बात आगे बढाऊं इसके पहले एक छोटी सी कहानी सुन लीजिए। एक पति-पत्नी में हमेशा विवाद बना रहता था। इनमें कभी भी किसी भी बात को लेकर झगड़ा हो जाता था। अब देखिए ना, पति को नाश्ते में अंडा पसंद है तो पत्नी ने सुबह अंडा उबाल दिया और पति के सामने रखा। पति नाराज हो गया और अंडे की प्लेट फैंकते हुए कहा कि मेरा मन आमलेट खाने का था और तुम अंडा उबाल कर ले आई। अगले दिन पत्नी ने अंडे का आमलेट बना दिया, पति फिर नाराज ! बोली अब क्या हुआ ? पति ने कहा कि आज मेरा मन उबला अंडा खाने का था तो तुम आमलेट ले आई, फिर उसने प्लेट फैंक दिया। अगले दिन पत्नी ने बीच का रास्ता निकाला और एक अंडे का आमलेट बना दिया और दूसरे को उबाल दिया। उसने सोचा जो पसंद होगा वो खा लेगें। लेकिन पति तो तय करके बैठा है कि झगड़ा करना ही है, सो दोनों प्लेट फिर फैंक दिया और बोला कि तुम कभी कोई काम ठीक से कर ही नहीं सकती। पत्नी बोली आखिर अब क्या हुआ ? उबला अंडा भी है और आमलेट भी, जो मन हो वो खा लो। पति बोला कैसे खा लूं, जिस अंडे को उबालना था, उसका तो तुमने आमलेट बना दिया और जिसका आमलेट बनाना था उसे उबाल दिया। मीडिया भी कुछ इसी रास्ते पर है।
मीडिया की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। खैर मेरी आदत है, सुबह उठते ही टीवी आन करुं और हेड लाइन सुनने के बाद अखबार उठाता हूं। आज जैसे ही टीवी खोला तो देखा कि सभी चैनल पर एक ही खबर है, संसद पर हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु को फांसी। ये खबर जितने चैनल उतने तरीके से पेश कर रहे थे। खुद को सबसे तेज चैनल होने का दावा करने वाले चैनल पर खबर से ज्यादा ये बताने की कोशिश हो रही थी कि सबसे पहले ये खबर हमारे चैनल पर थी। अब इसमें कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि आज देश में भाई भतीजा वाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद का जहर बहुत अंदर तक घुल चुका है। सबको पता है कि उनका रिपोर्टर महाराष्ट्र का है और मंत्री भी महाराष्ट्र से हैं। मराठी एक दूसरे की चंपुई करते ही है। बहरहाल विषय पर आते हैं।
वीकेंड यानि शनिवार और रविवार को सभी चैनलों में ज्यादातर सीनियर्स छुट्टी पर रहते हैं। शनिवार को छुट्टी होने की वजह से शुक्रवार को प्रेस क्लब भी बहुत आबाद रहता है, सामान्य दिनों के मुकाबले यहां शुक्रवार को ड्रिंक्स की बिक्री भी ज्यादा होती है। अब सुबह - सुबह आफिस से सीनियर्स के यहां फोन पहुंचा कि अफजल गुरू को फांसी दे दी गई है, क्या किया जाए ? अब हड़बड़ी में सीनियर्स आफिस पहुंचे। काम में अचानक तेजी आ गई, जितने लोग उतनी तरह की बातें शुरू हो गई। एक तरफ से जोर जोर से आवाज आ रही थी कि अरे लाइब्रेरी में अफजल गुरु के जितने भी विजुअल हैं, सब निकालो। सच्चाई ये है कि चैनल पर खबर चलनी तो सभी जगह शुरू हो गई थी, लेकिन कोई लाइन नहीं ले पा रहा था कि आखिर इस खबर में लाइन क्या ली जाए ? बीजेपी के नेता भी काफी परेशान दिखाई दिए, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मीडिया में कहा क्या जाए ? फांसी देने की मांग तो बीजेपी ही सबसे ज्यादा कर रही थी, अब दे दी गई है तो क्या करें ?
