Sunday 10 March 2013

ये हैं शहादत के सौदागर, मीडिया भी मौन !


कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या की जितनी भी निंदा की जाए वो कम है। मैं जानता हूं कि परिवार में किसी अहम सदस्य के ना होने से कैसी मुश्किलें आतीं हैं। परिवार के दुख के साथ मैं खुद को शामिल करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि इस दुख को सहने की ताकत सीओ के परिवार को प्रदान करें। इसके अलावा मैं ये भी चाहूंगा कि इस मामले में जो लोग  भी शामिल हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। अभियुक्त कितने ही ताकतवर क्यों ना हों, परिवार को न्याय हर हाल में मिलना ही चाहिए। ये तो रही मेरी बात। लेकिन सच बताऊं उनकी  हत्या की जितनी निंदा की जाए उससे कहीं ज्यादा निंदा उनकी 13 महीने पुरानी पत्नी परबीन आजाद की भी होनी चाहिए, जिसकी मांगो की सूची लगातार बढ़ती जा रही है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को तो इसमें मुस्लिम वोट बैंक दिखाई दे रहे हैं। सबकी बात करुंगा, लेकिन सबसे पहले मीडिया की चर्चा !



कुंडा में सीओ जियाउल हक की हत्या के कुछ देर बाद ही उनकी पत्नी परवीन मीडिया के सामने आ गईं और उन्होंने सूबे की सरकार में मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया को निशाने पर लिया और कहा कि इस वारदात के लिए वही जिम्मेदार हैं। ये भी कहाकि कुछ दिन से जिया बहुत परेशान थे। राजा भइया की गिनती बाहुबलियों में होती है, वो इलाके के असरदार नेता हैं, इसके साथ ही उनके खिलाफ दर्जनों अपराधिक मामले दर्ज हैं। मैने देखा की राजा भइया का नाम आते ही मीडिया ने सब कुछ छोड़ दिया और दो बातों को लेकर शोर मचाना शुरू किया। पहला राजा भइया के इलाके में सीओ की हत्या और दूसरा राजा भइया इस्तीफा कब देंगे ? मीडिया ने ये जानने की कोशिश ही नहीं की कि आखिर पूरा घटनाक्रम है क्या ? कैसे एक पुलिस अधिकारी की हत्या हो गई, जबकि उसके साथी पुलिस वालों को खरोंच तक नहीं आई। फिर क्या गोली आमने-सामने चली या धोखे से मारा गया सीओ को। मीडिया खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया में आधी अधूरी खबरों पर गला फाडते दिखाई दिए रिपोर्टर।

बहरहाल सूबे की सरकार पर दबाव बढ़ता देख राजा भइया से इस्तीफा तो ले लिया गया, या ये कहें कि राजा भइया ने इस्तीफा दे दिया, पर क्या इतने से बात बन जाती है। जांच पड़ताल हुई नहीं मीडिया ने दूसरी लाइन ले ली, राजा भइया गिरफ्तार कब होंगे ? अरे भाई गिरफ्तार तो तुरंत किया जा सकता है, लेकिन बिना जांच पड़ताल और ठोस सबूत के गिरफ्तार करने से फायदा क्या है? अगले ही दिन कोर्ट में पुलिस की ऐसी तैसी हो जाएगी कि किस आधार पर गिरप्तार किया गया है। बहरहाल घटना के बाद लगभग सप्ताह भर तो मीडिया ट्रायल चलता रहा और मुख्यमंत्री ये नहीं समझ पा रहे थे कि उन्हें करना क्या चाहिए, वो मीडिया की रिपोर्ट के आधार पर दौड़ भाग करते नजर आए। नतीजा ये हुआ कि जो सुबूत  पुलिस गांव से या और पूछताछ से जमा कर सकती थी, उससे चूक गई। अब गांव में सन्नाटा पसरा है, ज्यादातर युवा  गांव से पलायन कर चुके हैं। कुछ सुवूत पुलिस या सीबीआई के हाथ लगती भी है तो मुझे नहीं लगता कि कोई गवाह उन्हें मिल पाएगा। बहरहाल ये तो सरकारी काम है, चलता रहेगा।

