मैं देख रहा हूं कि आज मीडिया पर लोगों का भरोसा कम होता जा रहा है। वैसे तो इसकी कई वजह गिनाई जा सकती हैं, लेकिन मेरा मानना है कि अब वक्त आ गया है कि मीडिया भी अपने गिरेबां में झांके, वरना आने वाला कल मीडिया के लिए बहुत खराब खबर लेकर आने वाला है। मैं बहुत जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि आज मीडिया में बेईमानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जब भी किसी मामले का खुलासा होता है, तो मीडिया हाउस की भूमिका पर जरूर उंगली उठती है। मसलन नीरा राडिया का टेप आया तो वहां पत्रकार, अमर सिंह का टेप आया तो वहां भी पत्रकार शामिल थे। शर्मनाक बात तो ये है कि चोरी पकड़े जाने के बाद राजनेताओं से इस्तीफा मांगने वाली मीडिया अपने भीतर झांकने को तैयार ही नहीं है। हालत ये है पत्रकारों में बढ़ती बेईमानी की प्रवृत्ति तो मीडिया को कलंकित कर ही रही है, दूसरी ओर हम पूरे दिन अविश्वसनीय लोगों के साथ घिरे हैं, लिहाजा विश्वसनीयता का संकट भी हमारे साथ है।
मैं बहुत जिम्मेदारी के साथ एक बात कहना चाहता हूं कि टीवी न्यूज चैनलों पर हर विषय पर बहस के कार्यक्रम को तो तुरंत बंद कर दिया जाना चाहिए। मैं देखता हूं कि चैनलों पर हर बात को लेकर बहस होती है। ऐसा हो गया तो बहस, नहीं हुआ तो भी बहस। कहते हैं कि बहस मुद्दों के लिए होती है, कम से कम बहस करने वाले तो यही कहते हैं। लेकिन मेरा मानना कुछ अलग है। मुझे लगता है कि बहस महज टीआरपी के लिए चल रही है। आप जानते हैं देश में न्यूज चैनल अपनी टीआरपी को लेकर जितना गंभीर रहते हैं, उससे कहीं ज्यादा राजनीतिक दलों को भी अपनी टीआरपी की फिक्र सताती है। खास बात ये कि इस बहस में जो नेता हिस्सा लेते हैं, वो यहां भले बड़ी बड़ी बातें कर लें, लेकिन सच्चाई ये है कि इनकी अपनी ही पार्टी में दो कौड़ी की औकात नहीं होती। अब तो टीआरपी के लिए कुछ नए प्रयोग भी हो रहे हैं। इस मामले में पाकिस्तानी न्यूज चैनल हमसे ज्यादा आगे की सोचते हैं। बहस के दौरान एक दूसरे की न सुनना और अपनी ही बात झोके रखना तो आम बात है, लेकिन पाकिस्तानी चैनल ने बहस के दौरान कैमरे पर ही गेस्ट के बीच लात जूते करा दिए। बताते हैं कि उस प्रोग्राम की टीआरपी अब तक की सबसे ज्यादा टीआरपी रही है।
सच कहूं तो न्यूज चैनलों के इस प्रोग्राम का कोई मतलब नहीं है, लेकिन चैनलों का इस पर सबसे ज्यादा फोकस रहता है। इसकी एक वजह ये भी है कि सभी चैनलों में बहस वाले प्रोग्राम या तो चैनल के संपादक करते हैं या फिर बहुत सीनियर एंकर को ही ये जिम्मेदारी दी जाती है। यहां आपको बता दूं कि अमेरिका में इसी तरह की बहस वाले प्रोग्राम शुरू हुए तो वहां लोगों ने टीवी को " इडियेट बाक्स " नाम दे दिया। एक ओर यह नाम मज़ाक था तो दूसरी ओर हकीकत। इस हकीकत का सबसे बड़ा सबूत है टीवी पर होने वाली ये बहस। आखिर इडियट बाक्स में बकवास नहीं तो और क्या होगी ? भारत में भी कुछ राजनीतिक टीवी को "बुद्धू बक्सा" बताते हैं। हालाकि वो इसे बुद्धू बक्सा भले कहें, पर यहां अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराने इच्छा रखते हैं। एक सवाल कई बार उठाया जाता है कि आखिर टीवी पर बहस शांत और संयत भाषा में क्यों नहीं हो सकती? कुछ चैनल ऐसा करने की कोशिश करते हैं, लेकिन फिर वही टीआरपी आड़े आ जाती है। इसलिए ऐसी बड़ी बहस में भी तमाशा करना कहीं ना कहीं मीडिया की मजबूरी हो जाती है।