मीडिया के तमाम कैमरे विपक्षी नेताओं के घर पर लग गए। मीडिया इंतजार करने लगी कि शायद बीजेपी की ओर से कोई ऐसी लाइन बोली जाए जो मीडिया की भी लाइन हो सकती है। तब तक चैनल पर कुछ-कुछ टाइम पास खेलते हैं। एक तरफ कहा जा रहा था कि कि पूरी कार्रवाई को बहुत गोपनीय रखा गया था, किसी को कानोकान खबर नहीं थी। दूसरी ओर हर चैनल के रिपोर्टर के पास अपनी अपनी एक्सक्लूसिव खबर थी। एक चैनल बता रहा था कि अफजल को शुक्रवार की शाम को बता दिया गया था कि सुबह फांसी दी जाएगी, रिपोर्टर का ये भी कहना था कि जब उसे बताया गया कि फांसी दी जानी है तो उसे यकीन नहीं हुआ कि मुझे भी लटकाया जा सकता है, फिर उसने जेल के कांस्टेबिल से पूछा कि क्या मुझे फांसी होने वाली है तो कांस्टेबिल ने हां में सिर हिलाया तो अफजल को भरोसा हो गया कि अब उसके जीवन के कुछ घंटे बचे हैं। इस रिपोर्टर का दावा है, अब आप ही समझ लें कहा गया कि कुछ लोगों को ही इसके बारे में जानकारी थी, लेकिन यहां तो कांस्टेबिल तक को पता था।
रिपोर्टर ने कहानी आगे बढाई और कहा कि फांसी की जानकारी के बाद अफजल डरा हुआ था, वो पूरी रात सो नहीं पाया, रात भर कुछ बुदबुदाता रहा, सुबह पांच बजे जब जेलकर्मी उसे जगाने पहुंचे तो वह पहले से जगा हुआ था, हालाकि रात में उसकी पसंद का खाना उसे दिया गया था, लेकिन वो कुछ भी नहीं खाया, सिर्फ पानी पिया। दूसरे चैनल पर दूसरी एक्सक्लूसिव खबर थी। वहां कहा गया कि फांसी की जानकारी अफजल को भी नहीं दी गई। सुबह पांच बजे उसे जगाकर बताया गया कि तीन घंटे बाद तुम्हें सूली पर लटकाया जाएगा। उससे कहा गया कि जाओ जल्दी स्नान वगैरह करो, इस बीच डाक्टर की टीम वहां पहुंच गई और उसका स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। सबकुछ ठीक पाए जाने पर उसे 7.30 बजे सुबह फांसी के तख्ते पर ले जाया गया और लटका दिया गया। यानि अलग अलग चैनल और उनकी अलग अलग कहानियां चल रहीं थीं।
अच्छा आमतौर पर सभी चैनलों पर सुबह - सुबह साफ्ट स्पोकेन एंकर होते हैं, उन्हें सनसनी टाइप खबरें पढ़नी तो आती नहीं हैं। अब अफजल गुरू की फांसी की खबर को ऐसे तो पढ़ा नहीं जा सकता। लिहाजा एक दो नहीं बल्कि सभी चैनलों ने अपने प्राइम टाइम एंकर को तलब किया और नौ बजे तक चैनलों का टोन बिल्कुल बदल गया। कहीं से नहीं लग रहा था कि हम सुबह का बुलेटिन सुन रहे हैं। सभी जगह करकराती आवाज गूंजने लगी। एक कमी फिर भी सभी चैनल पर दिखाई दे रही थी, किसी भी चैनल ने अब तक कोई लाइन नहीं ली थी। सामान्य तरह से खबरें पढ़ी जा रही थीं, खबर मे तड़का नाम की कोई चीज थी ही नहीं। बीजेपी से शायद सबसे पहले प्रवक्ता राजीव प्रताप रूढी की नींद खुली, वो कैमरे के सामने आ तो गए, लेकिन समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर कहा क्या जाए। बहरहाल लड़खड़ाती जुबान में उन्होंने कहाकि ये फांसी तो सही है,पर काफी देर से हुई। इसी बीच गुजरात के मुख्यमंत्री का ट्विट आया कि देर आये दुरुस्त आए।
