लोकसभा का चुनाव कब होगा, ये अभी तय नहीं है, यूपीए में कौन से दल शामिल रहेंगे, ये भी तय नहीं है, एनडीए की मुख्य सहयोगी पार्टी जेडीयू का क्या रुख होगा, तय नहीं है। बात तीसरे मोर्चें की भी बहुत हो रही, इसमें कौन कौन शामिल होगा, जिम्मेदारी से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन मीडिया ने सरकार के भविष्य का फैसला सुना दिया। एक जाने माने न्यूज चैनल ने अपने सर्वे में साफ किया है कि इस बार यूपीए का प्रदर्शन निराशाजनक रहेगा, खासतौर पर कांग्रेस का प्रदर्शन तो और भी बुरा होगा। वहीं एनडीए और बीजेपी के प्रदर्शन को बेहतर तो बताया गया है, लेकिन ये भी कहा गया है कि बहुमत एनडीए को भी नहीं मिलेगा। हालाकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अभी प्रधानमंत्री पद के लिए किसी नेता का नाम आगे नहीं किया है, लेकिन मीडिया ने इस बात पर भी सर्वे कर लिया और कहाकि प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी 36 फीसदी से ज्यादा लोगों की पहली पसंद हैं, जबकि राहुल गांधी को महज 16 फीसदी लोग भी पसंद करते हैं। आईबीएन 7 के सर्वे में 65 फीसदी से ज्यादा लोग कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधे जिम्मेदार मानते हैं, मसलन मिस्टर क्लीन अब साफ सुथरे बिल्कुल नहीं रह गए। अच्छा मीडिया ने और विपक्ष यानि बीजेपी ने एक काम तो बढिया किया, कि उन्होंने यूपीए-2 के चार साल के कामकाज पर रिपोर्ड कार्ड पहले ही जारी कर दिया, वरना सरकार ने जो रिपोर्ट कार्ड पेश किया है, उसमें भी ईमानदारी नहीं दिखाई दे रही है।
अपनी बात शुरू करें, इसके पहले चैनलों के सर्वे पर एक नजर डाल लेते हैं। एबीपी न्यूज- नील्सन के सर्वे की माने तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 116 सीटों पर सिमट जाएगी, मतलब उसे 90 सीटों का नुकसान होगा। लेकिन इससे बीजेपी को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि कांग्रेस के इस नुकसान का फायदा छोटी और क्षेत्रिय पार्टियों को ज्यादा होगा। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार एनडीए को 27 सीटे ज्यादा मिलेगी, जबकि तीसरे मोर्चे की छोटी-छोटी पार्टियों को 68 से भी ज्यादा सीटों का फायदा होने वाला है। भाजपा अखिल भारतीय स्तर पर सबसे बडी पार्टी के रूप में उभरने वाली है। सर्वे के मुताबिक भाजपा को 137 मिल सकती है, तो कांग्रेस 206 सीटों से घट कर 116 पर आ गिरेगी। मतलब साफ है कि उसे 90 सीटों का नुकसान होने जा रहा है। अगर बीजपी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट करती है तो भाजपा की सीटे बढेगी। छोटी सी चर्चा यूपी की कर दें, अभी यूपी में कांग्रेस के पास 21 सीटें है, सर्वे बता रहा है कि अगले चुनाव में सिर्फ सात रह जाएंगी। सर्वे रिपोर्ट में एक दिलचस्प जानकारी है, पिछली लोकसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी, इस बार चुनाव में कांग्रेस को यहां से एक भी सीट नहीं मिलने वाली है। मतलब दमदार नेता कपिल सिबब्ल की भी कुर्सी गई।
दूसरा सर्वे मैं अपने चैनल आईबीएन 7 का बता दूं। IBN7 और GFK-mode ने देश के 12 शहरों में 2466 लोगों से पूछे यूपीए-2 के चार साल के कार्यकाल पर कुछ अहम सवाल। इसके लिए पहले लोगों से सरकार और उसके मुखिया से जुड़े सवाल पूछे गए। नतीजा बताऊं, देश में ऐसी नाराजगी है सरकार को लेकर जो इसके पहले किसी भी सरकार के खिलाफ नहीं देखी गई। मसलन 68 फीसदी लोग चाहते हैं कि इस सरकार को सत्ता में बने रहने का अब कोई हक नहीं है। और तो और मिस्टर क्लीन बोले तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 65 फीसदी लोग कोयला घोटाले के लिए सीधे जिम्मेदार मानते हैं। बड़ा बुरा वक्त है प्रधानमंत्री जी। इतना गंभीर आरोप इसके पहले किसी प्रधानमंत्री पर नहीं लगा। बोफोर्स वगैरह तो फिर भी ठीक था, कोयले की कालिख ने तो सच में सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आईबीएन 7 के सवाल पर जवाब सुन लीजिए। 