रेल बजट से सिर्फ निराशा ही नहीं हुई बल्कि इस बजट ने रेलवे बोर्ड के प्रबंधन पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं ! बजट पर बात करूंगा, लेकिन पहले रेलवे बोर्ड की प्रासंगिकता पर बात करना जरूरी हो गया है। इस बजट को सुनने के बाद मन में जो पहला सवाल है वो ये कि रेलवे बोर्ड की आखिर जरूरत क्या है ? जर्नलिज्म से जुड़े होने की वजह से मेरा 15 - 20 साल से रेलवे और बोर्ड के तमाम अफसरों से संपर्क रहा है, इसलिए रेलवे के सिस्टम को बखूबी समझता हूं। बोर्ड में मैकेनिकल और सिविल इंजीनियरों की जबर्दस्त खेमेबंदी है। दोनों गुट की कोशिश रहती है कि बोर्ड में उनकी तूती बोलती रहे, इसके लिए ये बहुत नीचे तक गिर जाते हैं। खैर इस मसले पर फिर कभी विस्तार से चर्चा होगी, आज मैं ये जानना चाहता हूं कि रेलवे बोर्ड के पास ना कोई प्लानिंग है ना कोई विजन है और ना ही कोई सिस्टम है, ऐसे में रेलवे को इस हाथी ( रेलवे बोर्ड ) की जरूरत क्यों है ? ये इंजीनियर ट्रेन को पटरी से उतार देगें, वरना मेरा तो यही मानना है कि बोर्ड का प्रबंधन इंजीनियरों से लेकर IAS को सौंप दिया जाना चाहिए, क्योंकि मुझे लगता है कि योजना, बजट, अनुशासन ये सब एक इंजीनियर के मुकाबले IAS बेहतर कर सकता है।
आइये बजट पर चर्चा करते हैं। रेलमंत्री सुरेश प्रभु पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट है, इसलिए वो गुणा भाग में माहिर हैं। उनकी ये महानता बजट में दिखाई दी और उन्होंने सबसे बड़ा झूठ ये कहाकि आज रेलवे का आँपरेशन रेसियो 88.5 है। मतलब रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए 88.50 रुपये खर्च करता है। सच्चाई ये है कि रेलवे 100 रुपये कमाने के लिए करीब 113 रुपये खर्च करती है। वैसे प्रभु आपकी लीला अपंरपार है, आपने कहा कि अभी तक लोग 60 दिन पहले का ही रिजर्वेशन करा सकते थे, जिसे बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है। मतलब लगभग पांच हजार करोड रूपये बिना सफर कराए ही एडवांस में रेलवे के खाते में जमा हो जाएंगे । यात्रियों की इस रकम पर बैंक तो रेलवे को ब्याज देगा, लेकिन टिकट कन्फर्म नहीं हुआ तो रेलवे यात्री को पूरा पैसा तक वापस नहीं करेगी, वो कैंसिलेशन चार्ज वसूलेगी। फिर चार महीने बाद क्या होगा ये साधारण यात्री तो नहीं जानता, ये तो प्रभु आपको ही पता हो सकता है।
प्रभु आपका ये ऐलान कि ट्रेनों और प्लेटफार्म पर विज्ञापन के जरिए रेलवे आय का स्रोत बढाएगी, ये बात तो समझ में आती है। लेकिन आप का ये ऐलान गले नहीं उतरा कि कंपनियों के नाम पर स्टेशन और ट्रेन का नाम रखकर बड़ी रकम वसूल की जाएगी। मुझे याद है कि पूर्व रेलमंत्री स्व. कमलापति त्रिपाठी ने एक बार रेल के अफसरों को इसीलिए लताड लगाई थी कि वो ट्रेनों का नाम ठीक तरह से नहीं रखते थे। पहले ट्रेन का नाम होता था, बाम्बे मेल, तूफान मेल, कालका मेल आदि आदि। स्व. त्रिपाठी ने कहाकि ट्रेन के नाम सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक पहचान के आधार पर रखे जाएं। उनके समय में जो भी ट्रेनें चलीं उनका नाम बहुत सोच समझ कर रखा जाता था, जैसे काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस, त्रिवेणी एक्सप्रेस, गंगा गोमती एक्सप्रेस, हिमगिरी एक्सप्रेस इत्यादि। लेकिन प्रभु आपके ऐलान के बाद तो लगता है कि ट्रेनों का नाम होगा एमडीएच चिकन मसाला एक्सप्रेस, कुरकुरे एक्सप्रेस, पेप्सी मेल, सहारा एक्सप्रेस, जाँकी अंडरवियर सुपरफास्ट ट्रेन, तुफान बीडी मेल, बेगपाईपर सुपर फास्ट ! ये सब क्या है प्रभू ?