अब कई तरह की बातें सामने आ रही हैं। एक टीवी चैनल की ग्राउंड रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि गांव के प्रधान को गोली मारे जाने की खबर मिलने पर सीओ तीन पुलिस वालों को साथ लेकर गांव पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि प्रधान को गोली लगी है और खून से लथपथ है। खुद सीओ प्रधान को लेकर अस्पताल पहुंचे, लेकिन यहां डाक्टरों ने प्रधान को मृत घोषित कर दिया।  बताया जा रहा है कि सीओ प्रधान के शव को वापस लेकर गांव पहुंचे, जहां कई सौ लोग  गुस्से में बैठे हुए थे। इनमें कई लोगों के पास तो हथियार भी था। यहां दोबारा सीओ आए तो उनके साथ आठ पुलिस वाले थे। इस समय तक कुछ अंधेरा भी हो चुका था। बताया गया कि  जिया और उनके साथ पुलिस वालों ने भीड़ को हटाने  की कोशिश की, इसी दौरान सीओ अपने साथी पुलिस वालों से बिछड़ गए और भीड़ उन्हें धकियाते हुए मृतक प्रधान के घर के पीछे ले गई। अब सीओ बुरी तरह फंस चुके थे, बताया जा रहा है कि यहां आत्मरक्षा में सीओ ने गोली चलाई, जो वहां मौजूद प्रधान के भाई को लगी और उसकी भी मौत हो गई। इससे भीड़ में से ही किसी ने गोली दाग दी, जो सीओ को लगी और उनकी भी मौत हो गई।

हालाकि एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। जब खून से सने प्रधान को सीओ अस्पताल ले गए और डाक्टरों ने उसे मृत घोषित किया तो वो शव को कैसे वापस गांव ले गए। क्योंकि ये  आपराधिक मामला था और परिवार को बिना पोस्टमार्टम के शव नहीं सोंपा जा सकता था फिर सीओ बिना पोस्टमार्टम के शव वापस लेकर कैसे आ गए ? ये सब जांच का विषय है, जांच रिपोर्ट में इसका खुलासा होगा। बाद में एक कहानी और देखने को मिली की सीओ ने राजा भइया की हिस्ट्रीशीट बनाई थी, इस हिस्ट्रीशीट पर सीओ के हस्ताक्षर थे, इससे राजा भइया के लोग उनसे नाराज थे। एक पुरानी बात आपको बताता चलूं। मायावती के शासन में जब राजा भइया के खिलाफ सख्त कार्रवाई चल रही थी और उन्हें उनके पिता को भी गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त मैं अमर उजाला अखबार में प्रतापगढ जिले का प्रभारी था। उसी दौरान उन पर पोटा लगा था। तब तो उनकी हिस्ट्रीशीट वहां आम थी, सब को पता था कि उनके खिलाफ कितने मामले कहां कहां किन किन धाराओं में चल रहे हैं। अच्छा अब तो चुनावों में आपराधिक मामलों की जानकारी देनी होती है, लिहाजा ये कहना कि हिस्ट्रीशीट की वजह से राजा भइया सीओ से नाराज थे आसानी से ये बात गले नहीं उतरती। बहरहाल मैं अपने अनुभव  के आधार पर कह सकता हूं कि अब मामले की निष्पक्ष जांच संभव है ही नहीं। सीबीआई की जांच के लिए ठोस गवाहों की जरूरत पडेगी और उस इलाके में गवाह मिलना ही मुश्किल है। मुझे तो लगता है कि खुद पुलिस वाले आसानी  से गवाही को तैयार नहीं होंगे। खैर जांच  होने दीजिए, सब सामने आएगा। यहां हम इतना जरूर कहेंगे कि पूरे प्रकरण मे मीडिया का रोल बहुत ही बचकाना था।