बहरहाल मीडिया पूरे समय गुमराह रही, वो समझ नहीं पा रही थी कि ऐसे मौके पर क्या किया जाए? वैसे तो मीडिया सरकार के खिलाफ ही खड़ी होती है, तभी उसे गला फाड़ने का मौका मिलता है। अब अगर मीडिया फांसी के खिलाफ लाइन लेती है तो उसे कुछ ऐसे लोगों की भी जरूरत होगी तो खुलकर अफजल की फांसी का विरोध करें। मानवाधिकार से जुड़े कुछ लोग इसका विरोध कर सकते हैं, लेकिन इतनी सुबह तो उनकी नींद ही नहीं खुली होती है, वो तो आराम से सोते और उठते हैं। हर चैनल से सामाजिक कार्यकर्ताओं के यहां लगातार फोन घुमाया जाने लगा, उन्हें बताया गया कि अफजल गुरू को फांसी दे दी गई है, आपकी लाइन क्या है ? मेरी लाइन क्या है, ये सवाल सुनकर सामाजिक कार्यकर्ता भी हैरान हो गए। दरअसल चैनल को तलाश थी कुछ ऐसे लोगों की जो फांसी का विरोध करें, तभी तो कोई बहस आगे बढ सकती थी। घंटे दो घंटे के बाद विवादित बयान देने वाले दिग्गज कांग्रेसी दिग्विजय से पत्रकारों के हत्थे चढ़ गए, लेकिन उन्होंने भी हाथ जोड़ लिया और सभी से अपील की कि इस मामले मे राजनीति नहीं की जानी चाहिए, अब क्या, मीडिया का चेहरा उतर गया।
बहरहाल दो तीन घंटे बीते तो मीडिया को दो एक प्वाइंट हाथ लगे। मीडिया ने शोर मचाना शुरू किया कि बताइये ऐसी तानाशाही नहीं देखी गई कि जिसे फासी दी जा रही है उसके घर वालों को सूचना ही नहीं दी गई। ये मसला इशू नहीं बन पाया तब तक गृहमंत्रालय ने साफ कर दिया कि स्पीड पोस्ट से उनके घर वालों को जानकारी गई थी। अब मीडिया ने एक और सवाल खड़ा किया कि फांसी की टाइमिंग को लेकर। कहा गया कि शीतकालीन सत्र शुरू होने के ठीक पहले कसाब को फांसी दी गई और अब संसद के बजट सत्र के पहले अफजल गुरू को फांसी दे दी गई। अब सबको पता है कि लोकसभा के चुनाव कभी भी हो सकते हैं लिहाजा कांग्रेस ये दिखाना चाहती है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए वो कहीं से पीछे नहीं है।
खैर सुबह तक तो सब कुछ ठीक ठाक रहा, शाम होते होते पूरा मामला पटरी से उतर गया। सुबह जो लोग देश को राजनीति से ऊपर बता रहे है शाम होते होते माजरा ही बदल गया। मी़डिया ने भी जिस तरह से रंग बदला, लगा कि ये देश की मीडिया नहीं बल्कि अफजल की मीडिया है। सच बताऊं ऐसे मुद्दे पर जिस तरह से शाम तक कांग्रेस नेताओं ने बोलना शुरू किया, उनकी बातें सुन कर घिन्न आने लगी। सुबह तक जिस तरह से बात हो रही थी, मुझे लग रहा था कि अफजल को फांसी ऐेसे नहीं दी गई है, बल्कि पहले ट्रायल कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उसके खिलाफ फैसला सुनाया, इसके बाद राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज की तब जाकर अफजल को फांसी दी गई। लेकिन सच बताऊं कांग्रेस इस मामले को लेकर जिस तरह से सियासी फायदे की बात करने लगी उससे तो यही लगा कि अफजल को फांसी कोर्ट और राष्ट्रपति ने नहीं बल्कि कांग्रेस कोर कमेटी के फैसले के बाद पार्टी के नेता रहे प्रणव मुखर्जी और सुशील कुमार शिंदे ने दी है। खैर इस पर ज्यादा बात इसलिए भी नहीं कि देश का एक हिस्सा सुलग रहा है, कभी विस्तार से बात होगी।
बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति ,देर से ही सही धरती का एक बोझ तो कम हुआ।
ReplyDeleteजी ये बात तो सही है..
Deleteआपकी पोस्ट की चर्चा आज चर्चा मंच पर भी है!
ReplyDeleteसादर...
