आज एक राज की बात बताता हूं, मैं सोनिया गांधी को नेता नहीं मानता था, मुझे लगता था कि उन्हें बतौर मृतक आश्रित कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी मिली है और अपना काम ईमानदारी से भले ना करें लेकिन मेहनत से तो करती हैं। लेकिन दो दिन से उनका मीडिया मैनेजमेंट देखकर हैरान हूं। इतना ही नहीं मेरी ये धारणा भी बदल गई है कि वो राजनीति नहीं जानती हैं, उनमें नेता की काबीलियत नहीं हैं। भाई वो ना सिर्फ राजनीति को समझती हैं, बल्कि अपनी ही सरकार और पार्टी से राजनीति करती भी हैं। अब देखिए ना प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इमेज एक ईमानदार प्रधानमंत्री की थी, आज पूरा देश उन्हें "चोर" कह रहा है, उनकी ईमानदारी सवालों के घेरे में है। रेलमंत्री पवन कुमार बंसल की चोरी पकड़े जाने से पूरी पार्टी कटघरे में है। कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने सीबीआई के काम में दखल देकर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी मोल ले ली है। अगर मैं ये कहूं कि ना सिर्फ कांग्रेस पार्टी बल्कि पूरी सरकार इस समय मुंह काला कराए घूम रही है तो गलत नहीं होगा ? इसके उलट सोनिया गांधी खुद ईमानदार और साफ-सुथरी बनी हुई हैं, वजह जानते हैं। कांग्रेस के कुछ बड़े नेता मीडिया को इस्तेमाल कर रहे हैं और कहा जा रहा है कि इस पूरे प्रकरण से सोनिया गांधी बहुत दुखी हैं, पार्टी की क्षवि खराब होने से वो प्रधानमंत्री से भी नाराज हैं और वो चाहती हैं को दोनों मंत्रियों का इस्तीफा लिया जाए, लेकिन प्रधानमंत्री चोर मंत्रियों को बचा रहे हैं। सोनिया जी क्यों भूल गईं कि पार्टी की क्षवि तो उनके दामाद राबर्ट वाड्रा की वजह से भी खराब हो रही थी, उस वक्त आपने नाराजगी नहीं जताई। हाहाहहा..यानि मीठा मीठा गप्प, कडुवा-कडुवा थू।
अब देखिए दो तीन दिन से मीडिया में एक चर्चा शुरू हुई है, वो है " नैतिकता " की। अच्छी बहस है, समय-समय पर होनी चाहिए, ये बहस सुनने में भी अच्छी भी लगती है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आज मीडिया को नैतिकता की अपेक्षा किससे है ? केंद्र सरकार के बेचारे दो गरीब मंत्रियों पवन बंसल और अश्वनी कुमार से, जिनकी चोरी पकड़ी जा चुकी है। इन दोनों का तो जीना मुहाल हो गया है, देश तो उन्हें चोर कह ही रहा है, परिवार में भी वो चैन से नहीं रह पा रहे हैं। पता चला हैं पूरे दिन उनके रिश्तेदारों के फोन आ रहे है, सब शोक जता रहे हैं। बेटियां ससुराल से घर आ गई हैं, उन्हें लगता है कि पापा जब मुश्किल में हों तो उस वक्त बेटी का घर में रहना जरूरी है, इससे पापा को ताकत मिलती है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि मीडिया को "नैतिकता" की अपेक्षा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से क्यों नहीं है ?सब को पता है कि कानून मंत्री अश्वनी कुमार की गल्ती सिर्फ इतनी है कि उन्होंने कोल ब्लाक आवंटन के मामले में सीबीआई की जांच रिपोर्ट को देखा और उसमें कुछ फेरबदल कराया। इस मामले का खुलासा हो जाने से बेचारे कानून मंत्री का सुप्रीम कोर्ट ने धुआं निकाल दिया है।
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कानून मंत्री सीबीआई की जांच रिपोर्ट या तकनीकी भाषा में कहें स्टेट्स रिपोर्ट आखिर क्यों चेक कर रहे थे ? अपने कानून मंत्री कभी कोयला मंत्री तो रहे नहीं है, फिर कोल ब्लाक आवंटन के मामले में उनका डायरेक्ट या इनडायरेक्ट कोई हाथ भी नहीं रहा है। सब जानते हैं कि उनकी कोशिश तो सिर्फ यही थी कि बेचारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुंह पर कोयले की कालिख ना पुते। क्योंकि कोल ब्लाक आवंटन के मामले में घोटाले का खुलासा विपक्ष ने नहीं बल्कि संवैधानिक संस्था सीएजी ने किया है। कहा गया कि कोल ब्लाक आवंटन में गडबड़ी के चलते देश को एक लाख 86 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। जिस समय ये कोल ब्लाक आवंटित किए गए, उस समय कोयला मंत्रालय अपने ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था। अगर सीबीआई की जांच में ये पाया जाता है कि कोल ब्लाक आवंटन में गडबड़ी हुई तो इसके लिए कानून मंत्री को तो कोई सजा होनी नहीं थी, अगर किसी को सजा मिलती भी तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मिल सकती है। इससे इतना तो साफ है कि कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने जो कुछ भी किया वो सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह का चेहरा काला होने से बचाने के लिए किया। ऐसे में हमें नैतिकता की अपेक्षा अश्वनी कुमार से ही क्यों होनी चाहिए, प्रधानमंत्री से क्यों नहीं होनी चाहिए ?