अब बारी आती है सीओ की पत्नी परवीन आजाद की। उनके प्रति मेरी पूरी सहानिभूति है। लेकिन उनका रवैया बहुत ही निंदनीय है, जिस तरह से वो अपने पति की मौत का सौदा कर रही हैं, देखकर हैरानी हो रही है। परबीन को ये नहीं भूलना चाहिए कि सीओ जियाउल हक पर उनकी  जिम्मेदारी तो थी, लेकिन परिवार में वो अपने बूढे माता पिता के भी सहारा थे। जो रवैया परवीन अपनाए हुए हैं, उससे तो यही लगता है कि जिया की मौत के बाद सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाएं वो खुद और अपने परिवार वालों को दिलाना चाहती हैं। मसलन उन्होंने मृतक आश्रित के तौर पर नौकरी के लिए एक दो नहीं आठ लोगों के नाम यूपी सरकार को दिए हैं, आइये देखिए किसका-किसका नाम दिया है।

1.   परबीन  आजाद ( पत्नी )
2.   सोहराब अली,  ( देवर )
3.   फहरीन आजाद,  ( छोटी बहन)
4.   इस्माइल अहमद  ( जीजा )
5.   मुजीबुर्हमान      ( ननद के पति )
6.   कनीज फातिमा   ( ननद )
7.   रजिया खातून     ( ननद )
8.   रुस्तम अली    ( चचेरे देवर )

ये सूची परबीन आजाद ने सरकार को सौंपी है। वैसे कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने पांच लोगों को नौकरी देने का भरोसा दिलाया था, जिसमें कहा गया था कि उसे सीओ स्तर की नौकरी दी जाएगी और बाकी लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार समायोजित करने की कोशिश होगी। बहरहाल मुख्यमंत्री ने परबीन आजाद को विशेष कार्याधिकारी ( ओएसडी ) और उनके  भाई सोहराब को सिपाही के पद पर नियुक्ति के आदेश कर दिए हैं। मालूम हो कि परवीन आजाद को सीधे डीएसपी रैंक की नौकरी देने की मांग उठ रही थी लेकिन यह पद लोक सेवा आयोग से सृजित होने की वजह से उक्त पद पर सीधे तैनाती नही दी जा सकती। ऐसे में डीएसपी के समकक्ष वेतनमान में परवीन को विशेष कार्याधिकारी का दर्जा दिया गया है। लेकिन परबीन ने इस पद पर तैनाती से इनकार कर दिया है। परवीन का कहना है कि उसे मुख्यमंत्री ने डीएसपी बनाने का ऐलान किया था और वह उसी पद पर तैनाती लेगी। परवीन इतना ही नहीं वो सीओ तो बनना ही चाहती है और अपनी तैनाती भी कुंडा मांग रही है।

अब मैडम को कौन समझाए कि ये सब हिंदी सिनेमा में तो हो सकता है, लेकिन सरकार में संभव नहीं है। उन्हें पता होना चाहिए कि डिप्टी एसपी लोकसेवा आयोग का पद है और सरकार इस पर सीधे नियुक्ति कर ही नहीं सकती है। निरीक्षकों को प्रोन्नति देकर जब डीएसपी पद पर तैनाती दी जाती है, तब भी उनकी प्रोन्नति शासन नहीं करता है। ये प्रक्रिया लोकसेवा आयोग से पूरी की जाती है। ऐसे में परवीन आजाद की मांग पूरी होना संभव ही नहीं है। वैसे पहले भी ऐसी स्थितियों में अधिकारियों की पत्नियों को ओएसडी का ही दर्जा दिया गया है। अच्छा परबीन को ना जाने कौन क्या समझा रहा है वो चाहती हैं सीबीआई के जितने अधिकारी जांच में लगे हैं, सभी का बायोडेटा सरकार उन्हें  मुहैया कराए। हाहाहहाहाहहाहहा। परबीन मैडम मेरी पूरी सहानिभूति आपके साथ है, लेकिन आप कुछ ज्यादा ही डिमांडिंग होती जा रही हैं। पहले तो आपको मालूम होना चाहिए कि आपको मृतक आश्रित के तौर पर नौकरी दी जा रही है, जिससे आप अपना और जिया के परिवार का भरण पोषण आसानी से कर सकें। ये नौकरी आपको  बदला लेने के लिए नहीं दी जा रही है। वीरता पुरस्कार  भी मांगा जा रहा है, अब पूरे  प्रकरण में कहीं वीरता तो दिखाई नहीं दी।

