Sunday 9 June 2013

ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज !

ज एक सवाल ABP न्यूज से करना चाहता हूं, जिसके महत्वपूर्ण न्यूज बुलेटिन की बुनियाद भी " सूत्र " पर जा टिकी है। मैं समझता हूं सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर कोई सामान्य खबर तो एक बार दी जा सकती है, लेकिन देश में जिस मुद्दे पर लगातार बहस चल रही हो, उस बड़ी खबर पर इतनी बड़ी लापरवाही कम से कम मेरी समझ से तो परे है। बात यहीं खत्म हो जाती तो भी एक बार मामले की अनदेखी की जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हुआ ये कि गलत खबर पर एंकर राशन पानी लेकर चढ़ गया और वो दूसरों की प्रतिक्रिया लेने में पूरी ताकत से जुट गया। हिंदी पत्रकारिता उस समय और शर्मिंदा हुई, जब वरिष्ठ पत्रकारों की मंडली का एक सदस्य इस पर बहुत ही बचकानी टिप्पणी कर गया। खैर पूरी बात आगे करूंगा, पहले मुद्दे पर आता हूं। आज यानि रविवार को दोपहर डेढ़ बजे के करीब अचानक गोवा में चल रही बीजेपी की कार्यकारिणी से एक खबर ABP न्यूज ने ब्रेक की। जानते हैं खबर क्या थी ? खबर ये कि मोदी को प्रचार कमेटी का चेयरमैन नहीं बनाया जाएगा, उन्हें संयोजक बनाया जाएगा। शर्मनाक बात ये है कि 10 मिनट के बाद ही ये " ब्रेकिंग खबर " झूठी निकली, लेकिन चैनल को भला इससे क्या लेना ! खैर इस बीच क्या हुआ वो भी सुन लीजिए।

बीजेपी कार्यकारिणी को लेकर रविवार को दोपहर में एबीपी न्यूज ने एक मजमा लगा रखा था। इसमें वरिष्ठ पत्रकार ध्यान दीजिए मैं क्या कह रहा हूं, "वरिष्ठ पत्रकार" हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा के साथ ही ट्रेनी वरिष्ठ पत्रकार दिबांग के अलावा दो एक लोग और मौजूद थे। यहां बेमतलब की बातचीत के बीच अचानक टीवी पर फुल स्क्रिन मे "ब्रेकिंग न्यूज" लिखा आया। 10 सेकेंड तक ब्रेकिंग-ब्रेकिंग लिखा देख मैं भी चौकन्ना हो गया। आपको पता है ब्रेकिंग न्यूज क्या थी ? न्यूज ये थी कि " मोदी को प्रचार समिति का अध्यक्ष नहीं संयोजक बनाया जाएगा : सूत्र "। ये खबर ब्रेक हुई होगी दोपहर में लगभग 1.20 पर। जबकि यहीं नीचे लिखा आ रहा था कि डेढ़ बजे इस मामले में अधिकारिक बयाना भी आएगा। सवाल ये उठता है कि अगर डेढ़ बजे अधिकारिक बयाना आना है तो 10 मिनट पहले ब्रेकिंग न्यूज का औचित्य क्या है ? ब्रेकिंग न्यूज भी अपने रिपोर्टर के हवाले से नहीं, वो सूत्र के हवाले से। पहले तो मैं सूत्र के हवाले से ब्रेकिंग न्यूज के ही चलाने के ही खिलाफ हूं। मेरा मानना है कि अगर चैनल किसी खबर की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है, तो पहले तो उसे ब्रेकिंग न्यूज चलाना ही नहीं चाहिए। चलिए दौड़ में आगे निकलने के लिए अगर खबर चलाई भी जाती है तो, ये माना जाना चाहिए कि अपना रिपोर्टर इस खबर पर मुहर लगा रहा है। हां वो अपने सूत्र का नाम नहीं खोलना चाहता, इसलिए नाम नहीं ले रहा है।