खैर ! सोनिया गांधी की बात पूरी कर लूं, फिर इस मुद्दे को आगे बढाता हूं। सोनिया जी आप से सीधी बात करना चाहता हूं। मेरा मानना है कि आप खुद को बुद्धिमान समझे, इसमें मुझे या देश के किसी भी नागरिक को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन आप हमें और देश को मूर्ख समझेंगी तो भला ये हम कैसे बर्दाश्त सकते हैं ? आपके कुछ खास चंपू नेताओं के जरिए बार-बार मीडिया में एक संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि आप इस पूरे प्रकरण से दुखी है, आप चाहती हैं कि दागी मंत्री यानि अश्वनी कुमार और पवन कुमार बंसल इस्तीफा दे दें। दो दिन से ये बात लगातार टीवी चैनलों के जरिए सुन रहा हूं। लेकिन आपके चाहने के बाद भी ये मंत्री इस्तीफा देने को तेयार नहीं है। इतना ही नहीं, ये संदेश भी देने की कोशिश की जा रही है कि मंत्रियों के इस्तीफे को लेकर आप में और प्रधानमंत्री में खट-पट हो गई है। मसलन आप तो जहां चोर मंत्रियों को हटाना चाहती हैं वहीं प्रधानमंत्री इन्हें बचाना चाहते हैं, इसीलिए अभी तक उन्होंने इस्तीफा नहीं लिया। सोनिया जी माफ कीजिएगा, पर एक बात बताएं, आप इस वक्त इटली में नहीं है, अभी आप इंडिया में है। सब को पता है कि अगर आप ने सिर्फ आंख भर दिखा दिया ना, तो छोटे-मोटे मंत्रियों की तो बात ही अलग है, देश के प्रधानमंत्री का पैजामा भी गीला हो जाएगा। और आप हैं कि देश को ये संदेश देना चाहती हैं कि आपकी कोई सुन नहीं रहा है। कमाल है आप चाहती हैं कि दागी मंत्री इस्तीफा दें, लेकिन प्रधानमंत्री उन्हें बचा रहे हैं। आपके ऐसे ही घटिया सलाहकारों की वजह से सरकार और पार्टी की छीछालेदर देश और दुनिया मे हो रही है।
चूंकि आज देश में नैतिकता पर सबसे ज्यादा बहस हो रही है, इसलिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र करना जरूरी है। प्रधानमंत्री जी एक बात बताइये, आपका मंत्रिमंडल चोरों की जमात है और आप उसके सरदार। क्या कभी भी आपको लगा कि इन चोरों की जमात से छुटकारा पाना चाहिए ? मैंने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं से पूछा कि आखिर सोनिया गांधी को मनमोहन सिंह में क्या दिखाई दिया जो उन्होंने इन्हें प्रधानमंत्री बना दिया। इसका जवाब किसी नेता के पास नहीं है, सब चुप हो जाते हैं। अब एक बात जो मेरी समझ में आ रही है, वो ये कि शरीर में सबसे महत्वपूर्ण हड्डी यानि रीढ की हड़्डी देश के प्रधानमंत्री में नहीं है, मुझे तो नहीं लगता कि इसके अलावा उनमें कुछ और खास क्या है। लेकिन सवाल ये कि अगर रीढ की हड्डी ना होना ही प्रधानमंत्री पद की योग्यता है तो मैं कांग्रेस के कई दिग्गजों को जानता हूं जिनके पास ये हड्डी नहीं है। खैर छोडिए ! अगर मैडम सोनिया का आशीर्वाद मिले तो पार्टी का कोई भी नेता ये हड्डी निकलवाने के लिए तैयार हो जाएगा। ऐसे में सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को ही क्यों चुना ? ये बात आज भी पार्टी में पहेली बनी हुई है। बहरहाल अब इनके बारे में जानने की ज्यादा जरूरत नहीं है, क्योंकि देश देख रहा है कि ये मन मोहन हैं, इसीलिए प्रधानमंत्री हैं।