वैसे मेरा अनुभव रहा है कि मृतक आश्रित के तौर पर पत्नी को नौकरी दी जाती है, वो तो कुछ समय बाद दूसरी शादी कर लेती हैं, इससे सबसे बड़ी मुश्किल माता-पिता को होती है। क्योंकि एक तो वो अपने बेटे को खो देते हैं, दूसरे मिली हुई सरकारी सुविधाएं पत्नी लेकर दूसरे के घर चली जाती है। मुझे लगता है कि भविष्य में मृतक आश्रित की नौकरी देने पर कुछ शर्तें भी जरूर होनी चाहिए, जिससे माता पिता के भी अधिकारों की रक्षा हो सके। खैर ये सब बाद की बातें है, अभी तो परबीन आजाद की ऐसी ऐसी मांगे सामने आ रही हैं,  जिससे हैरानी भी होती है और हंसी भी आती है। अब बताइये मृतक आश्रित के तौर पर आठ लोगों को नौकरी दिए जाने की मांग की गई है। मुझे नहीं पता कि सीओ साहब जब जिंदा थे तो अपने वेतन से इन लोगों की कितनी मदद किया करते थे।

बात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की। उन्हें कानून व्यवस्था ही नहीं पार्टी का वोट बैंक  भी  तो देखना है। राजा भइया के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हैं तो ठाकुर मतदाता नाराज हो जाएंगे, प्रधान परिवार की अनदेखी हो ही नहीं सकती, क्योंकि वो यादव है और बेचारे सीओ साहब अल्पसंख्यक । सच तो यही है कि मुसलमान, यादव और ठाकुर ही समाजवादी पार्टी के आज की तारीख में ठोस वोटर हैं। बेचारे तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें आखिर करना क्या चाहिए। अब एक बात बताइये इस पूरे घटनाक्रम  में या तो पुलिस की गलती होगी या फिर प्रधान और ग्रामीणों की। अब मुख्यमंत्री दोनों ही परिवार में जाकर मत्था टेक आए। देवरिया तो इसलिए चले गए कि परबीन आजाद ने सीओ के शव को दफन करने से ही इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि जब तक मुख्यमंत्री यहां नहीं आएंगे तब तक शव को दफन नहीं किया जाएगा। बेचारे पार्टी के एक  मुस्लिम चेहरे को साथ लिए और पहुंच गए परबीन आजाद की अदालत में।

देवरिया से लखनऊ पहुंचे तो उन्हें लगा  कि राजा भइया इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसे में अगर प्रधान परिवार के लोगों से ना मिला गया तो सूबे में यादव बिरादरी पर भी  बुरा असर पड़ सकता है, लिहाजा मुख्यमंत्री ने बिना देरी किए अगले दिन कुंडा पहुंच गए। अब भाई कोई एक आदमी तो इस पूरे मामले के लिए जिम्मेदार होगा ही ना। रिपोर्ट में किसी का नाम तो आएगा ही, अब क्या संदेश जाएगा कि मुख्यमंत्री ने कथित अभियुक्तों के घर का चक्कर लगाया था। खैर राजनीति है बहुत कुछ करना होता है। लेकिन मुख्यमंत्री जी आपको एक सलाह है, राजनीति और वोट के चक्कर में कुछ ऐसा वैसा ना कर दें कि आगे मुश्किल में पड़ जाएं। आपने सीओ के परिवार के पांच लोगों को नौकरी देने का भरोसा दिया है, अगर आगे दूसरे लोग भी ऐसी ही मांग करने लगे तो फिर आपके सामने बहुत मुश्किल होगी। वैसे भी अगर ये मामला कोर्ट में पहुंच गया तो मुझे लगता है कि सरकार की किरकिरी तय है।


