड़कर अंदर कर देगी और मीडिया आपको बलात्कारी घोषित कर देगा।
सोशल मीडिया को लेकर पहले भी देश में चर्चा होती रही है। कहा गया कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है। अभी हम इतने परिपक्व नहीं हुए हैं, इसलिए इतनी आजादी भी खतरनाक है। अब सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अनवर की मौत के बाद सोशल मीडिया और इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगा है। वरिष्ठ आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का कहना है कि मीडिया और सोशल मीडिया ट्रायल की जो प्रवृत्ति बनी है, वह गंभीर चिंता का मामला है। इस मामले में तो खुर्शीद के मित्रों और परिचितों का निष्कर्ष पर पहुंच जाना ज्यादा दुखद है। ये सिर्फ खुर्शीद का मामला नहीं है। मुझे लगता है कि समाज में फैसलों पर पहुंचने की हड़बड़ी है। लोगों में धैर्य नहीं है और भारी गुस्सा है। यहां कोई भी मामला आता है उसके बाद जिस तरह सोशल मीडिया एक राय बनाकर खड़ा हो जाता है, ये सिर्फ गलत ही नहीं बल्कि गंभीर भी है। इस पर सोशल मीडिया को न सिर्फ सोचने की जरूरत है, बल्कि देखना होगा कि कैसे इस पर रोक लगाई जा सकती है।
मैं खुर्शीद साहब से कभी नहीं मिला, लेकिन उनके बारे ज्यादातर लोगों की राय पढ़ता रहा हूं जो उन्हें नेक इंसान बताते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मनीषा पांडेय अपने फेसबुक वाल पर उनके बारे में लिखा है :
लड़कियों के सिर के पीछे एक आंख होती है और कोई उनकी पीठ भी देख रहा हो तो वो जान जाती हैं कि देखने वाले की नजर कैसी है। मर्द कितने भी शातिर क्यों न हों, औरत की नजर से नहीं बच सकते। हम भांप ही लेते हैं। और तिस पर अकेले रहने-जीने वाली लड़कियां तो और भी हजार गुना ज्यादा सावधान होती हैं। हमारे कान हमेशा चौकन्ने होते हैं। और अपनी उन तमाम चौकन्नी निगाहों और कानों से देखकर, भांपकर मैं कह रही हूं कि खुर्शीद संसार के उन कुछ बेहद चुनिंदा पुरुषों में से एक थे, जिनकी मौजूदगी में मैं खुद को बहुत सुरक्षित और निश्चिंत महसूस किया करती थी। और मैं ही नहीं, मुझे और उन्हें जानने वाली दर्जनों लड़कियां। मैं कई बार उनके घर में बिलकुल अकेले रुकी हूं। खाया-पिया, गप्पें मारी और भीतर वाले कमरे में जाकर सो गई। उनके घर में मेरा बिस्तर, सबसे अच्छी वाली तकिया, चादर सब फिक्स था। वो पिंक कलर की वादर कहीं भीतर आलमारी में रखी हो तो ढूंढकर लाते और कहते, ये रही तुम्हारी फेवरेट चादर।
मुझे कभी ये ख्याल भी नहीं आया कि मुझे कमरे का दरवाजा भी बंद करना चाहिए। इतनी निश्चिंत तो मैं किसी रिश्तेदार के घर भी नहीं हो सकती, जैसे उनके घर पर होती थी। जैसे पापा के साथ होती हूं। कमरा खुला है, लेकिन फिर भी सुबह दरवाजे पर नॉक करते। कहते, उठ जा बेटा, चाय बन गई। और मैं पांच मिनट और, दो मिनट और करती आधे घंटे तो और नींद मार ही लेती थी। जब भी मिलते तो सिर पर हाथ फेरते थे। बिटिया बुलाते थे। कभी नहीं लगा कि वो पुरुष हैं और मैं उनके लिए एक स्त्री हो सकती हूं। एक क्षण को भी नहीं। मेरे लिए वो दोस्त थे। पिता की तरह थे। मैं उनसे अपने पापा की तरह ही जिद कर सकती थी। मुझे अब भी यकीन नहीं और कभी नहीं होगा कि उन पर लगे आरोपों में कोई दम है। सब झूठ की फसीलें लगती हैं।
बहरहाल अब जो नुकसान होना था वो हो चुका है, पूरे मामले की जांच पुलिस कर रही है, सच्चाई भी सामने आ ही जाएगी। निर्भया बेटी के साथ जो कुछ हुआ उसकी तो जितनी भी निंदा हो वो कम है। लेकिन मेरा सवाल है कि इस घटना के बाद जिस तरह देश में महिलाँओं और पुरुषों ने एक साथ मिलकर एक सख्त कानून की वकालत की और संसद से कानून पास भी करा लिया, क्या खुर्शीद अनवर के मामले में भी उसी तरह महिलाएं और पुरुष एक साथ एक मंच पर आकर ये मांग करेंगे कि महज आरोप लगाने भर से आदमी पर इस तरह शिकंजा नहीं कसा जाना चाहिए ?