कहते हैं ना जब दिन बुरा हो तो आदमी हाथी पर बैठा हो, फिर भी उसे कुत्ता काट लेता है। सरकार ऐसे ही मुश्किल में है अब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद ऐसा तोता बता दिया जो अपने मालिक की भाषा बोलता है। माननीय कोर्ट को बता दूं कि राजनीति में तोते और तोतेबाज ही कामयाब हैं। कांग्रेस ने सिर्फ सीबीआई को ही तोता नहीं बनाया, बल्कि जो भी उनके आस-पास है, सब तोता बनकर ही उनके नजदीक रह सकते हैं। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होने के बाद भी प्रधानमंत्री मजे में हैं, अश्वनी कुमार और पवन कुमार बंसल से इस्तीफा लेने की उनकी हैसियत नहीं है। किस मुंह से कहेंगे कि आप इस्तीफा दो, इन मंत्रियों से ज्यादा गंभीर आरोप तो उन पर खुद हैं। लेकिन टूजी के मामले में ए राजा को छोडिए, करुणानिधी की बेटी तक को जेल भेज दिया, लेकिन बेचारे करुणानिधि तोता बने रहे। सपा मुखिया सड़क पर खुलेआम सरकार को गाली देते हैं, पर संसद मे तोता बन जाते हैं। यही हाल बहन मायावती का है। बताते हैं कि सरकार ने सीबीआई को ना सिर्फ तोता बनाया है, बल्कि राजनेताओं को कैसे तोता बनाए रखना है ये गुर भी सिखा दिया है। इसीलिए मुलायम और माया सीबीआई के तोते बने रहते हैं। बेशर्मी की हद तो ये है कि कांग्रेसी इन्हीं तोतों की वजह से विपक्ष को चुनौती दे रहे हैं। कह रहे हैं कि अगर विपक्ष को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है तो वो सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्यों नहीं लाते ? हाहाहाहा, अब इसका जवाब भला कौन दे सकता है। इशारों में तो मुलायम सिंह यादव कह चुके हैं कि अगर सरकार के खिलाफ बात करो तो ये सीबीआई को हमारे पीछे लगा देते हैं। अब इससे ज्यादा भला कोई क्या कह सकता है।
मुझे लगता है कि कर्नाटक के चुनावी नतीजों का कांग्रेस को बेसब्री से इंतजार था। उसे पता था कि कमजोर, बेईमान, भ्रष्ट और ना जाने क्या क्या बताकर जो मीडिया केंद्र की सरकार को आज कटघरे में खड़ा कर रही है, चुनाव नतीजों के बाद यही मीडिया सरकार के गुण गाती नजर आएगी। मतगणना वाले दिन वैसा ही कुछ दिखाई भी दिया। न्यूज चैनलों का मुद्दा बदल चुका था, सभी चैनल चाहे हिंदी हों या अंग्रेजी सब ने अपना रुख कर्नाटक की ओर कर लिया। हालाकि इस बार चुनाव में क्या होने वाला है ये सबको चुनाव के पहले पता था। लेकिन चैनलों पर जोर-शोर से दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगी। लेकिन ये कोई नहीं बता रहा था कि कांग्रेस किसे हराकर वहां सरकार बनाने जा रही है, क्योंकि बीजेपी ने तो पहले ही हथियार डाल दिए थे। वो पूरे मन से चुनाव लड़ ही नहीं रही थी। बीजेपी पहले से ये मानती रही है कि कर्नाटक में बी एस यदुरप्पा की वजह से चुनाव में जीत हुई थी, अब वो नहीं हैं तो पार्टी की वहां कोई संभावना नहीं है। बहरहाल कांग्रेस का गुणगान कर रहे चैनलों ने देश की 135 करोड़ आबादी को पूरी तरह छोड़ दिया, सिर्फ कर्नाटक की 6.12 करोड़ आबादी वाले राज्य की खबर पर जमकर बैठ गए। अच्छा यहां कि 80 फीसदी आबादी ना हिंदी जानती है और ना अंग्रेजी, वो कन्नड समझते हैं। लेकिन इससे मीडिया को भला क्या लेना देना। सच तो ये है कि जैसे मीडिया को पता था कि वहां कांग्रेस अच्छा करने जा रही है, वैसे जो लोग राजनीति की एबीसीडी भी जानते हैं, वो भी जानते थे कि यदुरप्पा