वैसे प्रभु एक बात बताऊं, पूर्व रेलमंत्री लालू यादव को आज मैं वाकई याद कर रहा हूं। लालू का मैं बड़ा आलोचक रहा हूं, लेकिन आपके बजट के बाद इतना तो मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि लालू बजट पर मेहनत करते थे और उनके बजट में रेलवे के मुनाफे के साथ दूरदर्शिता दिखाई देती थी। लालू ने रेलवे बोर्ड के इंजीनियरों पर आंख मूंद कर कभी भरोसा नहीं किया, वो अपने साथ बिहार कैडर के कुछ आईएएस अफसरों को अपना OSD बनाकर बोर्ड में बैठा दिया था। नतीजा ये हुआ कि बिगडैल इंजीनियरों पर लगाम कसा जा सका। सच कहूं प्रभु आपका बजट तो मैं अभी तक यही नहीं समझ पा रहा हूं कि ये है किसके लिए ? इसे ना यात्रियों का बजट कह सकते है, ना रेल कर्मचारियों का बजट कह सकते हैं और ना ही व्यापारियों का बजट कह सकते हैं। संसद में आपने साफ-साफ बता दिया कि दिल्ली मुंबई राजधानी की औसत गति सिर्फ 79 किलोमीटर प्रति घंटा है, जबकि दूसरी राजधानी की औसत गति तो 55 से 60 किलोमीटर प्रतिघंटा ही है। इसलिए प्रभु जी आपने ऐलान किया कि आप कुल 9 रेलमार्ग पर गति सीमा बढ़ाएंगे। पता नहीं आपको याद है या नहीं, लेकिन ये काम लालू यादव ने शुरू किया था, उन्होंने सबसे पहले दिल्ली से आगरा तक भोपाल शताब्दी को 150 किलोमीटर की रफ्तार से चलाने की कोशिश की। कई साल काम चला, रेलवे ने 180 करोड रुपये ज्यादा पटरियों को अपग्रेड करने पर खर्च भी किया। लेकिन आज भी भोपाल शताब्दी की औसत गति 110 - 120 किलोमीटर ही है। मुझे लगता है कि बोर्ड के इंजीनियरों ने मोटा माल बनाने के लिए पुरानी पटरी को अपग्रेड करने का तरीका तलाशा है।
साफ-सफाई तो खैर जितना भी हो कम है, इस पर आपने ध्यान दिया है अच्छी बात है। लेकिन फिर मुझे कहना पड़ रहा है कि बोगी में बायो टायलेट की शुरुआत पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ना सिर्फ अपने बजट में कर चुके है, बल्कि उनके समय में ही आईआरडीएसओ ने एक बोगी तैयार कर दिल्ली में इसका प्रदर्शन भी किया था। इस दौरान लालू के साथ कैबिनेट मंत्री रहीं अंबिका सोनी भी मौजूद थीं। आपने कहाकि मेक इन इंडिया के तहत इंजन, बोगी, पहिए देश में बनाए जाएंगे। प्रभु देश में तो आज भी ये तीनों चीजें बन रही हैं, हां जरूरत के मुताबिक उत्पादन नही कर पा रहे हैं। सफर के दौरान यूज एंड थ्रो बेडरोल की बात नई जरूर है, बहरहाल इसका इंतजार रहेगा। ये अच्छा प्रयास है।
प्रभु आपके एक ऐलान से तो मेरा पूरा परिवार हंसते हंसते थक गया। आपने कहाकि चार महीने पहले आप ट्रेन का टिकट ले सकते हैं और टिकट लेने के दौरान ही मनचाहे खाने का आर्डर भी IRCTC के जरिए आँनलाइन ही कर सकते है। पहला तो ये कि जहां लोग सुबह नाश्ते के बाद सोचते हों कि लंच में क्या खाया जाए, वहां आप चार महीने पहले खाने के आर्डर को मनचाहा खाना बता रहे हैं। चलिए ये तो कोई खास नहीं.. लेकिन एक वाकया बताता हूं। दिल्ली से गोवा जा रहा था, ट्रेन को दोपहर एक बजे भोपाल पहुंचना था, एक मित्र ने कहाकि भोपाल में वो खाना लेकर आएंगे ! ट्रेन 6 घंटे लेट हो गई और हम सभी बिस्किट खाकर भूख से जूझते रहे। ट्रेनों की लेट लतीफी के बीच अगर यात्री भोजन का इंतजार करता रहा तो उसका भगवान ही मालिक है।