मुझे लगता है कि इससे आप सब ही नहीं चैनल के " संपादक जी " लोग भी सहमत होंगे। जानते हैं इस जल्दबाजी के चक्कर मे एबीपी न्यूज ने क्या-क्या गुल खिलाया ? विस्तार से बताना जरूरी है। जैसे ही एक लाइन की खबर आई कि  मोदी चेयरमैन नहीं संयोजक बनेंगे। चैनला का एंकर एकदम से उछल गया। उसकी आवाज एकाएक तेज हो गई। कहने लगा कि मोदी को बहुत बड़ा झटका लगा है। बोला ! चलिए चलते हैं सीधे गोवा और बात करते हैं अपने रिपोर्टर से। अब ये रिपोर्टर मेरा मित्र ही नहीं छोटे भाई जैसा है, इसलिए मैं नाम नहीं ले सकता। बहरहाल ब्रेकिंग न्यूज में भले ही खबर सूत्र के हवाले से कही गई हो, लेकिन रिपोर्टर ने ऐलान कर दिया कि " बीजेपी कार्यकारिणी की ये आज की सबसे बड़ी खबर है कि मोदी को अब प्रचार समिति का चेयरमैन नहीं बनाया जा रहा है। उन्हें समिति का संयोजक बनाया जाएगा। रिपोर्टर ने अपनी ओर से इसके दो तीन कारण भी गिना दिए। हास्यास्पद तो ये रहा है कि उसने पार्टी के संविधान की दुहाई देते हुए कहाकि पार्टी में संयोजक ही बनाए जाने का प्रावधान है। क्योंकि प्रचार समिति के प्रस्ताव पर अंतिम फैसला अध्यक्ष ही लेते हैं।

मैं फील्ड में काम कर चुका हूं, रिपोर्टर के दबाव को समझ सकता हूं। लेकिन चैनल के एसी बक्से में बैठे लोग कैसे बहक सकते हैं ? जब रिपोर्टर से बातचीत में ये बात साफ हो गई कि वो सारी बातें हवा में कर रहा है, कोई पुख्ता बात नहीं कर पा रहा है, उसके बाद भी चैनल इस विषय को आगे कैसे बढ़ा सकता हैं ? अच्छा मान भी लें कि चैनल अपने रिपोर्टर की बात को आगे बढा रहा है तो ये तथाकथित "वरिष्ठ पत्रकार" क्या कर रहे थे ? सबसे हल्की बात तो हिंदुस्तान टाइम्स के राजनैतिक संपादक विनोद शर्मा ने की ! वो बिना जानकारी को पुख्ता किए कमेंट देने लगे। कहाकि " खोदा पहाड़, निकले राजनाथ " ! अब क्या कहूं, एक राष्ट्रीय पार्टी के बारे में आप इतना भद्दा कमेंट किस हैसियत से करते हैं ? एक पत्रकार के नाते, आम नागरिक के नाते या फिर कांग्रेस में अटूट आस्था रखने की वजह से ? ये जवाब तो विनोद शर्मा ही दे सकते हैं । इस मजमें में एक शख्स गुलाबी शर्ट में और भी मौजूद था। वो भी खबर को पुख्ता होने का इंतजार किए बगैर जिस तरह मुद्दे पर रियेक्ट कर रहा था, लगा कि जैसे बीजेपी ने उसकी जमीन हड़प ली है। संयोजक बनाए जाने को लेकर ये पत्रकार लोग अपने अंदाज में बीजेपी का चिट्ठा खोल रहे थे, कई बार तो ऐसा भी लगा कि या तो ये लोग बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में खुद मौजूद थे, या फिर इनका पत्रकारिता से लेना देना नहीं रहा, ये कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं।


