Friday 5 October 2012

प्रिंट मीडिया ने खोजा “ पेड न्यूज ” का तोड़ !



रकारी सिस्टम में यही खराबी है, वो हर मामले में देर से रिएक्ट करते हैं, तब तक मामला बहुत आगे बढ़ चुका होता है। अब देखिए ना मुख्य चुनाव आयुक्त ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधान सभा चुनाव का ऐलान करते हुए एक अहम फैसला सुना दिया। कहा कि इस बार चुनाव में "पेड न्यूज" पर बहुत तगड़ी नजर रखी जाएगी। मसलन इसके लिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर ही नहीं जिला मुख्यालय पर भी अफसरों को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इन अफसरों को सभी अखबार पढ़ने होंगे। उन्हें जिस खबर पर शक होगा कि ये पेड न्यूज हो सकती है उसके बारे में पूरी जांच पड़ताल होगी। अगर साबित हो गया कि ये पेड न्यूज है तो क्या कार्रवाई होगी। कार्रवाई क्या होगी, इस मामले में आयोग चुप ही रहे तो ज्यादा बेहतर है, क्योंकि इनके पास कार्रवाई करने का बहुत ज्यादा अधिकार तो है नहीं।

बड़े हुक्मरानों को पता नहीं ऐसा क्यों लगता है कि वो सब कुछ जानते हैं। बड़े से बड़ा फैसला ले लेते हैं, पर उस धंधे की अंदरुनी जानकारी करने की कोशिश ही नहीं करते। अब मुख्य निर्वाचन आयुक्त साहब को कौन समझाए कि आज कल पैसे इसलिए नहीं लिए जाते हैं कि उनकी खबर छापी जाए, अरे भाई अब तो पैसे इस बात बनते हैं कि आपके बारे में कोई  खबर नहीं छापी जाएगी। भाई आयुक्त साहब देर से रियेक्ट करेंगे तो ऐसा ही होगा ना। कितने दिनों से पेड न्यूज की बात चली आ रही है, लेकिन साहब कोई फैसला ही नहीं कर पाए, अब इन्होंने किसी तरह फैसला लिया तो मुद्दा ही बदल गया है। जब मीडिया के बारे में फैसला ले रहे हैं तो कुछ मीडिया वालों  से चुपचाप बात भी कर लेनी चाहिए थी ना, अब ऐसा थोड़े है कि सब "पेड न्यूज" के गोरखधंधे में हैं।

आइए आपको अंदर की बात बताता हूं। आयुक्त साहब आप भी सुन लीजिए, आपके ज्यादा काम की बात है। दरअसल मीडिया ने देखा कि खबर छापने का पैसा तो बहुत कम है। चुनाव के दौरान अगर पूरे पेज में किसी उम्मीदवार के बारे में खूब अच्छी-अच्छी बात कर ली जाए तो मिलता कितना है, महज 32 हजार रुपये। इसके लिए नेता जी की कितनी मशक्कत करनी पड़ती है, उन्हें कितना मनाना पड़ता है, इसके फायदे गिनाने होते हैं, यूं समझ लीजिए कि एक आदमी पूरे दिन उनके पीछे पीछे लगा रहता है। एक बार नेता जी से बात करो फिर आफिस में पूरा पेज तैयार करके उन्हें दिखाओ की ठीक है ना। कई चक्कर लगाने के बाद नेता जी कहते हैं कि ठीक है इसे छाप दो। अब नेता जी तो चुनाव में बिजी हैं, इसलिए पेमेंट की बात करना तो बेमानी है।

मेरी बात एक अखबार के संपादक से हो रही थी, बेचारे बहुत दुखी थे। कहने लगे सब लोग पेड न्यूज-पेड न्यूज कह कर ऐसा शोर मचा रहे हैं, जैसे हम लोगों ने देश ही बेच दिया है। अब क्या बताऊं लोगों को कि हमारे लिए पेड न्यूज कितना रिस्की है, इसके बारे में तो आयोग जानता नहीं है। मैं भी सन्न रह गया कि आखिर ऐसी क्या बात है। मैंने पूछा क्या हो गया, क्यों इतना दुखी हैं। उन्होंने अपनी दराज से एक फाइल निकाली, कुछ पन्ने पलटने के बाद एक पेज हाथ में लिया और मुझे सुनाने लगे। दरअसल इसमें वो हिसाब था जो पिछले चुनाव में बतौर पेड न्यूज नेताओं ने अपनी वाह-वाही तो छपवा ली पर दूसरा चुनाव होने को है, पेमेंट आज तक नहीं किया। अब चुनाव आया है तो ऊपर से दबाव बढ गया है कि पहले नेताओं का बकाया भुगतान ले लो, उसके बाद आगे की बात की जाए। जाहिर हमें भी लग रहा था कि वसूली हो जाएगी, लेकिन "पेड न्यूज" के बारे में आयोग ने ऐसी टिप्पणी कर दी कि नया तो दूर पुराना भुगतान मिलना मुश्किल है।