71 फीसदी ने कहा भ्रष्टाचार बढ़ा है, 20 फीसदी ने कहा जस का तस, 8 फीसदी मानते हैं कि भ्रष्टाचार घटा है, धन्य हैं प्रभु, कुछ लोग ये मानते तो हैं कि भ्रष्टाचार कम हुआ है। मंहगाई के बारे में पूछे गए सवाल पर 51 फीसदी ने कहा महंगाई तो बढ़ी है, 43 फीसदी का कहना है पहले जैसी ही है, 5 फीसदी लोगों की नजर में हर चीज का दाम बढ़ा है। पूछा गया कि क्या कोयला घोटाले के लिए प्रधानमंत्री जिम्मेदार हैं ? भाई 65 फीसदी ने हां में सिर हिलाया, लेकिन 28 फीसदी लोग प्रधानमंत्री के साथ भी हैं, उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं। एक सवाल और हुआ कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय कोयला और टूजी घोटालों को दबा रहा है? यहां भी प्रधानमंत्री के खिलाफ ही जवाब आया। 64 फीसदी ने कहा हां, 25 फीसदी ने कहा नहीं,11 फीसदी का कहना है पता नहीं। आखिरी सवाल हुआ प्रधानमंत्री को लेकर, पूछा गया कि अगला प्रधानमंत्री कौन हो ? जवाब चौंकाने वाला रहा, 56 फीसदी ने कहा नरेंद्र मोदी जबकि सिर्फ 29 फीसदी का कहना है राहुल गांधी। जाहिर है झटका सिर्फ यूपीए सरकार को ही नहीं कांग्रेस के युवराज और प्रधानमंत्री पद के दावेदार के लिए भी है।
बहरहाल सर्वे तो कई और न्यूज चैनल और समाचार पत्रों ने भी किया है। कमोवेश इसी तरह के सवाल हैं और जवाब भी मिलते जुलते ही हैं। लेकिन अहम सवाल ये है कि आखिर अभी जब चुनाव की तारीख तय नहीं, गठबंधन की सूरत साफ नहीं, उम्मीदवार कौन होगा, ये पता नहीं, तो इस सर्वे की विश्वसनीयता भला क्या हो सकती है ? मैं तो एक और सवाल पूछना चाहता हूं कि आखिर मीडिया में हो रही इस बेमौसम बरसात की वजह क्या है। वैसे सच तो ये है कि किसी एक चैनल ने कुछ शुरू किया तो यहां प्रतियोगिता शुरू हो जाती है, कौन पहले सर्वे कर लेता है। सर्वे में क्या क्या बातें बता देता है। यही एक ऐसा मामला है कि यहां कोई पिछड़ना नहीं चाहता। बहरहाल अगर आप व्यक्तिगत रूप से मेरी राय जानना चाहें तो मैं इसे बेमतलब का काम समझता हूं। मैं तो ऐसे सर्वे को "राजनीति का आईपीएल" ही समझता हूं। मतलब बाहर से ये आपका खूब मनोरंजन करेगा, लेकिन इसके अंदर क्या है, इस बारे में विश्वास के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सच कहूं तो इस बात का जवाब किसी भी मीडिया संस्थान के पास नहीं होगा कि जब राजनीतिक दलों ने अभी कुछ भी तय ही नही किया है तो ऐसे सर्वे पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? ना अभी राहुल गांधी को कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित किया है और ना ही नरेन्द्र मोदी को बीजेपी ने। ऐसे मे इन दोनों को केंद्र में रखकर किया गया सर्वे कितना भरोसे मंद होगा, ये तो मीडिया से जुड़े जिम्मेदार लोग ही बता सकते हैं। खैर मीडिया संस्थानों को अगर ऐसे सर्वे से खुशी मिलती है तो हमें आपको भला क्यों तकलीफ होनी चाहिए। आप भी देखते रहिए राजनीति का आईपीएल।