बहरहाल आत्महत्या की कहानी अब कई दिशा में बदल गई है। आत्महत्या की खबर मिलने के बाद कुछ लोगों ने एक न्यूज चैनल को गरियाना शुरू कर दिया और कहाकि उनकी वजह से एक सामाजिक कार्यकर्ता आत्महत्या करने को मजबूर हो गया। वजह बताई गई कि चैनल पर एक तरफा स्टोरी चल रही थी, जिस अंदाज में स्टोरी चल रही थी, उसे देखकर कोई भी व्यक्ति खुद को अपमानित महसूस करता और कोई भी कदम उठा सकता था। बहस शुरू हुई तो कहा गया कि सिर्फ टीआरपी के लिए चैनल ने इतना गंदा खेल खेला। इतना ही नहीं ये मसला काफी पुराना था लेकिन इसे एक साजिश के तहत कहानी को जानबूझ कर 16 दिसंबर को चलाया गया, क्योंकि 16 दिसंबर निर्भया की पहली बरसी थी, लिहाजा पूरे देश में लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। खुद खुर्शीद भी इस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा रहे। लेकिन रात में जब चैनल ने उन्हें ही कटघरे में खड़ा किया और रेपिस्ट बता दिया, तो खुर्शीद बुरी तरह हिल गए। मैं भी इसी मत का हूं कि टीआरपीबाज मीडिया ट्रायल खुर्शीद अनवर को इतना गहरा सदमा दे गया कि उन्होंने मौत को गले लगाना ही बेहतर समझा।
खुर्शीद अनवर ने आत्महत्या के पहले जो पत्र लिखा, उससे तो मेरी आंखे खुल गईं। एक तरफ उन पर गंभीर आरोप थे, जिसकी वजह से वो आत्महत्या करने जा रहे थे। दूसरी ओर उन्होंने इस पत्र में सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए अपनी इच्छा जताई कि मरने के बाद उन्हें दफनाया ना जाए, बल्कि उनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह मे किया जाए। ये अलग बात है कि उन्होंने इस पत्र में स्पष्ट कर दिया कि लड़की के साथ जो कुछ हुआ वो दोनों की सहमति से किया गया सेक्स था, उसे बलात्कार की श्रेणी में रखना गलत होगा। खुर्शीद ने ये भी खुलासा किया है कि उस दिन लड़की ने जरूरत से ज्यादा शराब पी ली थी। वो इतने नशे में थी कि कहीं जा नहीं सकती थी। इसलिए उसे अपने घर में रुकने को कहा। फिलहाल पुलिस ये तय नहीं कर पा रही है कि घर से बरामद तीन पन्नों की चिट्ठी सुसाइड नोट है या डायरी। यही वजह है कि पुलिस सीएफएसएल से चिट्ठी की जांच करा रही है।
महिलाओं का पूरा सम्मान करते हुए मैं कहना चाहता हूं कि जो कुछ दिखाई दे रहा है उससे कहीं हम महिलाओं और पुरुषों के बीच बड़ी खाई तो पैदा नहीं कर रहे हैं। लड़के लड़कियां पहले तो एक साथ घूमें फिरें, मौज मस्ती करें। फिर महीने दो महीने बाद आरोप लगा दें कि लड़के ने यौनशोषण किया ! मुझे तो ये बहुत ही खतरनाक ट्रेंड नजर आ रहा है। क्योंकि इस्लाम, हिंदू से लेकर हर तरह के धर्मों के कट्टरपंथियों से मोर्चा लेने वाला ये जांबाज, कवि, शायर, चिंतक और समाजसेवी खुर्शीद बस मीडिया ट्रायल से इतना सहम गया कि उसने दुनिया ही छोड़ जाने का फैसला कर लिया। सच कहूं तो ये बड़ा खतरनाक वक्त है। माफ कीजिएगा, पर मुझे कहना है कि जो लड़की पिछले कई महीनों से जाने