दूसरों की खबर बनाने वाले संपादक आज खुद खबर बन
गए हैं। जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी के खिलाफ पहले तो ब्लैकमेंलिग का केस दर्ज
किया गया अब संपादक जी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है,
पहले तीन दिन के लिए पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया अब
उन्हें जेल भेज दिया गया हैं। खअगर जमानत ना मिली तो जेल में सपादक को 14 रातें बितानी
पड़ेंगी। सवाल ये है कि क्या अब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लड़खड़ाने लगा है ? क्या अब ये स्तंभ जिम्मेदार कंधो पर नहीं है ? ये कुछ
ऐसे सवाल हैं जिससे मीडिया को भी गुजरना होगा। मैं तो खुद इलैक्ट्रानिका मीडिया का
हिस्सा हूं, फिर भी मुझे ये कहने मे संकोच नहीं है की इस माध्यम
को अभी बहुत जिम्मेदार बनाने की जरूरत है। जिम्मेदार बनाने की प्रक्रिया क्या हो,
इस पर जरूर बहस हो सकती है।
लेकिन अगर समय रहते इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खुद को दुरुस्त नहीं किया तो आने वाले समय
में इसकी कीमत चुकानी होगी।
आप जानते ही है कि पहली बार नामचीन चैनल जी न्यूज
के संपादक ही बेचारे कैमरे की चपेट में आ गए। स्टिंग आपरेशन का जो हिस्सा सामने आया
है, उसे देखने से साफ है कि वो अपने चैनल पर चल रही
खबर को रोकने के लिए 100 करोड़ रुपये का सौदा कर रहे हैं। वैसे
तो सुधीर चौधरी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आपको याद होगा दिल्ली में एक टीवी चैनल
ने लगभग दो साल पहले एक खबर चला दी कि महिला टीचर स्कूल की बच्चियों से वैश्यावृत्ति
कराती है। इस खबर के बाद बेचारी टीचर का जीना मुहाल हो गया। उसे पब्लिक के गुस्से का
भी सामना करना पड़ा। बाद में जांच हुई तो ये खबर गलत साबित हुई। इस मामले को केंद्र
सरकार ने काफी गंभीरता से लिया और चैनल को पूरे महीने भर के लिए आफ एयर ( यानि बंद ) कर दिया। ये एतिहासिक काम तब हुआ जब इस चैनल
में यही सुधीर चौधरी ही संपादक थे। वैसे श्री चौधरी का पहले भी सीबीआई से भी पाला पड़
चुका है।
न्यूज चैनलों के संपादकों की संस्था ब्राडकास्टिंग
एडीटर्स एसोसिएशन ( बीएई) ने
अपनी संस्था की साख बचाए रखने के लिए संपादक चौधरी की सदस्यता को खत्म कर उन्हें कोषाध्यक्ष
पद से मुक्त कर दिया है। माना जा रहा था कि चैनल की साख बचाए रखने के लिए जी न्यूज
का प्रबंधन चौधरी के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई
करेगा, लेकिन प्रबंधन इसे गलत नहीं मानता है। बहरहाल संपादकों
और प्रबंधन दोनों को इलेक्ट्रानिक मीडिया की छवि की चिंता करनी चाहिए, वरना मीडिया की साख का क्या होगा ? सवाल तो ये भा बना
हुआ है कि अगर मीडिया की नैतिक शक्ति ही नहीं बचेगी और वह मुनाफे की भेंट चढ़ जाएगी
तो लोकतंत्र के एक मजबूत खंभे को ढहने से भला कौन बचा पाएगा ?