बहरहाल संपादक कि ये बात तो सही है। अब देखिए ना चुनाव के दौरान अगर नेताओ से पेमेंट की बात की जाए तो ऐसा लगता है कि हमारा उनके चुनाव में इंट्रेस्ट नहीं हैं, हम तो बस अपने पैसे के लिए पीछे लगे हैं। चुनाव के नतीजे आने के बाद जो जीतता है वो जीत की खुशी में सब कुछ भूल जाता है और जो हारता है वो भूमिगत हो जाता है। लिहाजा दोनों सूरत में "पेड न्यूड"  एक तरह से हमारे लिए "डेड न्यूज" बनकर रह जाती है। संपादक कहने लगे जब तक ये विज्ञापन था तब तक तो ठीक था, विज्ञापन से जुड़े लोग ये काम करते थे। इसे तो आप लोगो ने ही न्यूज का नाम दे दिया, अब बेवजह हमारी जिम्मेदारी बढ़ गई।

बहरहाल कुछ देर की बात के संपादक थोड़ा खुल से गए और उन्होंने दो कप चाय मंगा ली। चाय की चुस्की ली फिर लंबी सांस खींचने के बाद बोले श्रीवास्तव जी, वैसे अब हमने रास्ता बदल दिया है। मैने देखा कि नेताओं के बारे में बड़ी बड़ी बातें लिखीं जाएं, फिर उसे छापें तो पब्लिक में अखबार की छवि खराब होती है। सरकार भी आंखे टेढ़ी करती है। इससे अच्छा है कि हमने नेताओं के ही दो आदमी को अपना बना लिया है। बस इनके जरिए नेताओं के पास खबर पहुंचा देते हैं अखबार में नेता जी के खिलाफ फलां खबर छपने वाली है। ये खबर छप गई तो नेता जी की जमानत जब्त होने से कोई रोक नहीं सकता। अब क्या है कि खबर भी नहीं छापते, पैसा भी "पेड न्यूज" के मुकाबले कई गुना आ जाता है। सबसे बड़ी बात ये कि यहां बकाये का कोई कालम नहीं है। न ही नेता जी के यहां पेमेंट के लिए कोई चक्कर लगाया है। खुद नेता जी कई दफा फोन करके कहते हैं कि मैं मिलना चाहता हूं।

संपादक ने अपनी बताने के बाद कहाकि वैसे आप लोगों को तो अब बहुत दिक्कत होगी। मैने कहा क्यों, हम लोग कौन सी खबर किसी की छाप रहे हैं कि दिक्कत होगी। यहां तो सबकुछ साफ है। सामने जो होता है, वही सबको दिखाते हैं। कहने लगे अरे श्रीवास्तव जी "ये पब्लिक है, सब जानती है" । बहरहाल मुझे अब संपादक की बात अच्छी तो नहीं लग रही थी, लेकिन मैने कहाकि आप क्या कहना चाहते हैं, खुल कर कहिए। कहने लगे भाई सरकार की मुश्किल "पेड न्यूज" ना पहले कभी थी ना आज है। सरकार की मुश्किल इलेक्ट्रानिक मीडिया है, जो सुबह शुरू होते हैं तो शाम तक उसी खबर को अलग अलगे स्वाद में परोसते रहते हैं। अब सरकार मीडिया पर नजर रखेगी तो आप सबकी मुश्किल बढ़ने वाली है। मैं उनकी बात समझ नहीं पा रहा था, बाद में उन्होंने खुल कर समझाया। कहने लगे देखिए पैसे का लेन देन क्या हो रहा है ये तो कोई देख नहीं रहा है। जो कुछ सामने है वही जनता भी देख रही है और सरकार भी। मैने कहा बिल्कुल सही बात है, यही तो हमारी विश्वसनीयता है। हमारा तो सारा काम ही कैमरे की नजर के सामने होता है। सब कुछ पारदर्शी है।