यही वजह है कि आज मीडिया के सामने विश्वसनीयता का संकट है। अब पिछले दिनों हुए अन्ना के आंदोलन को ही ले लीजिए। मैं देख रहा था कि यहां मीडिया या तो चीजों को अतिरंजित करती दिखाई दे रही थी या फिर लोगों को दिगभ्रमित कर रही थी। आंदोलन को बनाए रखने के लिए भीतर की खबरों को छिपाया भी गया। सच्चाई तो ये है कि अन्ना के मामले में मीडिया की भूमिका बहुत बचकानी थी, उसका पूरा नजरिया ही अपरिपक्व और अगंभीर रहा। अन्ना को गाँधी और जेपी बताना मूर्खतापूर्ण नहीं तो और क्या है। दिलचस्प बात तो ये कि अन्ना ने खुद को कभी महात्मा गाँधी नहीं बताया, पर मीडिया अपनी तीसरी नेत्र से देख रही थी, जो अन्ना को गांधी बता रही थी। अब सवाल ये है कि अपरिपक्व मीडिया अगर किसी को गाँधी या जेपी बता दे तो क्या हमें मान लेना चाहिए ? मैं तो कहूंगा बिल्कुल नहीं, पर देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो मीडिया की बात को सच मान लेते हैं और उसी से अपनी राय बनाते हैं।
एक पत्रिका में लेख छपा कि अन्ना के आंदोलन की तरह आजाद भारत में कोई आंदोलन हुआ ही नहीं, यहाँ तक कि जेपी आंदोलन भी नहीं। अब इससे ज्यादा हास्यास्पद बात भला और क्या हो सकती है ? दरअसल आज मीडिया में काम करने वाले ज्यादातर संपादकों-पत्रकारों के पास न तो कोई इतिहास की जानकारी है, न कोई सामाजिक दृष्टि और न ही जिम्मेदारी का अहसास। अगर होता तो वे अन्ना को गाँधी या जेपी नहीं बताते। ये सब देखकर तो यही लगा कि आज की मीडिया न तो गाँधी को जानती हैं और न ही जेपी को। दरअसल आज मीडिया को सब कुछ बेचना है। चैनलों का मूलमंत्र ही यही है कि वही दिखता है जो बिकता है। इसलिए जंतर-मंतर पर अन्ना का आंदोलन उन्हें जेपी आंदोलन की तरह लगा, तो हम भला क्या कह सकते हैं। जिन लोगों ने जेपी आंदोलन में पटना के गाँधी मैदान में भीड़ देखी है, उनसे ही पूछा जाना चाहिए कि जंतर-मंतर पर कितने लोग थे। सब को पता है कि जेपी के समय में मीडिया इतनी ताकतवर और पहुंच वाली भी नहीं थी। आज मीडिया को हर रोज नए दांवपेंच की कहानी चाहिए। यहां तो कहानी पानी के बुलबुले की तरह उठती है और अगले ही पल फुस्स हो जाती है।
कई बार लगता है कि आज मीडिया का फोकस तय नहीं है, उसमें भटकाव की स्थिति है। सच कहूं तो लोकतंत्र का यह चौथा स्तंभ देश के विकास में अपनी भूमिका ही आज तक तय नहीं कर पाया है। उसे लगता है कि उसका काम बस पर्दाफास करने तक सीमित है। भटकाव की स्थिति का ही नतीजा है कि चैनलों पर अभी अन्ना को दिखाओ, कल आईपीएल, परसों शाही शादी, फिर राहुल का किसान प्रेम। ये सब सिर्फ इसलिए है कि आज मीडिया किसी बात के लिए जवाबदेह नहीं है। जो मीडिया कल तक जनलोकपाल बिल पर अन्ना के आंदोलन को 24 घंटे लाइव कर रहा थी, वही मीडिया शाही शादी दिखाकर अपने औपनिवेशिक मानसिकता का परिचय देती है। मैं देखता हूं हिंदी मीडिया का चरित्र शहर के मध्यम वर्ग तक सीमित है वो इसी पर फोकस रहता है। अगर दिल्ली में अपनी मांग को लेकर किसान और मजदूर आंदोलन करते हैं तो मीडिया आंदोलन की गंभीरता को नहीं दिखाती बल्कि ये बताने की कोशिश करती है कि किसानों मजदूरों के आंदोलन की वजह से दिल्ली में रास्ता जाम। यहां उसे मध्यम वर्ग के लोगों की समस्या "रास्ता जाम" ज्यादा गंभीर लगती है, लेकिन देश के कोने कोने से आए गरीब किसानों की समस्या पर कोई चर्चा नहीं होती। अन्ना के आंदोलन में चूंकि मध्यम वर्ग शामिल था, इसलिए चैनलों की इसमें ज्यादा रुचि थी।