संक्षेप में पूरा मामला आपको बता
दूं, दरअसल पिछले दिनों देश मे कोल ब्लाक आवंटन का मामला
छाया रहा, सभी चैनल और अखबारों ने इस मामले में बहुत खबरें कीं।
जी न्यूज पर भी तमाम खबरें चलीं। बाद में जी न्यूज ने सीधे सीधे जिंदल की कंपनी को
टारगेट कर एक सीरीज ही चला दी। खबर गलत और सही पर हम बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन आरोप
ये लग रहा है कि खबर रोकने की कीमत लगाई गई सौ करोड रुपये। आरोप है कि इस सौदे को अंतिम
रुप देने के लिए संपादक सुधीर चौधरी खुद एक होटल पहुंच गए। वहां पहले से ही कैमरे लगाए
गए थे, जिसमें बेचारे संपादक जी की आवाज रिकार्ड हो गई। हालाकि
मैं एक बात साफ कर दूं कि संपादक सौ करोड़ रुपये अपने लिए नहीं मांगे, उन्होंने 100 करोड का विज्ञापन चैनल को देने का प्रस्ताव
रखा था।
न्यूज चैनल में पहली बार एक नई बात पता चल रही
है। कहा जा रहा है कि सुधीर चैनल के संपादक के साथ ही विजिनेस हेड भी हैं। लिहाजा विज्ञापन
के लिए वो तमाम लोगों के साथ जहां तहां मीटिंग करते रहते हैं। सच कहूं तो ये तर्क सही
हो सकता है, लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया में शायद
ये पहला उदाहरण हो कि संपादक ही चैनल का विजिनेस हेड है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोई
संपादक खबर को लेकर निर्णय करे और वही आदमी खबर को लेकर बिजनेस का निर्णय करे तो खबर
हावी होगी या बिजनेस? स्पष्ट है बिजनेस के लिए खबर हावी होगा
और उस खबर से बिजनेस होगा। जी न्यूज से यही खेल चल पड़ा है और यह खेल पेड न्यूज से
कहीं ज्यादा बदबूदार है।
मेरा मानना है कि अगर ये बात साबित हो जाती है
कि जी न्यूज के संपादक सुधीर चौधरी चैनल प्रंबधन
की जानकारी में ये सौदा करने गए थे तो अकेले चौधरी ही सजा क्यों भुगतें ?
फिर तो उतनी ही जिम्मेदारी प्रबंधन की भी है। वैसे स्टिंग आपरेशन का
खुलासा हो जाने के बाद भी आज तक प्रबंधन ने चौधरी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, इससे
तो यही लगता है कि इस पूरे मामले की जानकारी प्रबंधन को थी। खैर पुलिस अपना काम कर रही है, कुछ दिन में सारे तथ्य सामने आ जाएंगे।
लेकिन मीडिया का जो रूप सामने आया है वो बहुत
डरावना है। आज देश भर में भ्रष्टाचार एक बड़ा
मुद्दा बना हुआ है। लोगों को भरोसा की इस आंदोलन
को मीडिया का भरपूर सहयोग मिलेगा। लेकिन संपादक की गिरफ्तारी से लोगों का इस संस्था
पर से भरोसा भी कम हुआ है।
गंभीर हालत ....
ReplyDeleteशुक्रिया अनीता जी
Deleteमीडिया का जो रूप सामने आया है वो बहुत डरावना है। आज देश भर में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। लोगों को भरोसा की इस आंदोलन को मीडिया का भरपूर सहयोग मिलेगा। लेकिन संपादक की गिरफ्तारी से लोगों का इस संस्था पर से भरोसा भी कम हुआ है।
ReplyDeleteसोचनीय स्थिति...
सच में गंभीर हालात हैं
Deleteमार्मिक-
ReplyDeleteराजनेताओं से मत टकराव-
सीधी चेतावनी ||
अनैतिकता का दोषी, जितना शरणगामी होता है
ReplyDeleteउतना ही दोषी, उसका शरण दाता भी होता है..,
भारतीय संवैधानिक अधिनियम की धाराओं के अनुसार
भ्रष्टाचार का दोषी जितना उत्कोचग्राही होता है उतना ही
दोषी उत्कोच दाता भी होता है
भारतीय न्यायालय अभी इतनी बलशाली नहीं हुई हैं कि
वह ऐसे 'बड़े-बड़े' उद्योगपतियों के दोष को दण्डित कर सकें.....
सहमत हूं आपसे
Deleteआभार
क्या अब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ लड़खड़ाने लगा है ? प्रबंधन को भी जिम्मेदार माना जाना चाहिए अगर ये सब उसी के नाम पर था .......
ReplyDeleteघर की आलोचना के लिए हिम्मत जरूरी है ...और वो आप ने दिखा दी....
शुभकामनायें! (मीडिया वालों का अपने काम के प्रति सचेत होना जरूरी है )
सर आभार आपका
Deleteदेश की सरकार कार्पोरेट एजेंसियों के हाथ की पुतली बन कर रह गयी है,ऐसे में कार्पोरेट एजेंसियों पर हमला करने का मतलब सरकार की अस्मिता पर हमला करना ।पत्रकार चौथा स्तम्भ है,इसके पहले के तीन स्तम्भ भी को भी काफी हद तक कार्पोरेट एजेंसिया ही चलाती है तो अपनी इज्जत अपने हाथ ....................