बहरहाल 10 मिनट में ही ये इतनी गंदगी कर चुके थे कि उसे समेटना आसान नहीं था। इस बीच सच्ची खबर आ गई कि " मोदी प्रचार समिति के चेयरमैन यानि अध्यक्ष होंगे" । इस खबर के बाद तो मैं इन पत्रकारों का चेहरा देखना चाहता था कि अब ये अपना बचाव कैसे करते हैं? लेकिन इनकी बात सुनकर लगा कि ये जितना खाते हैं, उससे कहीं ज्यादा उल्टी करते हैं। मैं तब और हैरान रह गया कि जब मैने देखा कि ये अपनी बातों पर शर्मिंदा होने के बजाए, पूरी चर्चा को दूसरा रूप देने में लग गए। यहां अब बारी थी ट्रेनी वरिष्ठ पत्रकार दिबांग की । दिबांग तो पत्रकार के बजाए मनोचिकित्सक ही बन गए। वो नेताओं की बाँडी लंग्वेज पढ़ने लगे और उन्होंने विनोद शर्मा की बात को आगे बढ़ाते हुए कहाकि ये मौका था कि बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ आनंदित होकर इस बात का ऐलान करते, लेकिन वो मायूस दिख रहे हैं, उन्होंने लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज के बाँडी लंग्वेज पर भी सवाल खड़े किए। ये भी पूछा कि राजनाथ मीडिया के सामने मोदी को साथ क्यों नहीं लाए ? सवाल ये भी उठाया गया कि नरेन्द्र मोदी को अध्यक्ष चुने जाने के बाद उन्हें माला पहनाया गया या नहीं,  जिस समय ये ऐलान हुआ, वहां क्या माहौल था। दिबांग जिस तरह का सवाल उठा रहे थे, सच बताऊं तो लगा नहीं कि एक पत्रकार न्यूज चैनल की बहस में ये बातें नहीं  कर रहा है, बल्कि ऐसा लग रहा था कि कोई व्यक्ति 24 अकबर रोड यानि कांग्रेस दफ्तर से पत्रकारों को संबोधित कर रहा है।

आगे बात करूं, इसके पहले दो बातें और कह दूं। ये राजनीति भी किसी को ईमानदार नहीं रहने देती। भाई कोई सरकार हिम्मत करे और सबसे पहले एक काम कर दे कि पत्रकारों और संपादकों को पद्म सम्मान न देने का फैसला कर दे, इसके अलावा ये भी ऐलान कर दिया जाए कि पत्रकारों को राज्यसभा में भी नामित नहीं किया जाएगा। केवल इतने भर से पत्रकारिता में थोड़ा बहुत बेईमानी पर अंकुश जरूर लग जाएगा। मैं देख रहा हूं कि पत्रकार भी आज पार्टी बनते जा रहे हैं। ये वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक दलों के प्रवक्ता से भी ज्यादा बदबू देने लगे हैं। यही वजह है कि तमाम नेता इन्हें चैनलों की चर्चा में " कुत्ता " बना देते हैं, और ये दांत निपोरते हुए चुपचाप सुनते रहते हैं। अगर आप वाकई चैनलों की चर्चा पर पत्रकारों को सुनते होंगे तो अब तक आपको पता चल गया होगा कि आजकल के तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार किस पार्टी का राशन तोड़ रहे हैं। चलिए जब गंदगी समाज में आ चुकी हो तो देश के 10 वरिष्ठ पत्रकारों के ईमान बेच देने से ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ने वाला है।

एबीपी न्यूज पर फिर वापस लौटता हूं। एबीपी न्यूज के संपादक जी ! क्या आपको नहीं लगता कि ब्रेकिंग न्यूज की विश्वसनीयता के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए ? आप एक जिम्मेदार चैनल हैं, क्या आपके न्यूज चैनल का एक आम दर्शक होने के नाते मुझे ये जानने का हक है कि इतनी बड़ी ब्रेकिंग न्यूज कैसे गलत हुई ? आपने स्टूडियो में जो पत्रकारों को जो मजमा लगाया था, और उन्हें आपने ही गलत जानकारी देकर उनके मुंह से जो गाली दिलवाई, उसके लिए क्या आपने किसी की जिम्मेदारी तय की है ? पूरे आधे घंटे तक जो ड्रामा आपने क्रियेट किया, और वो बाद में गलत साबित हुआ, क्या उसके लिए देश की जनता से आपको माफी नहीं मांगनी चाहिए? आखिर में एक सवाल और ? आपने दिल्ली और गुजरात के तमाम रिपोर्टर गोवा में झोंक दिए, फिर भी इतनी बड़ी गलती हुई तो आपको नहीं लगता कि चैनल को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए ?  क्या हम विश्वास कर सकते हैं कि आगे से आप ब्रेकिंग न्यूज को लेकर ज्यादा गंभीर होगें ? अगर इतने बड़े चैनल पर हम भरोसा नहीं कर सकते तो प्लीज आप बताएं कि हम कौन सा चैनल देंखें ? जो कम से कम विश्वसनीयता के मानकों को पूरा करता हो।