आज मीडिया में शिक्षा के निजीकरण को लेकर बहस नहीं होती है, क्योंकि ये बुनियादी सवाल है, और आज मीडिया बुनियादी सवालों से खुद को दूर रखना चाहती है। मीडिया कलावती की बात करके राहुल गांधी की छवि बनाने का काम तो करती है, पर दिल्ली में उसी कलावती को राहुल गांधी मिलने का समय नहीं देते हैं, इस पर मीडिया खामोश रह जाती है। इस मीडिया में दलित आदिवासियों के लिए भी कोई जगह नहीं है, लेकिन मुन्नी की बदनामी और शीला की जवानी को लेकर ये मीडिया बहुत संवेदनशील है। बहरहाल मैं ऐसी कोई अजूबी बातें नहीं कर रहा हूं जिसे आप नहीं जानते या मैं या फिर मीडिया घराने को पता नहीं है। सब जानते हैं कि क्या हो रहा है। इसे ठीक करने की जरूरत है, कहीं ऐसा ना हो कि लोकतंत्र का ये चौथा स्तंभ इतना कमजोर हो जाए कि इसकी मौजूदगी या नामौजदगी ही बेमानी हो जाए।
bahut bebaki se likha gaya ek shashkt aalekh..aapki kalam aise hi sach ko jhakjhorti rahe yahi shubhkamna hai..
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार
Deleteएक ज्वलंत विषय-वस्तु पर सार्थक लेख्य !!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत ख़ूब! श्रीवास्तव सर! नया ब्लॉग आपको बहुत-बहुत मुबारक़। मुझे यक़ीन है कि टीवी चैनल से आपके जुड़े होने के नाते इस ब्लॉग पर उपलब्ध सामग्री निश्चित रूप से प्रामाणिक और उपयोगी होगी
ReplyDeleteआपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 01-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1019 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteआप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.
ReplyDeleteआप कुछ भी कह लीजिए..
Deleteसब स्वीकार्य
कहां कहां जाकर गाली लिख आएंगे, कोई भरोसा नहीं..
Deleteवीरेंद्र जी की बातोआं से सहमत । मीडिया की पडताल करते हुए आपने आलेख के आधे भाग को सीधा सीधा अन्ना आंदोलन के अपने चिर प्रेम/द्वेष की भेंट चढा बैठे ।
Deleteनए ब्लॉग के लिए शुभकामनाएं । वैसे कहां कहां जाकर गाली लिख आएंगे , कोई भरोसा नहीं ....का मंतव्य नहीं समझा , या शायद ये आपका विश्वास है उनके प्रति :)
आपके नये ब्लॉग का स्वागत है श्रीवास्तव जी!
ReplyDeleteसुन्दर आलेख!
आज 1 अक्तूबर के चर्चा मंच पर भी इसकी चर्चा है!
बहुत बहुत आभार सर
DeleteRole of Media in Indian Democracy is a very sensitive topic and if a person from Media feels that it is going downhill then we, who are laymen in this have to think twice before switching to any channel or subscribing a newspaper. But we, the people know one thing that is how to separate truth from this bombardment of information. I for example can tell you about a newspaper which prints rubbish about an issue which I'm well aware of and on the other hand I know another newspaper which can fight for the right in this case but is quiet because of reasons known and unknown. But as a reader I've subscribed both because I know how to get the news from both of them. I read only what I want to read. This is the outlook of a reader and a viewer. If the TRP of any news channel is rising then it is the people who love to watch its baseless Bhangarh Ajabgarh ghosts stories or A sensationalized crime programme. But serious news lovers will watch the programme which will give the accurate information only. This is democracy sir, let them have their share of TRPs and it is us, the people who will decide what to read and watch. When I want some enjoyment I too watch Such channels.