हाहाहा चलते-चलते कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी की भी बात करनी जरूरी है। राहुल  को लगा कि वो तो चूक गए, बेचारे काफी परेशान थे। इस बीच जब उन्होंने देखा कि यूपी की सरकार ने पूरे मामले की सीबीआई की जांच की संस्तुति कर दी है और सीबीआई ने इसे स्वीकार कर लिया है तो राहुल ने भी अपनी गाड़ी देवरिया की ओर मोड़ दी। हो सकता है वो बताने गए हों कि अब ये मामला उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं रह गया है, ये मामला अब दिल्ली से देखा जाएगा। क्योंकि सीबीआई का मुख्यालय दिल्ली में है। वैसे भी कांग्रेस पर आरोप लगता रहता है कि सीबीआई का मतबल सेंट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन नहीं बल्कि कांग्रेस ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन है। राहुल गांधी को लग रहा था कि अब तमाम नेता यहां आकर जा चुके हैं, लिहाजा उनके  जाने का कोई खास मतलब नहीं है, लेकिन सीबीआई का मामला ऐसा था कि उन्हें पूरा भरोसा था कि परिवार के लोग उन्हें भी बैठने के लिए कुर्सी जरूर देंगे।


हुआ भी ऐसा ही। लगभग घंटे भर सीओ की पत्नी परबीन और उनका पूरा परिवार राहुल गांधी  के साथ रहा। राहुल बार-बार समझाते रहे कि आप सबके साथ न्याय होगा। लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर राहुल किस न्याय की बात कर रहे हैं, लेकिन कुछ  देर बाद सीओ के परिवार को समझ में आ गया कि अरे भाई अब तो मामला सीबीआई  के पास है और सीबीआई के मालिक तो राहुल गांधी की कांग्रेस ही है ना। खैर किसी ने राहुल के कान में फूंका कि अगर सच में नंबर वन बनना चाहते हैं तो कुछ और करना होगा, क्योकि अभी तक एक भी फोटो नहीं हो पाया है। विचार होने लगा कि आखिर क्या किया जाए, तय हुआ कि राहुल को कब्रिस्तान ले चला जाए और वहां जियाउल के कब्र के पास खड़ा कर तस्वीर खिंचवा दी जाए, कम से कम  अखबारों में कुछ तो छपेगा ही। बस फिर क्या, राहुल पहुंच गए कब्र और खिंच गई फोटो।   तभी तो अब देश के शायर भी नेताओं से मजे लेते रहते हैं।

ये कैसी अनहोनी मालिक, ये कैसा संयोग ।
कैसी-कैसी कुर्सी पर हैं, कैसे- कैसे लोग।।

राजनीति में सौ-सौ जूते खाने पड़ते हैं।
कदम कदम पर सौ-सौ बाप बनाने पड़ते हैं।।





मित्रों !  मेरे दूसरे ब्लाग आधा सच पर भी आपका स्वागत है। यहां मैं बताने की कोशिश करुंगा कि कैसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की निजी यात्रा को सरकारी बनाया गया। मंत्री शिष्टाचार की बात कर रहे हैं, बात शिष्टाचार की है तो घर पर भोजन कराइये ना, अपने खर्च से। सरकारी पैसे की बर्बादी क्यों ?
जिसने सिर काटा, उसे सिर पर बैठाया !
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32 comments:

  1. शुक्रिया सर
    बहुत बहुत आभार

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  2. sale sab chor hai sab kuch de do in musalmano ko

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  3. sab sale chor hai sab kuch de do in musalmano ko

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    1. मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं, पर इस भाषा का समर्थन बिल्कुल नहीं कर सकता।

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  4. agar ab bhi sare hindu ek nahi hue to hum fir ek baar gulam honge musalmao ke

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    1. मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं, पर इस भाषा का समर्थन बिल्कुल नहीं कर सकता।

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  5. सच मौत का सौदागर सुना था, आज देख रहा हूं। निंदनीय।

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  6. शोकाकुल परिवार से गहरी सहानुभूति-
    किन्तु क्या-

    हो सकता है क्या नहीं, रिश्ते अब असहाय |
    खर्चा पूरा नहिं पड़े, नाम लिस्ट में आय |
    नाम लिस्ट में आय, सभी का हक़ पर हक़ है -
    जीजा देवर बहन, खफा इन से नाहक है |
    शायद पहली मौत, देश में इतनी चर्चा |
    उठा रही सरकार, सभी नातों का खर्चा ||

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    1. जी, बिल्कुल। परिवार के प्रति सहानिभूति तो बिल्कुल होनी चाहिए, मुझे भी है।
      लेकिन सौदेबाजी, इसे क्या कहें।

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  7. आदरणीय महेंद्र सर आपके ब्लॉग पर जब भी आता हूँ हैरान हो जाता हूँ आपके द्वारा प्रस्तुति हर एक रचना मानवता को सीख देती है.