कहां-कहां रहती रही, जाने क्या-क्या कहती-करती रही, अचानक एक दिन आकर कहती है कि उसके साथ बलात्कार हुआ है, और मीडिया बिना कुछ जाने समझे उसके पीछे खड़ा हो गया। मेरा सवाल है कि यह लड़की तो निर्भया आंदोलन की अगुवा रही है, ऐसे में तो उसमें इतना साहस होना ही चाहिए था कि जिस दिन उसके साथ रेप हुआ, उसी दिन पुलिस के पास जाती और रिपोर्ट दर्ज कराती। पर क्या कहा जाए, आजकल का जो दौर है, जो कानून हैं, जो माहौल है, उसमें तो सिर्फ लड़की के कह भर देने से पुलिस आपको पकड़कर अंदर कर देगी और मीडिया आपको बलात्कारी घोषित कर देगा।
सोशल मीडिया को लेकर पहले भी देश में चर्चा होती रही है। कहा गया कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है। अभी हम इतने परिपक्व नहीं हुए हैं, इसलिए इतनी आजादी भी खतरनाक है। अब सामाजिक कार्यकर्ता खुर्शीद अनवर की मौत के बाद सोशल मीडिया और इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगा है। वरिष्ठ आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का कहना है कि मीडिया और सोशल मीडिया ट्रायल की जो प्रवृत्ति बनी है, वह गंभीर चिंता का मामला है। इस मामले में तो खुर्शीद के मित्रों और परिचितों का निष्कर्ष पर पहुंच जाना ज्यादा दुखद है। ये सिर्फ खुर्शीद का मामला नहीं है। मुझे लगता है कि समाज में फैसलों पर पहुंचने की हड़बड़ी है। लोगों में धैर्य नहीं है और भारी गुस्सा है। यहां कोई भी मामला आता है उसके बाद जिस तरह सोशल मीडिया एक राय बनाकर खड़ा हो जाता है, ये सिर्फ गलत ही नहीं बल्कि गंभीर भी है। इस पर सोशल मीडिया को न सिर्फ सोचने की जरूरत है, बल्कि देखना होगा कि कैसे इस पर रोक लगाई जा सकती है।
मैं खुर्शीद साहब से कभी नहीं मिला, लेकिन उनके बारे ज्यादातर लोगों की राय पढ़ता रहा हूं जो उन्हें नेक इंसान बताते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार मनीषा पांडेय अपने फेसबुक वाल पर उनके बारे में लिखा है :
लड़कियों के सिर के पीछे एक आंख होती है और कोई उनकी पीठ भी देख रहा हो तो वो जान जाती हैं कि देखने वाले की नजर कैसी है। मर्द कितने भी शातिर क्यों न हों, औरत की नजर से नहीं बच सकते। हम भांप ही लेते हैं। और तिस पर अकेले रहने-जीने वाली लड़कियां तो और भी हजार गुना ज्यादा सावधान होती हैं। हमारे कान हमेशा चौकन्ने होते हैं। और अपनी उन तमाम चौकन्नी निगाहों और कानों से देखकर, भांपकर मैं कह रही हूं कि खुर्शीद संसार के उन कुछ बेहद चुनिंदा पुरुषों में से एक थे, जिनकी मौजूदगी में मैं खुद को बहुत सुरक्षित और निश्चिंत महसूस किया करती थी। और मैं ही नहीं, मुझे और उन्हें जानने वाली दर्जनों लड़कियां। मैं कई बार उनके घर में बिलकुल अकेले रुकी हूं। खाया-पिया, गप्पें मारी और भीतर वाले कमरे में जाकर सो गई। उनके घर में मेरा बिस्तर, सबसे अच्छी वाली तकिया, चादर सब फिक्स था। वो पिंक कलर की वादर कहीं भीतर आलमारी में रखी हो तो ढूंढकर लाते और कहते, ये रही तुम्हारी फेवरेट चादर।