संपादक कहने लगे वैसे आप बेवकूफ दिखाई तो नहीं दे रहे हैं, लेकिन बातों से मुझे शक हो रहा है। उनकी बात मुझे ठीक नहीं लगी, इसलिए मैं चुप हो गया। मेरे चुप होते ही उन्होंने बोलना शुरू किया तो फिर चुप होने का नाम ही नहीं। कहने लगे अब सरकार भी देखेगी एक नई बनने वाली पार्टी को आप कितना समय दिखाते हैं, फिर आपसे भी सवाल होगा कि भोपाल गैसकांड के पीड़ित कई महीनों तक जंतर मंतर पर जमा रहे, आपने उन्हें कितना दिखाया। आपसे ये भी सवाल होगा कि मणिपुर में कई साल से अनशन कर रही इरोम शर्मिला को आपने कितनी देर दिखाया और जो 10 दिन के लिए बैठे उन्हें कितने समय तक दिखाते रहे। ये भी पूछा जाएगा कि नेशनल न्यूज चैनल है पर कितने राज्यों की खबरें कितने समय तक दिखाते हैं। कहने लगे चैनल से भी पूछा जाएगा कि जो अभी राजनीति में आने वाले हैं, उन्हें आप कितना समय दे रहे हैं और जो लोग कई साल से राजनीति में हैं उनके लिए आपके पास कितना समय है। संपादक इसी बात से खुश नजर आ रहे थे कि प्रिंट के साथ-साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया की गर्दन पर भी तलवार लटक रही है। खैर असली तस्वीर तो आने वाले वक्त में साफ होगी। लेकिन संपादक के चेहरे की खुशी देखकर मुझे एक कहानी याद आ गई।

एक आदमी ने ठंड के दिनों में गंगा किनारे कठोर तपस्या की। भगवान उसकी तपस्या से खुश हुए और उसे दर्शन देने को प्रकट हो गए। भगवान ने कहा मांगो कोई भी एक वरदान मैं अभी पूरा कर दूंगा। तपस्वी के समझ में नहीं आया कि एकदम से वो क्या मांग ले। काफी देर सोचने के बाद उसने कहा कि भगवन मुझे अभी तो कुछ नहीं चाहिए, लेकिन मुझे ये वरदान दें कि मैं जब जो चाहूं वो पूरा हो जाए। भगवान उलझन में पड़ गए कि अब क्या करें, ऐसे तो अगर ये लालची हो गया तो मुश्किल खड़ी कर सकता है। भगवान ने सोचा कि इसे वरदान तो देना पडेगा, ऐसे में कुछ शर्तें लगा देते हैं। भगवान कहा ठीक है तुम जो चाहोगे, जब चाहोगे वो पूरा हो जाएगा, लेकिन एक शर्त है। तुम जो भी मांगोगे वो तुम्हें मिलेगा, लेकिन तुम्हारे पड़ोसी को उसका दोगुना मिल जाएगा। तपस्वी ने कहा ठीक है, कोई दिक्कत नहीं।

तपस्वी घर आया, उसने अपनी पत्नी से कहा अब हमारी सारी मुश्किलें खत्म समझो, बोली वो कैसे। तपस्वी ने भगवान को याद किया और कहाकि मेरी ये झोपड़ी एक आलीशान बंगले में तब्दील हो जाए। देखते ही देखते जैसे जादू हो गया, सामने आलीशान बंगला तैयार हो गया, लेकिन पत्नी खुश होने के बजाए दुखी हो गई, क्योंकि उसके पड़ोसी के पास दो आलीशान बंगले हो गए। पत्नी ने कहा कि तपस्या तुमने की और उसका ज्यादा फायदा तो पड़ोसी को मिल रहा है। पत्नी ने कहा कि ये वरदान तो तुम वापस ही कर दो। तपस्वी परेशान होकर फिर गंगा के तट पर तपस्या करने पहुंच गया। अभी तपस्या शुरू भी नहीं की थी कि संत की वेषभूषा में एक व्यक्ति मिला और पूछा कि तुम क्यों परेशान हो ? तपस्वी  ने पूरी कहानी बताई और कहा कि तपस्या तो मैने की लेकिन उसका दोगुना फायदा पड़ोसी को मिल रहा है। इस पर साधु ने जोर का ठहाका लगाया और कहाकि इसमें परेशानी की क्या बात है, तुम खराब वरदान मांगों। उससे उसे दोगुना नुकसान होगा।