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी
Deleteहुआ खुदा के फजल से, अफजल काम तमाम |
ReplyDeleteसुर बदले हैं सुबह के, जैसे कर्कश शाम |
जैसे कर्कश शाम, हुआ बदला क्या पूरा |
बाकी कितने नाम, काम है अभी अधूरा |
व्यापारी मीडिया, आज कर बढ़िया सौदा |
इन्तजार में भीड़, जले कब नीड़-घरौंदा ||
वाकई अभी तो आतंक के खात्मे का काम अधूरा ही है...
Deleteबहुत बहुत आभार
ReplyDeleteबिलकुल सही चित्रण किया है आपने टीवी वालो का। मै भी येही देख कर हैरान था। अपने आपको सबसे तेज कहने वाले चेनल ने तो अफजल के भाई से चर्चा कर उसके शव को भी मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। अफजल के भाई से कहलवाया गया की हमे फांसी की सुचना तो नहीं ही दी मृत शरीर भी नहीं सौपा जिससे की हम उसका धार्मिक रीती रिवाज से अंतिम संस्कार कर पाते हालाँकि यह मुद्दा भी बाद में चल नहीं पाया। जबकि देशहित का तकाज़ा यह था की इस तरह की चर्चाये दिखाई ही नहीं जाती,लेकिन सनसनी पसंद चेनल इसे कैसे बर्दाश्त करते
ReplyDeleteशुक्रिया तुषार जी
Deleteबिलकुल सही चित्रण किया आपने चेनल वालो का . सबसे तेज वाले चेनल ने तो अफजल के अंतिम संस्कार को भी मुद्दा बनाने की कोशिश की थी।इसके लिए उन्होंने अफजल के भाई से हुई चर्चा टीवी पर दिखाई जिसमे उससे कहलवाया गया की फांसी की सुचना तो नहीं दी कम से कम उसकी लाश तो हमे देते ताकि हम धार्मिक रीती रिवाज से उसे दफना पाते।हालाँकि यह मुद्दा भी चल नहीं पाया लेकिन इससे ये जरुर स्पष्ट हो गया की चेनल वालो के लिए देश हित का कोई महत्त्व नहीं है।यदि होता तो ऐसे मुद्दे क्यों उठाये जाते
ReplyDeleteफाँसी और पहले हो जानी चाहिए थी,,,पता नही फासी देने इतनी देर क्यों की,,
ReplyDeleteRECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
जी ये बात तो सही है, क्यों देरी की, समझ में नहीं आ रहा है..
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ReplyDeleteSarkar aur bikaau media ki pole khuli. Sarkar kanoon vyavastha ki aad mein itne saalon se is paapi ko paal rahi thi... jab sab kuchh khisakta hua laga to yeh masterstroke khelne ka prayaas kiya gaya.Visual Media to kal apne nichale star ko bhi paar kar gayi.
काफी हद तक सही है आपकी बात
Deleteसहमत हूं
सरकार इतनी पथभ्रष्ट एवं कुटिल हो गई है कि उसके
ReplyDeleteकिसी भी कृत्य पर विश्वास करना लगभग असंभव
सा हो गया है और सरकार की यह " चुपके-छुपके"
संदेह को ही जन्म देती है.....
शुक्रिया
Deleteमहेन्द्र जी नमस्कार !
ReplyDeleteआप की पोस्ट पढ़ कर मज़ा आ गया ..वो इसलिए की आप की पोस्ट एक दम निष्पक्ष और एक आम आदमी के सवालों का जवाब देती है ....मैंने अखबार में नही आप की यह पूरी पोस्ट पढ़ी और एक आम आदमी की राय दे रहा हूँ |
आभार! स्वस्थ रहें !
बहुत बहुत आभार सर
Deleteशुक्रिया आपका
बहुत अच्छा लगा पोसट पढ़कर..वाकई निष्पक्ष पोस्ट है और आम जन की जिज्ञासा को स्वर देता है..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रश्मि जी,
Deleteअजीब ही हाल है....
ReplyDelete~सादर!!!
जी ये तो है.. सच कहा आपने
Deleteआपने तो मीडिया की धज्जियाँ उड़ा के रख दीं , (सरकार का जिक्र इसलिए नहीं करूँगा क्यूंकि उसकी तो हर कोई उड़ाता है)
ReplyDelete:)
सादर
मीडिया की नहीं, मीडिया के कार्यप्रणाली की..
Deletewastuisthiti ka sahi chitran........
ReplyDeleteजी शुक्रिया
Delete