ReplyDeleteआपकी बातों से सहमत हूं।
Deleteसमर्थन के लिए आभार
This comment has been removed by the author.
Deleteबधाई स्वीकारें भाई महेंद्र जी |
ReplyDeleteशुक्रिया दिनेश जी
Deleteसारा दोष आज के आर्थिक युग का है ..
ReplyDeleteजितने दिनों तक लोग सुविधाभोगी बने रहेंगे ..
जबतक समाज पैसे वालों को महत्व देता रहेगा ..
दुनिया को नैतिक मूल्यों के पतन से नहीं रोका जा सकता ..
किस किस क्षेत्र को दोषी माना जाए ?
बिल्कुल.
Deleteआपकी बातों से सहमत हूं।
इस नए ब्लॉग के लिए आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteअंदाज वही,तेवर वही...एक अलग कदम...बहुत आशीष
ReplyDeleteबहुत देऱ में आपका आशीर्वाद मिला..
Deleteजी कोशिश ऐसी ही रहेगी..
मिडिया में अच्छी जानकारी वाले और अच्छे चरित्र
ReplyDeleteवाले जन ही होने चाहियें जो अपने अपने सकारात्मक
योगदान से सामाजिक उत्थान में सहयोग कर सकें.
आपकी सुन्दर विश्लेषणात्मक पोस्ट के लिए आभार.
नए ब्लॉग के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुक्रिया सर
Deleteएक पत्रकार की हैसित से आपने पत्रकारित धर्म का निर्वाह करते हुए इस पोस्ट में सत्य को रेखांकित किया है। आपका आलेख बहुत ही अच्छा लगा। मेरे पिछले पोस्ट पर आकर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आपका विशेष आभार। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा' पर आप सादर आमंत्रित हैं।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार प्रेम जी
Deleteमहेंद्र जी, नए ब्लॉग के लिए शुभकामनाएं एवं बधाई. मीडिया पर आपका बेबाक आलेख पढ़ा. निश्चित रूप से मीडिया की अपनी अंदरूनी दिक्कतें हैं जिससे मीडिया को खुद सुलझाना होगा. आज जब लोकतंत्र चारो तरफ से लहुलुहान हो रहा है, तब लोगों की एकमात्र उम्मीद मीडिया पर जा कर टिक जाती है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है यह बात उसे समझनी ही होगी. टी आर पी कभी भी किसी चैनल की सच्ची तस्वीर नहीं उभारता. अब लोग इस सच को जानने-समझने लगे हैं.
ReplyDeleteबेहतर आलेख के लिए बधाई एवं आभार.
शुक्रिया,
Deleteआपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं
नए ब्लॉग की बहुत सारी बधाइयां और शुभकामनाएं...
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट...बेबाकी से लिखी गयी..एकदम सटीक..
हमारे मन की भड़ास भी निकल गयी..
सादर
अनु
" इडियेट बाक्स " कहते हैं टीवी को यह मालूम था पर क्यों कहते यह आज पता चला|जेपी आन्दोलन तो मैंने भी देखा है...उस वक्त वह जन-जन का आन्दोलन बन गया था पटना में|
ReplyDeleteनये ब्लॉग के लिए बधाई और शुभकामनाएँ|
बहुत बहुत आभार..
Deleteमैं एक साधारण जन हूँ .....मैं क्या कह सकता हूँ ...सिवाय इसके
ReplyDeleteकि आप अपने सच्चे विवेक से हम जैसों को सच्चाई और इमानदारी का
आइना दिखाकर अपना फर्ज़ पूरा करें इसके लिये आप को मेरी तरफ से
बहुत-बहुत शुभकामनायें ! आप का हौंसला बना रहे .....
बहुत बहुत आभार सर
Deleteआपके नए ब्लॉग तक पहुँच गए .....पोस्ट पर टिप्पणी बाद में करते हैं ...! हार्दिक शुभकामनाएं ...!