वैसे बड़ी बात ये है कि सरकार पर विपक्ष का हमला तो होता रहता है, लेकिन आज सरकार के खिलाफ मीडिया जिस तरह हमलावर है। कम से कम ये तो सरकार के लिए खतरे की घंटी ही कही जाएगी। ऐसे में सवाल ये है कि माहौल के मुताबिक सरकार कुछ सबक ले भी रही है या नहीं ! मैं तो यही कहूंगा कि मीडिया भले गैरजिम्मेदारी के साथ पेश आ रही हो, लेकिन सरकार को उन मसलों पर गहराई से विचार करना ही होगा, जो मामले मीडिया की सुर्खियों में हैं। इतना तो तय है कि ये सरकार अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है, मंत्रियों की करतूतों से सरकार का चेहरा दागदार है। बहुत जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि आज पीएम के पद की गरिमा तार-तार हो चुकी है। इस पद की हैसियत एक घरेलू नौकर से ज्यादा की नहीं रह गई है। लगता ही नहीं मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं, पहली नजर में तो यही दिखाई देता है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री का काम दिया गया है, जिसे वो एक नौकरशाह की तरह करने की कोशिश भर कर रहे हैं। ना वो नेता हैं और न ही उनमें नेतृत्व का कोई गुण दिखाई दे रहा है।
वैसे सरकार के कामकाज पर उंगली उठाने का हक कम से कम आज मीडिया को तो नहीं रह गया है। देखा जा रहा है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनलों पर कुछ चुनिंदा लोगो के विचारों को थोपने की साजिश की जा रही है। एक तो ये " वरिष्ठ पत्रकार " का तमगा चैनल वाले ऐसे बांटते हैं कि पूछिए मत। सच कहूं तो ये पत्रकार कम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि ज्यादा लगते हैं। कोई कांग्रेस से जुड़ा है, तो कोई बीजेपी में आस्था रखता है। कुछ का तो छोटे मोटे राजनीतिक दलों से ही दाना-पानी चल रहा है। आज मीडिया में काफी अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल की जा रही है, सच कहूं तो पुराने लोग अब इस तकनीक के साथ चल नहीं पा रहे हैं, लिहाजा वो मजबूर हो जाते हैं नौकरी छोड़ने के लिए। अखबार या चैनल से नौकरी जाते ही वो बन जाते हैं वरिष्ठ पत्रकार। अच्छा इतने ज्यादा चैनल हो गए हैं कि उन्हें शाम की पंचायत के लिए राजनीतिक गेस्ट मिलते ही नहीं। ऐसे में मजबूरी हो जाती है कि कुछ पत्रकारों से ही काम चला लिया जाए। सच्चाई ये है कि चैनलों को अगर अच्छे गेस्ट मिल जाएं तो बेचारे "वरिष्ठ पत्रकार" को कोई पूछने वाला नहीं है।
अच्छा सम्मान किसे अच्छा नहीं लगता। चैनल के चौपाल में अगर एंकर उन्हें आठ-दस बार वरिष्ठ पत्रकार कह कर संबोधित करता है तो ये छोटी बात तो है नहीं। आपको नहीं पता होगा, लेकिन जान लीजिए जैसे नेता लोग टिकट पाने के लिेए अखबारों की कटिंग लगाकर आवेदन करते हैं, वैसे ही पत्रकार जी लोग भी "पद्मश्री" हासिल करने के लिेए इन पंचायतों की सीडी बनाकर नेताओं को सुनाते हैं, कहते हैं कि देखिए चुनाव के पहले से हम आपके बारे में कितनी बढ़िया-बढिया बातें करते रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार लोग अपने संस्थान में नौकरी पक्की करने के लिए ये "पद्मश्री" अखबार के मालिक को भी दिलाते रहते हैं। खैर मैं विषय से भटक रहा हूं, पर मेरा मानना है कि पत्रकारिता की पवित्रता को बनाए रखने के लिए पद्मम् सम्मान से पत्रकारिता की श्रेणी को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिया जाना चाहिए। इससे कम से कम कुछ हद तक सत्ता की दलाली पर रोक लग सकेगी। मैं पदम सम्मान हासिल किए हुए वरिष्ठ पत्रकारों को जब चैनलों की पंचायत में सुनता हूं तो मुझे उनकी सोच पर हैरानी होती है, फिर लगता है कि दोष इनका नहीं है, ये तो सिर्फ कर्ज उतार रहे हैं। लेकिन जिन्हें ये सम्मान अभी नहीं मिला है, वो तो इसे हासिल करने के लिए सारी मर्यादाएं तार-तार कर देते हैं। बहरहाल यूपीए की सरकार का क्या होगा ? ये तो भविष्य तय करेगा, लेकिन इतना तो सच है कि मीडिया ने सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है।
अभी कोई निर्णय लेना जल्दबाजी होगी ,, चुनाव को अभी 1 साल बाकी है ...
