Tuesday 24 June 2014

टीवी चैनल संपादक की काली करतूत !

मैं आठ साल तक राष्ट्रीय चैनल  IBN 7  से जुड़ा रहा हूं। इस दौरान चैनल ने तमाम बड़े- बड़े आयोजन किए । इन आयोजनों में केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री, विभिन्न राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय नेता , सांसद, विधायक शामिल होते रहे हैं। मैने कभी नहीं सुना कि किसी कार्यक्रम में अतिथि बनने या फिर शामिल होने के लिए  किसी ने पैसे की मांग की हो। जब  भी नेताओं के पास निमंत्रण पत्र गया, नेताओं ने अपने सहायक से महज इतनी जानकारी की कि उस तारीख को पहले से कोई कार्यक्रम तय तो नहीं है, अगर तय होता है तो राजनेताओं ने कार्यक्रम के कामयाब होने की शुभकामना दी और कहाकि पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम में व्यस्त  होने की वजह से वो  कार्यक्रम में हिस्सा नहीं ले सकते। लेकिन अब दिल्ली में नई सरकार बनने के बाद एक विचित्र बात सुनी जा रही है। ये बात बताऊंगा, लेकिन पहले चैनल, चैनल  के मालिक और चैनल के संपादक के बारे में चर्चा करता हूं, फिर बताता हूं कि कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मंत्री और सांसद के रेट क्या हैं  ?

एक चैनल के मालिकान दिल्ली में आयोजन करना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि इस आयोजन में केंद्र सरकार के बड़े से बड़े मंत्री, सांसद और सत्ता में उच्च पदों पर आसीन नौकरशाह के अलावा विभिन्न जांच एजेंसियों के अफसर भी शामिल  हों। दरअसल चैनल के मालिकों के दिन कुछ खराब चल रहे हैं। वैसे तो पैसे वाले हैं, पर कारोबार में नंबर दो का  माल ज्यादा है। मालिकों के साथ कई मीटिंग  में मैं शामिल  रहा हूं, बहुत ऊंची -ऊंची बातें करते हैं,  चैनल के लिए जिस चीज की मांग हुई तत्काल पूरा करने को कह दिया जाता है । हैरानी तब हुई जब एक रात 11.30 बजे शुरू होकर सुबह पांच बजे खत्म हुई मीटिंग में   चैनल  के विस्तार पर करीब हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी गई । लेकिन हकीकत ये है कि तीन महीने बीत जाने के बाद 10 करोड़ भी खर्च नहीं किया गया। बहरहाल  मीडिया के मुंगेरीलाल ने ऐसा हसीन सपना दिखाया कि हम सब  चैनल को लेकर हवा  में उडने लगे , लेकिन मालिक का एजेंडा साफ है। चैनल उनकी  प्राथमिकता  में ही नहीं है,, चैनल  की आड में  दो नंबर का कारोबार फलता फूलता रहे,  बस चैनल हो , मैग्जीन हो या फिर अखबार सब का  मकसद सिर्फ इतना ही है।

अब यहां पहले जितने भी संपादक रहे, उनकी माडिया में एक पहचान रही है, ये नाम जितना देश में जाने जाते है,  उतना ही विदेशों में भी लोग जानते हैं।  पर जैसे ही इन संपादकों ने मालिक का असली चेहरा देखा वो चुपचाप यहां से खिसक गए।  लेकिन इस संपादक की बात ही निराली है। पता चला है कि एक बार यहां से निकाले जा चुके हैं। निकाले जाने की वजह जानकर तो मैं भी सन्न रह गया। दरअसल दो नंबर का पैसे को ठिकाने लगाया जाना था, काफी मात्रा में पैसा था, लिहाजा मालिक ने कुछ करोड़ रुपये माननीय संपादक के घर रखवा दिया। लेकिन जब पैसा संपादक के घर से वापस आया तो ये पैसा काफी  हलका हो चुका था। इससे मालिक की नजर में इस संपादक पर टेढ़ी हो गई और कुछ दिन बाद इनकी छुट्टी भी कर दी गई। चैनल से बाहर होने के बाद भी मालिक और उनके परिवार से चिपके रहे। चैनल के मालिक के यहां बर्थडे पार्टी भी हो, तो बेचारे संपादक कोट पहन कर पहुंच जाते , कोट का जिक्र इसलिए कि उन्हें लगता है कि कोट पहनने से वो पढ़े लिखे दिखते हैं। हाहाहा.. पर बेचारे की गलत फहमी है।