जनरल कोच में मोबाइल चार्ज करने की सुविधा दे रहे हैं, लेकिन प्रभु कुछ ऐसा कीजिए कि सामान्य श्रेणी के कोच में यात्री आराम से सफर भर कर सके, तो भी चल जाएगा। स्टेशन पर फ्री वाईफाई भी गैरजरूरी बात लगती है, क्योंकि आज कल सभी के फोन पर नेट की सुविधा आमतौर पर होती ही है। सरकारी पैसे को बेवजह खर्च करने की जरूरत नहीं है। और हां प्रभु ये बताएं आपने एक भी नई ट्रेन का ऐलान नहीं किया ! मुझे तो ये बात समझ में ही नहीं आ रही है। आपको पता है कि लोगों को आसानी से रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है, रेलवे आज भी डिमांड पूरी नहीं कर पा रही है ऐसे में नई ट्रेन का ऐलान होना ही चाहिए। मुझे पता है कि रेल रूट बिजी है, लेकिन जब आप कह रहे हैं कि ट्रेनों की स्पीड बढ़ाकर कुछ समय निकाला जाएगा, तो नई ट्रेन चलाई जा सकती है। इससे तो आपकी और बोर्ड अफसरों में इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। डिमांड पूरी करने के लिए ट्रेनों में बोगी बढ़ाने की बात कर रहे हैं, ज्यादातर ट्रेनो में 24 कोच लगाए जा रहे हैं, इससे ज्यादा कोच लगाने की क्षमता ही नहीं है। कई रेलवे स्टेशन पर तो 24 कोच की ही ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी नहीं हो पाती है, फिर और बोगी बढ़ाने की बात तो बेमानी लगती है।
आखिर में रेलवे के आय पर बात करना है। एक बार फिर बजट में पीपीपी की बात की गई है। प्रभु आपको पता है कि वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन के लिए पीपीपी के तहत देश विदेश से टेंडर आमंत्रित किए गए थे, लेकिन कोई भी आवेदन नहीं आया। दरअसल सच्चाई ये है कि भारतीय रेल पर किसी को भरोसा ही नहीं है। आपने सिर्फ पीठ थपथपाने के लिए रेल किराए में कोई बढोत्तरी नहीं की। मै तो आपके इस फैसले से पूरी तरह असहमत हूं। देश में रोजाना 2.30 करोड यात्री ट्रेन से सफर करते हैं। इसमें अकेले मुंबई में 85 लाख यात्री रोजाना लोकल ट्रेन से सफर करता है। अभी वहां तीन महीने का मासिक सीजन टिकट सिर्फ 15 दिन के किराए पर दिया जाता है। मासिक सीजन टिकट में बढोत्तरी की गुंजाइश थी, लेकिन आपने नहीं किया। इसी तरह अपर क्लास का किराया लगातार बढाया गया है लेकिन जनरल और स्लीपर क्लास में किराया नहीं बढ़ा है, इसलिए जरूरी है कि किराए को तर्कसंगत बनाया जाए। माल भाडा बढ़ाया तो.. लेकिन आपकी हिम्मत नहीं हुई कि बजट भाषण में इसे आप पढ सकें। मुझे बजट तो दिशाहीन लगा ही प्रभु आप डरपोक भी नजर आए।
चलते-चलते
रेलवे बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अरुणेन्द्र कुमार टीवी बहस में इस रेल बजट को 10 में 11 नंबर दे रहे थे, मुझे लगता है कि उन्हें उम्मीद है कि बीजेपी सरकार रेलवे बोर्ड की किसी कमेटी का उन्हें चेयरमैन बना देगी !