के बगैर बीजेपी वहां शून्य है। सही मायने में तो कर्नाटक में हार यदुरप्पा की हुई है। उन्हें ही लग रहा था कि चोरी चकारी के आरोप लगने के बाद भी वो कर्नाटक में मजबूत है, लेकिन वहां की जनता ने उन्हें बता दिया कि अब वो उनके नेता नहीं रहे। लेकिन मीडिया को क्या कहा जाए ? उस दिन उसके लिए रेलमंत्री पवन बंसल के भ्रष्टाचार का मामला कोई मुद्दा नहीं रहा, सीबीआई की जांच रिपोर्ट में हेराफेरी कराने वाले कानून मंत्री का मसला भी कोई मुद्दा नहीं रहा। पांच साल की बच्ची से बलात्कार के बाद सड़कों पर उतरी महिलाओं के साथ मारपीट का मसला भी कोई मुद्दा नहीं रह गया। तीनों गंभीर मामले में किसी को सजा नहीं मिल पाई है, लेकिन ये मुद्दे गायब हो गए।
बहरहाल प्रधानमंत्री जी अब बहुत ज्यादा हो गया। आपका, आपकी सरकार का और आपकी पार्टी का असली चेहरा जनता के बीच आ चुका है। आप देख रहे हैं ना कि कर्नाटक की जीत भी आपको इस मुश्किल से उबार नहीं पाई है। हालाकि देश का एजेंडा बदलने की कोशिश मीडिया ने की, लेकिन देखा कि जब तक दागी मंत्री सरकार में बने रहेंगे, देश की जनता कुछ और सुनने को तैयार नहीं है, लिहाजा सभी को उसी खबर पर वापस आना पड़ गया। वरना तो आप देखते कर्नाटक के एक से एक रंग आपको चैनलों पर दिखाई देते। अब आपको भी पता है कि कल तक तो सिर्फ बीजेपी कह रही थी कि आपकी सरकार आजाद भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार है, अब देश का बच्चा बच्चा कह रहा है कि ये सरकार भ्रष्ट है और आप वाकई कमजोर ही नहीं बीमार और अपंग प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं। अगर आप में थोड़ा भी स्वाभिमान बचा है तो प्लीज कुर्सी का मोह त्याग दीजिए और खुद अपनी सरकार का इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दीजिए। हो सकता है कि आपकी इस कार्रवाई से आपका पाप कुछ कम हो जाए।
zordar aur aakramk prastuti, bilkul sahi likha hai,असली चेहरा जनता के बीच आ चुका है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सटीक..
ReplyDeleteआभार
Deletesach bahut sharmnaak sthiti me hai ye sarkaar ..sateek vishleshan kiya hai aapne ....saadhuvaad
ReplyDeleteजी ये तो है, बहुत बहुत आभार
Deleteजी बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteऐसी संस्थाओं का स्वायत्त न न होना और भी कई दुष्परिणाम लायेगा ...ला ही रहा है ...
ReplyDeleteजी, ये तो सही है
Deleteआभार
बहुत प्रभावी प्रस्तुतीकरण ! सी बी आई को सरकारी चंगुल से आज़ाद होना ही चाहिए
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बहुत बहुत आभार
ReplyDeletesarthak aalekh .
ReplyDeleteआभार
Deleteराजनीति और उसका काला चेहरा
ReplyDeleteहर कोई नहीं समझ सकता कि परदे के पीछे क्या चल रहा है
सटीक लेख
साभार !
शुक्रिया
Deleteबहुत सर्त्क और सटीक लेख। काँग्रेस ने पिछले 9,10 साल मे ही देश को 100 साल पीछे धकेल दिया। इन बरसों मे सिवाय घोटालों के कुछ नहीं हुआ
ReplyDeleteसही कहा आपने
Deleteशुक्रिया
इस देश के बहुत कम चुनाव ऐसे हैं जो उन मुद्दों पर जीते गए हों जो जीतने का आधार होने चाहिए। यही हमारा दुर्भाग्य है,यही उनका सौभाग्य!
ReplyDeleteसही कहा आपने
Deleteआभार