तपस्वी को लगा कि ये बात तो बिल्कुल ठीक है। वो घर आया और पत्नी को बुलाकर कहा देखो अब मेरा खेल। उसने भगवान को याद किया और कहाकि मेरे एक आंख की रोशनी खत्म हो जाए। पत्नी खुश हो गई क्योंकि पड़ोसी की दोनों आंखो की रोशनी गायब हो गयी। तपस्वी ने कहाकि मेरा एक पैर टूट जाए, पड़ोसी की दोनों टांगे टूट गई। ऐसे ही तपस्वी रोज उल्टी चीजें मांगता और इस बात में खुश रहता कि अरे पड़ोसी की तो दुगना नुकसान हो रहा है ना। लेकिन इस बात से बेखबर था कि कुछ नुकसान तो उसका भी हो रहा है।

हाहाहाहाह। संपादक की बात से भी कुछ ऐसा ही लगा। वो इस बात से ज्यादा दुखी नहीं थे कि "पेड न्यूज" को लेकर अखबारों की किरकिरी हो रही है, उन्हें इस बात की खुशी ज्यादा थी कि अब चैनलों पर भी सरकार की नजर रहेगी।    
 



50 comments:

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    1. जी, मीडिया के बारे में भी जानकारी जरूरी है

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    1. बनिया डंडी मार के, ग्वाला पानी बेंच ।

      चतुर सयाने लें कमा, पैदा करके पेंच ।

      पैदा करके पेंच, नाप पेट्रोल कमाता ।

      बेचारा अखबार, चला के क्या है पाता ।

      पेड़ न्यूज दे छाप, काँप लेकिन अब जाता ।

      पीछे दिया लगाय, हाय क्यूँ यहाँ विधाता ।।

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  3. बहुत ही सशक्‍त लेखन ।

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  4. ये अन्दर की बात है :)

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  5. मार्कण्‍डेय पाण्‍डेय5 October 2012 at 04:35

    बहुत ही अच्‍छा आलेख है।

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  6. @इसलिए पेमेंट की बात करना तो बेमानी है।


    नेता लोगों से पेमेंट निकालना वैसे भी टेडी खीर है.... हम तो पोस्टर छापते समय ही ८०% अडवांस ले लेते हैं.

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    1. हाहाहहााह.....
      बिल्कुल आप ठीक करते हैं। चुनावी पोस्टर में तो सौ फीसदी पहले ले लीजिएयय

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  7. sahi kaha vyakti dusron ke nuksan se bahuut khush hota hai pr apna bhi kuchh bura ho raha hai ye nahi sochta
    dhnyavad
    rachana srivastava

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    1. हां ये बात सही है...
      बहुत बहुत आभार

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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    1. बहुत बहुत आभार आद. शास्त्री जी

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  9. लोगों की यही मेंटालिटी है की वो अपने दुःख से दुखी नहीं होते दूसरों की ख़ुशी से दुखी होते हैं और दूसरों को दुखी देख खुश होते हैं यहाँ भी यही बात साबित हो रही है बहरहाल अन्दर की बातें पता चली हैं बहुत शानदार आलेख बधाई हो आपको |आपका नया ब्लॉग बहुत सुन्दर है

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    1. जी बिल्कुल
      आज समाज के हर क्षेत्र में यही देखने को मिल रहा है.

      नए ब्लाग पर आपका स्नेह बना रहना रहे, यही कामना है।

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  10. हा हा हा हा हा ....एक के बाद एक बार और करारा कटाक्ष यहाँ भी जारी है ...श्रीवास्तव जी ...आपका ये ही सच बोलने का अंदाज़ आपको सबसे अलग करता है

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  11. नए ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ.
    बहुत -बहुत बधाई.
    थोड़ी व्यस्तता के कारण अभी तसल्ली से पोस्ट नहीं पढ़ सकूँगी..जल्द लौटती हूँ .