23 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (10-06-2013) को सबकी गुज़ारिश :चर्चामंच 1271 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. इसी कारण चैनल वाले अपनी विस्वासनियता खोते जा रहे है ,,,

    recent post : मैनें अपने कल को देखा,

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  3. ये चैनल कुछ भी कर सकते हैं अपनी टी.आर.पी.बढ़ने के लिए .देशभर में लोग दिन भर बैठे इन्हें ही तकते रहते हैं और यही नहीं बहुत से लोग ऐसे ही फिरते हैं और इनकी बैटन का प्रचार करते हैं साथ ही बताते हैं चैनल का नाम तो फिर क्यूं ये ऐसा करें जिससे दूरदर्शन से ऊपर नाम आये और रही बात विनोद शर्मा जी की तो आदमी कभी जब अपनी बात बनते देखता है तो ख़ुशी में इतना पागल हो जाता है की कहीं भी कुछ भी बोल देता है नहीं देखता की वहां कौन बैठे हैं शायद आपको देख लेते तो संभलकर बोलते ..बहुत सुन्दर भावों की रोचक प्रस्तुति आभार रुखसार-ए-सत्ता ने तुम्हें बीमार किया है . आप भी दें अपना मत सूरज पंचोली दंड के भागी .नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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    1. हाहाहा, कोई मौका खाली नहीं जाने दे रही हैं। ठीक है।
      विचार पसंद आए, बहुत बहुत आभार

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  4. महेंद्र जी
    आज कल न्यूज़ चैनल की बाढ़ आ गयी है , मकसद सिर्फ सनसनी फैलाना और गुमराह करना रह गया है . मैं आपको मेरी कविताओं पर अपनी प्रतिकिर्या देने के लिए धन्यवाद् करना चाहता हु . हो सके तो आप अपनी e-mail idमुझे forward करीयेगा .
    सादर
    मनोज क्याल
    www.poemsbymanoj.blogspot.com

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  6. अक्सर टी.वी पर चर्चा में बैठे लोग अपनी सीमायें भूल जाते हैं जैसे सन्यास लिए हुए खिलाडी स्टूडियो में बैठकर सचिन जैसे खिलाडी के खेल पर तीखी टिप्पणी करते हैं .पत्रकार भी सीमाओं को भूल कर रेटिंग के लिए अनर्गल खबरे प्रसारित करने में जुटे रहते हैं .मीडिया के इस आचरण पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है .

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  7. पत्रकारों का सबसे बड़ा काम उत्तेजना फैलाना हो गया है.सबसे पहले सबसे अधिक सनसनी जो फैला दे वही अपने को सफल समझता है.संतुलित विचार और संयम किस चिड़िया का नाम है शायद उन्हें पता ही नहीं !

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    1. जी बिल्कुल सहमत हूं आपकी बातों से..
      आभार

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  8. पता नहीं आजकल ऐसा क्यूँ लगता है कि कुछ वरिष्ठ पत्रकार किसी ख़ास दल या पार्टी के पक्ष में तर्क दे रहें हो
    चलिए जो भी हो
    आपने बात तो बिलकुल सही कहा है कि ऐसी चीजों से चैनल की विश्वशनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है ....

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  13. vnod ssharma congressi agent hai

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  14. vinod sharma puri treh se congressi agent hai jo har baat ke liye congress ko defend krte hai or bjp ki har achi baat me khamiye nikalte hai

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