मुझे कभी ये ख्याल भी नहीं आया कि मुझे कमरे का दरवाजा भी बंद करना चाहिए। इतनी निश्चिंत तो मैं किसी रिश्तेदार के घर भी नहीं हो सकती, जैसे उनके घर पर होती थी। जैसे पापा के साथ होती हूं। कमरा खुला है, लेकिन फिर भी सुबह दरवाजे पर नॉक करते। कहते, उठ जा बेटा, चाय बन गई। और मैं पांच मिनट और, दो मिनट और करती आधे घंटे तो और नींद मार ही लेती थी। जब भी मिलते तो सिर पर हाथ फेरते थे। बिटिया बुलाते थे। कभी नहीं लगा कि वो पुरुष हैं और मैं उनके लिए एक स्त्री हो सकती हूं। एक क्षण को भी नहीं। मेरे लिए वो दोस्त थे। पिता की तरह थे। मैं उनसे अपने पापा की तरह ही जिद कर सकती थी। मुझे अब भी यकीन नहीं और कभी नहीं होगा कि उन पर लगे आरोपों में कोई दम है। सब झूठ की फसीलें लगती हैं।
बहरहाल अब जो नुकसान होना था वो हो चुका है, पूरे मामले की जांच पुलिस कर रही है, सच्चाई भी सामने आ ही जाएगी। निर्भया बेटी के साथ जो कुछ हुआ उसकी तो जितनी भी निंदा हो वो कम है। लेकिन मेरा सवाल है कि इस घटना के बाद जिस तरह देश में महिलाँओं और पुरुषों ने एक साथ मिलकर एक सख्त कानून की वकालत की और संसद से कानून पास भी करा लिया, क्या खुर्शीद अनवर के मामले में भी उसी तरह महिलाएं और पुरुष एक साथ एक मंच पर आकर ये मांग करेंगे कि महज आरोप लगाने भर से आदमी पर इस तरह शिकंजा नहीं कसा जाना चाहिए ?
bahut khatarnak trend chal pada hai !
ReplyDeleteजी, खतरनाक ट्रैंड
Deleteकुछ नहीं सिर्फ इक खुर्शीद मरा है यारो !
ReplyDeleteबड़ा खुद्दार था, ऊपर से, गिरा है यारो !
बड़ा बदनाम था,कुछ खौफ नहीं खाता था
इन दिनों नशे में,सूरज से लड़ पड़ा यारो !
तुम्हें मरने नहीं देंगे, ये वचन देते हैं !
बड़ी शिद्दत से कोई, तीर लगा है यारो !
आज खुशियां मनाएंगे, तमाम कंगूरे !
आज दोबारा इक कबीर, मर गया यारो !
हज़ारों बरस में इक बार जनम लेता है !
अब कहाँ दूसरा,खुर्शीद मिलेगा यारो !
सच है, दुखद
Deleteक्या कहा जाए कुछ भी स्पष्ट नहीँ है, कई राज उनके साथ दफन हो गए, जो भी है अब वक्त ही बताएगा, फुरसत मिले तो मेरा ब्लाग जरुर पढिएगा। पता है, www.omjaijagdeesh.blogspot.com
ReplyDeleteये बात तो सही है..
Deleteबिल्कुल पढूंगा..
शुक्र है आपने आवाज़ तो उठाई...सुक्रिया..
ReplyDeleteऐसा क्यों..
Deleteमैं तो हर सामयिक विषय पर अपनी बेबाक राज जरूर रखता हूं..
महेन्द्र जी, बहुत सही लिखा है आपने। चूँकि मैं व्यक्तिगत तौर पर आपको नहीं जानता हूँ लेकिन आपकी प्रशंसा करनी होगी। you dare to do report that angle which must withstand the ongoing blind feminine movement. amitkumarsinha@sify.com
Deleteबहुत बहुत आभार..
Deleteआपने लेख पढा और सराहा, इससे लिखने की ताकत मिलती है...
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी
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