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  12. मीडिया की अंदर की बातों का खुलासा अच्छा लगा .... आभार

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  13. बहुत बढ़िया आलेख..
    काफी बाते पता चली..
    :-)

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  14. बेहतरीन आलेख
    http://eksacchai.blogspot.com

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  15. महेंद्र भाई श्रीवास्तव साहब !यही तो दिक्कत है इस बीमार व्यवस्था में सब गोल माल कर रहें हैं .लेकिन हिमायत बराबर की नहीं पा रहें हैं .अब देखो एक आरोप केजरीवाल साहब ने वाड्रा के खिलाफ लगाया पूरे कांग्रेसी ऐसे निकल आये जैसे बरसात में सांप अपने बिल से निकल आते हैं .अखबार और प्रिंट मीडिया को एक दूसरे को कोसना पड़ता है .यह ना -इंसाफी है .इन्हें समझना चाहिए हम तो एक ही बिरादरी हैं .नेता सारे अपनी पगार बढवाने के लिए अप्रत्याशित एका दिखाते हैं और जन संचार वाले एक दूसरे की ही डेमोक्रेसी (ऐसी की तैसी )करते रहतें हैं .ऐसा कब तक चलेगा ?

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai http://veerubhai1947.blogspot.com/ रविवार, 7 अक्तूबर 2012 कांग्रेसी कुतर्क

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  16. महेंद्र भाई श्रीवास्तव साहब !यही तो दिक्कत है इस बीमार व्यवस्था में सब गोल माल कर रहें हैं .लेकिन हिमायत बराबर की नहीं पा रहें हैं .अब देखो एक आरोप केजरीवाल साहब ने वाड्रा के खिलाफ लगाया पूरे कांग्रेसी ऐसे निकल आये जैसे बरसात में सांप अपने बिल से निकल आते हैं .अखबार और प्रिंट मीडिया को एक दूसरे को कोसना पड़ता है .यह ना -इंसाफी है .इन्हें समझना चाहिए हम तो एक ही बिरादरी हैं .नेता सारे अपनी पगार बढवाने के लिए अप्रत्याशित एका दिखाते हैं और जन संचार वाले एक दूसरे की ही डेमोक्रेसी (ऐसी की तैसी )करते रहतें हैं .ऐसा कब तक चलेगा ?

    Virendra Sharma ‏@Veerubhai1947
    ram ram bhai http://veerubhai1947.blogspot.com/ रविवार, 7 अक्तूबर 2012 कांग्रेसी कुतर्क

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  17. बहुत बढ़िया ....इंसान अपने दुःख से इतना दुखी नहीं है ..जितन दूसरे के सुख से है ....सुन्दर !!!

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  18. तपस्वी की कहानी का उदाहरण खूब दिया..संपादक जी का भी यही हाल है.
    बाकि ..ये पब्लिक है बहुत कुछ जानती है शेष अब आप की कलम से जानेंगे.

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    1. हाहाहहाा
      आपने इतने ध्यान से पढा, बहुत बहुत आभार

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  19. वाह क्या बात बिना किसी डर , भय के बेखोफ सत्य को उजागर कर दिया बहुत खूब अच्छा लगा |

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    1. बहुत बहुत आभार,
      आप सब का यही स्नेह मुझे निर्भीक बनाता है

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  20. संपादक कहने लगे वैसे आप बेवकूफ दिखाई तो नहीं दे रहे हैं, लेकिन बातों से मुझे शक हो रहा है। उनकी बात मुझे ठीक नहीं लगी, इसलिए मैं चुप हो गया।
    ये सामने वाले को चुप करने का अचूक नुस्खा है !
    मिडिया की अन्दर की बाहर की बहुत सारी जानकारी मिली !
    कहानी सबसे बड़ी अच्छी लगी ....हमारे नुकसान से ज्यादा पडोसी के नुकसान
    पर खुश होना इसे सैडिस्टिक प्लेजर कहते है !

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  21. जी, बिल्कुल
    सच में आपने बहुत मन से लेख को पढ़ा.
    आपका बहुत बहुत आभार

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  22. midiya,printmediya ki ander ki baate aapke lekh se hi jaan paate hain.....jan kar aur ant me kahani padh kar hansi aur vishad dono hi hain....

    apke lekh par ek baat...samunder ki gahraayi samunder me ja kar hi pata ki ja sakti hai.

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    1. ओह, सच में आपका बहुत बहुत आभार

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आपके विचारों का स्वागत है....