बहरहाल यहां से निकाले जाने के बाद इस संपादक को एक दो जगह कुर्सी मिली पर वहां के मालिक भी महीने भर से ज्यादा इन्हें बर्दास्त नहीं कर पाए। इस बीच संपादक की पत्नी  ने चैनल की मालकिन से दोस्ती कर ली और फोन पर गपबाजी करने लगी। वैसे संपादक की पत्नी का लगातार फोन करना चैनल की मालकिन को अच्छा नहीं लगता था। एक दो बार तो ऐसा भी हुआ कि हम सब मीटिंग में थे और इनका फोन आ गया, मालकिन ने बहुत गंदा सा मुंह बनाया, फिर चपरासी को फोन थमाकर कहा ... बाहर जाकर बता दो कि मैं बिजी हूं। खैर ये उनका अपना मामला है, लेकिन सच ये है कि दुबारा नौकरी दिलाने में संपादक की पत्नी का बड़ा हाथ रहा, क्योंकि उन्होंने ही सौदे की डील की। सब को पता है कि बेचारे  संपादक  के पास  कोई नौकरी नहीं थी, पहले एक बड़े ब्रांड में थे,  तो दो चार नेता इसका नाम जानते थे। वहां से निकाले गए तो सड़क पर ही आ गए। अब कोई दो पैसे को नहीं पूछ  रहा।  इस बीच सड़क पर घूम रहे संपादक ने देखा कि मालिक  की भी फंसी हुई है.  लिहाजा इस समय तो  मालिक को दल्ला टाइप संपादक की जरूरत होगी, जो केंद्र की सरकार में घुसपैठ कर दो नंबर के धंधे को जारी रखने में मददगार साबित हो सके। फिर क्या था, दोनो हाथ जोड़े पहुंच गए मालिक के दरवाजे पर ..।    इसने  चैनल के मालिकों  को भरोसा दिलाया  कि  वो सत्ता के गलियारे के सबसे बड़े फिक्सर हैं, कोई भी मंत्री, पार्टी नेता  उनके  उंगली के इशारे पर नाचता हुआ उनके पास चला आएगा।

मालिक को लगा कि नई - नई सरकार बनी है, क्यों ना एक छोटा सा आयोजन रख मंत्रियों को यहां बुलाया जाए । थोड़ा मंत्रियों के साथ खाना  " पीना " हो जाएगा,  जिससे मुश्किल में मंत्रियों का सहारा मिल सके। फिर चैनल  मालिक को लगा कि लगे हाथ अपने फिक्सर संपादक की औकात भी पता  चल जाएगी। बस फिर क्या ! जून महीने की तारीख तय कर ली गई, संपादक को कहा गया कि अब वो बीजेपी के सांसद और मंत्रियों का जुगाड़ करें।  ये तो संपादक के लिए  सिर मुड़ाते  ही ओले पड़ने वाली बात हो गई । अब दिल्ली के सियासी गलियारे की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है, साफ सुथरे छवि वाले लोग मंत्री बन चुके हैं।   पहले तो इस बिगडैल संपादक ने खुद कोशिश की कि किसी मंत्री से मिलने का समय मिल जाए, लेकिन समय मिलना तो दूर इसका फोन भी किसी ने नहीं उठाया । हालत ये हुई कि इस संपादक ने एक  नामचीन पत्रकार के नाम को भुनाने की कोशिश की, लेकिन ये दांव भी नहीं चला। केबिनेट मंत्री तो दूर किसी राज्यमंत्री ने भी इसे मिलने का समय नहीं दिया। एक मंत्री ने संपादक को दो घंटे तक बाहर बैठाए रखा, फिर भी मिलने से इनकार कर कहाकि उसके पास समय नहीं है । बेचारे संपादक बेआबरू होकर किसी तरह आफिस आए, यहां अपने रिपोर्टरों से ही मुंह छिपाते फिर रहे थे।

संपादक ने सबसे घटिया खेल अब शुरू किया। उसने मालिक से कहाकि " देखिए राजनीति में बहुत गिरावट आ गई है, अब ये कमीने मंत्री और नेता किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पैसे की मांग कर रहे हैं। अब मालिक की तो फंसी हुई है, उसे तो पूरा कारोबार मैनेज करना है, इसलिए तुरंत कह दिया है, हां क्यों नहीं ! अगर कार्यक्रम में आने के लिए पैसा मांगते हैं तो कोई बात नहीं,  उन्हें बुलाइये, हम तो जाते समय भी उनकी बिदाई पैसों से करने को तैयार हैं। पता है संपादक  ने क्या रेट बताया ?  सांसद 10 लाख, राज्यमंत्री 15 लाख और केबिनेट मंत्री  20 लाख । मालिक ने पूछा कि पैसे लेने के बाद कार्यक्रम में आएंगे ही, इसकी गारंटी क्या है ? संपादक ने साफ कर दिया कि इसकी कोई गारंटी नहीं है, हमें तो बस  उनकी  बातों पर भरोसा ही करना होगा। अब मालिक क्या करे, उसके लिए तो एक तरफ कुआं और दूसरी ओर खाई है। इस संपादक से दुश्मनी भी नहीं ले सकता, क्योंकि ये सिर्फ संपादक नहीं बल्कि उसका पार्टनर कहें तो गलत नहीं होगा,  क्योंकि संपादक नंबर दो का पैसा कई बार अपने चैंबर में मंगाता है और यहीं इस रकम कि  गिनती वगैरह होती है।  अब देखिए ना संपादक की चाल... आयोजन तो हुआ नहीं, लेकिन  चैनल का मालिक लगभग 50 लाख रुपये से हलका हो गया। बताया गया कि पांच मंत्री  को  पैसा पहुंचाया  जा चुका था... हाहाहाहा पहली पारी में ये संपादक मालिक को मोटा चूना लगा चुका है, एक बार फिर लूटने का पुख्ता इंतजाम कर चुका है। सवाल ये है कि क्या इसीलिए इस संपादक  का ध्यान खबरों के बजाएं  " मोटे माल " पर अधिक है ?



6 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - पुण्यतिथि आदरणीय श्री पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. चौर चौर मौसेरे भाई !!

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  3. सवाल ये है कि क्या इसीलिए इस संपादक का ध्यान खबरों के बजाएं " मोटे माल " पर अधिक है ?

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    1. ये संपादक 24 कैरेट का दल्ला है

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आपके विचारों का स्वागत है....