ReplyDeleteशुक्रिया भाई
Deleteशुक्रिया, बहुत बहुत आभार
ReplyDelete.
ReplyDelete#
अब वक्त आ गया है कि मीडिया भी अपने गिरेबां में झांके,
वरना आने वाला कल मीडिया के लिए बहुत खराब खबर लेकर आने वाला है
नहीं जी ! इनके लिए 'ख़राब ख़बर' के आसार नहीं ।
गेंडों की जूठन खा-खा कर इनकी भी खाल गेंडे की हो चुकी …
हक़ीक़त यह है कि मीडिया की भूमिका एक संगठित अपराधी गुट जैसी हो चली है अब …
भला किसी का ये आज तक कर नहीं पाए … … …
जलते-डूबते-मरते पीड़ित लोगों की ढीठता से तस्वीरें उतारते या लंबी ज़ुबान निकाल कर बकवास करते ही मिलते हैं …
लेकिन किसी की जान बचाते , किसी का भला करते पत्रकार नहीं पाए जाते … … …
…और किसी भी पत्रकार पर आंच आते' देखने-सुनने में नहीं आया … … …
बहरहाल बधाई !
आपने आलेख बहुत श्रम और लगन से लिखा है, श्री महेन्द्र श्रीवास्तव जी !
आपसे उम्मीदें बढ़ी हैं …
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
शुक्रिया राजेन्द्र जी
Delete
ReplyDelete.
नए ब्लॉग के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
आभार
Deleteआपके नये ब्लॉग TVस्टेसन के लिये मेरी ओर से बहुत२ हार्दिक बधाई शुभकामनाये,,,,,,
ReplyDeleteमहेंद्र सर! सबसे पहले नये ब्लॉग के लिए आपका हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ ! :-)
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख !
आपकी बात एकदम सही है ! हम सभी को लगता है, ये सब टी आर पी का ही खेल है ! और सिर्फ़ न्यूज़ चॅनेल्स ही नहीं, मनोरंजन चॅनेल्स.....जैसे लाइव शोज़ वग़ैरह भी इस के लिए अपनी हद ही पार कर जाते हैं ,जिससे आम आदमी सीधे प्रभावित होता है !
हाँ ! न्यूज़ चॅनेल्स के लिए ये बात बहुत ज़रूरी है... कि वो जनता तक सही व ज़रूरी खबरें पहुँचाए ! मगर इसका इलाज क्या है आख़िर ?
~सादर !
जी आप यहां तक पहुंची और लेख को गंभीरता से पढा। इसके लिए बहुत बहुत आभार..
Deleteजी बिल्कुल सही कहा आपने, मै कोशिश करुंगा कि यहां आपको खबरिया चैनलों के साथ मनोरंजक चैनल्स क्या कर रहे हैं, उस पर भी अपनी बात रखूं..
महेंद्र जी जिस तरह आपने अपने ब्लॉग आधा सच के लेखन में बेबाकी दिखयी है, वह निश्चय ही काबिले तारीफ है, उसके बाद इस श्रृंखला को आगे badhate हुए आपने यह बेबाक ब्लॉग शुरू किया, जिन मुद्दों को आपने प्राथमिकता दी है, वास्तव में उस बारे में मिडिया को सोचने की फुर्सत नहीं रह गयी है, निश्चय ही हम लोग भी इसी से जुड़े है, पर कही न कही हम भटक गए है, चाहे इसके लिए कोई भी जिम्मेदार हो पर हमारी भी जिम्मेदारी है, विशेष कर इलेक्ट्रोनिक चैनल बड़े शहरो तक सिमित हो चुके है और उसका मुख्य कारन टी आर पि ही है, जिन मुद्दों को प्राथमिकता देनी चाहिए उसे पर्थ्मिकता नहीं दी जाती है, आपने मीडिया में रहकर भी जिस बेबाकी से लेख लिखा है वह काबिले तारीफ है, नया ब्लॉग शुरू करने के लिए आपको हार्दिक बधाई व शुभकामना.
ReplyDeleteशुक्रिया भाई हरीश जी
Deleteभाई महेंद्र जी आपका यह ब्लॉग भी बहुत अच्छा लगा |अच्छी पोस्ट के लिए आभार |मेरा एक शेर है -खबरों की असलियत का पता कुछ हमें भी है /शोहरत के वास्ते ही खबर मत बनाइये |बिलकुल आपकी सोच से मिलता जुलता |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तुषार सर
Deleteएक और सच से सामना ....