ReplyDeleteसहमत हूं आपसे
Deleteदेश की सरकार कार्पोरेट एजेंसियों के हाथ की पुतली बन कर रह गयी है,ऐसे में कार्पोरेट एजेंसियों पर हमला करने का मतलब सरकार की अस्मिता पर हमला करना ।पत्रकार चौथा स्तम्भ है,इसके पहले के तीन स्तम्भ भी को भी काफी हद तक कार्पोरेट एजेंसिया ही चलाती है तो अपनी इज्जत अपने हाथ ....................
ReplyDeleteदेश की सरकार कार्पोरेट एजेंसियों के हाथ की पुतली बन कर रह गयी है,ऐसे में कार्पोरेट एजेंसियों पर हमला करने का मतलब सरकार की अस्मिता पर हमला करना ।पत्रकार चौथा स्तम्भ है,इसके पहले के तीन स्तम्भ भी को भी काफी हद तक कार्पोरेट एजेंसिया ही चलाती है तो अपनी इज्जत अपने हाथ ....................
ReplyDeleteदेश की सरकार कार्पोरेट एजेंसियों के हाथ की पुतली बन कर रह गयी है,ऐसे में कार्पोरेट एजेंसियों पर हमला करने का मतलब सरकार की अस्मिता पर हमला करना ।पत्रकार चौथा स्तम्भ है,इसके पहले के तीन स्तम्भ भी को भी काफी हद तक कार्पोरेट एजेंसिया ही चलाती है तो अपनी इज्जत अपने हाथ ....................
ReplyDeleteअपनी विरादरी के लोगों के गलत कार्यों की आलोचना करना वाकई हिम्मत और अपने काम के प्रति निष्ठा दर्शाता है,,,शुभकामनाए ,,
ReplyDeleterecent post : तड़प,,,
आभार आपका
Deleteसच जो सभी को डरावना लग रहा है, क्या ये पूरा सच है | मेरे ख्याल से पूरी सच्चाई साहमने आ ही नहीं पायेगी | ये अदालती तारीखों में ही खो जायेगी | कल को कोई और बड़ी खबर इस खबर को गुमनामी के घेरे में धकेल देगी |
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक कह रहे हैं विनीत जी, मामला अदालत में है, वहां फैसले का इंतजार हम सबको करना है, लेकिन मेरा मानना है कि आज मीडिया सवालों के घेरे में तो आ ही गई है।
Deleteक्या आपको भी लगता है की माडरेशन का विकल्ब लागू रहना चाहिए | क्या ये भी सेंसरशिप नहीं है | इस बात पर गौर जरूर करें |
ReplyDeleteमैं तो इससे सौ फीसदी सहमत हूं, वजह यहां भाषा की मर्यादा भूल कर लोग कमेंट करते हैं।
Deleteबहुत बहुत आभार सर
ReplyDeleteमिडिया पर ही आम लोग ज्यादा भरोसा करते है अब मिडिया ही सवालों के घेरे में खड़ी है..इससे गंभीर स्थिति क्या होगी..अब भरोसे का सवाल है..खैर ये कलयुग है मिडिया ने भी इसका आनंद ले लिया...:-)
ReplyDeleteहाहहाहाहाहहा
Deleteसहमत हूं आभार
भाई महेंद्र जी बहुत उम्दा पोस्ट |
ReplyDeleteहरिवंश राय बच्चन आज हमारे इस लिंक पर
www.sunaharikalamse.blogspot.com
बहुत बहुत आभार
Deleteजी जरूर
matlab ab media bhi mukhy dhara me shamil ho gaya..(shayd bhrashtachar hi aaj dekh ki mukhy dhara hai)
ReplyDeleteविचारणीय
Deleteक्या बात है, आपकी परिभाषा पर गंभीरता से विचार होना चाहिए
"राजू ! यहाँ सन्नाटा क्यूँ पसरा है..??"
ReplyDeleteराजू : -- मास्टर जी ! परसों, नरसों, सरसों यहाँ जो 'नाटक मंचन' हुवा था,
वहाँ करतल ध्वनी कारूक बुद्धिजीवियों में ये भी अपने श्रम का
प्रदर्शन कर रहे थे, 'तालश्रम' के फलस्वरूप जो धन कण मिले
आज उसके सदुपयोग कर 'माल' देखने गए हैं, इसलिए सन्नाटा है.....