ReplyDeleteRecent post: जनता सबक सिखायेगी...
बिल्कुल सही कहा आपने
Deleteअभी जल्दबाजी होगी
क्या गज़ब की रिपोर्ट पेश की है आपने
ReplyDeleteजी शुक्रिया
Deleteसाब आपने रिपोर्ट तो बना दी पर दिल्ली अभी दूर है बहुत दूर है | जब तक अगले वर्ष चुनाव नहीं हो जाते तब तक कोई भी निष्कर्ष निकलना संभव नहीं है हाँ अटकलें तो लगाई ही जा सकती हैं | बढ़िया और विचारपूर्ण लेखन | सादर
ReplyDeleteमेरा भी यही कहना है कि दिल्ली दूर है.. अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी है।
Deleteप्रायः सभी समाचार माध्यमों की रिपोर्टिंग से समझा जा सकता है कि उनका झुकाव किधर है,भले ही वे लाख दावे करते रहें कि आवर ड्यूटी इज टू रिपोर्ट एंड नॉट टू सपोर्ट। सर्वेक्षण दबाव की राजनीति हो सकती है और जनता का मूड भी। जो हो,मगर सत्ता अबकी बदलनी ज़रूर चाहिए।
ReplyDeleteहां ये तो सही है, आखिर कितना छिपाएंगे खुद को...
Deletemedia ki gairjimmedarana panchayato par aap jab tab ungli uthate rahe hai ye sach hai is bikaau sarkaar me sabhi cheezen bikaau ho gayee hain dekhana to ye hai ki agaami ek saal me kitane channels apne isi serve par kaayam rah payenge ya kisi prabhav me aur sevey karte rahenge aur logon ko bhramit karte rahenge .
ReplyDeleteaakhir paksha aur vipaksh dono ke hi liye ye bhram banaye rakhana bahut jaroori hai .log gaflat me rahe .fir jaane unt kis karvat baith jaaye
sateek report..
सही कहा, शुक्रिया
Deleteहालांकि राजनीति की न ज्यादा समझ है न दिलचस्पी,मगर जनता के हित में लिखी ये रिपोर्ट बढ़िया है....
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत बहुत आभार
Deleteमहेन्द्र जी .नमस्कार ! अगर आप की सारी बातों को कोई सही न भी माने तो भी आप की ये रिपोर्ट बड़ो-बड़ो को चोंकाने के लिए काफ़ी है ....बहुत उम्दा तरीके से और बहुत खूबसूरती से आप ने अपने तर्क रखे हैं .....बधाई हो |
ReplyDeleteमैं तो आप की रिपोर्ट से ही राजनीति को समझने की कोशिश करता हूँ ........पिछले दिनों बहुत कुछ पढना रह गया ....कुछ कारणों से क्षमा ................
सर, नमस्कार
Deleteआपका ये स्नेह और आशीर्वाद लिखने की ताकत देता है।
आभार
ReplyDeleteसटीक और सच्ची बात
पोल खोलता सार्थक आलेख
बधाई
आग्रह हैं पढ़े
ओ मेरी सुबह--
शुक्रिया खरे साहब,,
Deleteबहुत बहुत आभार
बहुत बढ़िया रिपोर्ट पेश की है !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर
ReplyDelete