ReplyDeleteजी यहां आने के लिए बहुत बहुत आभार
Deleteमहेंद्र जी बहुत सार्थक लेख ,आपकी बात एकदम सही है. लेकिन मिडिया सायद आज TRP की हौड में अपना कर्तव्य भूल गया. टीवी में कभी कभी ऐसे डिबेट होते हैं की सुनकर हंसी आती है .
ReplyDeleteभगवन इनको सध्बुद्धि दे
शुक्रिया राजपूत जी
Delete
ReplyDeleteकठिन रास्ते पर ॥एक नया कदम ...
नए ब्लॉग के लिए बधाई एवं आधारभूत लेखन के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें .....!!सच्चाई से इस राह पर बढ़ें ,आज ये हमारे देश की मूलभूत ज़रूरत है ...!!
आपका आलेख भी बहुत बढ़िया ...पुनः शुभकामनायें ...!!
naye blog par badhai...ek dam sahi ab to news channel se jyada humne cartoon channel suscribe kar liye hain...vaise main tv par debate program tab chalu rakhti hoon jab ghar par akeli hoti hoon ...karan...tv par bahas ke shor se bahar ke gundon ko lage ki ghar ke andar ghusna khatre se khali nahin...he he he
ReplyDeleteहाहाहहाहाहाह
Deleteये भी ठीक है
pahli baar apke is blog par aana hua. aur ek patrkar/media me rahte ek sacche bharteey ki mansikta ka pata chala aur media me ghuli buraiyon ka gyan hua. bahut dukh hota hai ye sab jaankar aur dukh hota hai apne hi time barbad karne par ki ham kitni utsukta se samachar/behes ko sunte hain lekin asliyat kitni door hoti hai. me aapse hi iska upay poochhti hun? kyan kahin koi stambh aisa baki bacha hai jis par vishwas kiya ja sake ? ya fir apne desh ki media ka bhi haal us desh ki media jaisa kar diya jaye jise aajadi k naam par vaha ke dictator ki daasta mili thi.
ReplyDeleteme aapke is blog par aati rahungi aur umeed karti hun yaha to sach parosa hi jayega desh ke haalaton ka byora dete hue.
जी,आपने पूरे मन से लेख को पढा है, जो सवाल आपने उठाया है वाकई वो हम सब उसे लेकर चिंतित हैं।
Deleteपर हम निराश नहीं है, उम्मीद खत्म नहीं हुई है। बदलेगा, सबकुछ बदलेगा।
बहुत बहुत आभार
फिर से स्पैम बोक्स टिपण्णी खाने लगा है अब तो पुष्ट हुआ इसे महेंद्र श्रीवास्तव जी से या फिर मुझसे खुंदक है .
ReplyDeleteमहेंद्र श्रीवास्तव साहब !जो असावधानी से आग जलाते हैं वह खुद भी उसमें जल जाते हैं .भिंडरावाले को पंजाब में अकाली राजनीति का खात्मा करने के लिए इंदिराजी ने ही पैदा किया था .वही उनके लिए भस्मासुर बन गया .भस्मासुर पैदा करना आसान है उसे संभालने के लिए शिव बनना पड़ता है .
दूसरों के लिए आग जालोगे तो खुद भी जल जाओगे .सूर्य को पीठ से सेंका जा सकता है असावधानी पूर्वक लगाईं आग को नहीं .यही ला -परवाही राजीव जी से भी हुई थी .
महेन्द्र श्रीवास्तवOctober 4, 2012 9:30 AM
बढिया लिंक्स, अच्छी चर्चा
मुझे स्थान देने के लिए शुक्रिया..
हालाकि मैं गैरजरूरी समझता हूं गैरजरूरी लोगों की बातों का जवाब देना। लेकिन दूसरे लोगों में किसी तरह का भ्रम ना हो इसलिए एक दो बातें रख दे रहा हूं।
नए ब्लॉग के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं .....महेंद्र जी
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी
DeleteMahenra ji
ReplyDeleteisme Aadha sach mat likhna.
meri shubh kamnaye apke sath hai.
kamlesh
शुक्रिया जनाब
Delete