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  8. माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर।
    आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर।।

    यहाँ ऐसा मशहूर है कि तोप की अर्ज़ी दो तब तमंचा मिलता है. जिन्होंने केवल अपना वाजिब हक़ माँगा उन्हें वह भी नहीं मिला. राजनेता दबाव में न हों तो इरोम के बरसों पुराने अनशन पर भी ध्यान नहीं देते.
    गन्ना रस दे तो समझो दबाव पड़ रहा है.
    सीबीआई पूरी गंभीरता से जांच करती है चाहे उसे अभियुक्त के अंतिम सांस तक करना पड़े.
    सुश्री मायावती जी के शासनकाल में राजा भैया के निवास पर पुलिस अधिकारी श्री आर. एस. पांडेय जी ने छापा मारा था। उसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकियां दी गईं और फिर एक दिन उन्हें सड़क पर किसी वाहन से कुचल कर मार दिया गया। सन 2004 से उस केस की जांच सीबीआई कर रही है। जांच अभी चल ही रही है।
    अब ज़िया उल हक़ के क़त्ल कि जांच और शामिल हो गयी.
    दुनिया में न्याय होता, ख़ासकर भारत में न्याय हो जाया करता तो 'पाण्डेय' जी को तो मिल ही गया होता. जो हक़ 'पाण्डेय' को न मिला, वह ज़िया को मिल जाए. ऐसे सपने ज़रूर संजोने चाहियें. सपने भी मर गए तो इंसान फिर किस भरोसे जियेगा ?
    राजनीति न्याय को खा चुकी है.
    See:
    ज़ालिमों के दरम्याँ मज़लूम, सौदागर जाना जाय रे !

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    1. डा. साहब, सीओ के परिवार के प्रति हम सबकी सहानिभूति है। मैने पहले ही कहा है कि इस घटना के लिए जो भी जिम्मेदार लोग हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए।

      मैं तो ये कह रहा हूं कि एक ओर हम सीओ की वीरता की बात कर रहे हैं, दूसरी ओर इतनी घटिया बातें चल रही हैं। जितने लोगों के लिए नौकरी मांगी गई है, लगता नहीं है कि एक खास वर्ग से जुड़े होने की वजह से सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश है।
      बताइये परबीन आजाद को सीओ बनना है और कुंडा में तैनाती भी चाहिए। क्या संदेश देना चाहती हैं सरकार उन्हें मौका दे, जिससे वो बदला ले सकें। मुझे लगता है कि गलत लोगों की सलाह पर कुछ भी अनाप शनाप बोल रही है परवीन।

      खैर अब सीबीआई की जांच चल रही है, राहुल गांधी ने भी न्याय दिलाने का भरोसा दिया है। फिर तो इंतजार करना चाहिए।

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  9. हक़ का हक़ है-
    हक़ बेशक मिले-
    नाहक
    लिस्ट लम्बी हो गई है-
    सादर-

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    1. जी, यही बात मैं भी कह रहा हूं।
      ऐसा लग रहा है कि एक खास वर्ग से जुड़े होने की वजह से सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश हो रही है।

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  10. सीओ के परिवार के प्रति हम सबकी सहानिभूति है। सार्थक आलेख.

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  11. ये अन्दर की बातें ..और ऐसी राजनीति पर मुझ जैसे तो अपना मुहँ खुला और चौड़ी आँखे कर हैरान और परेशान ही हो सकते हैं ...कितना होम-वर्क करते हैं आप लोग
    धन्य हैं ...
    शुभकामनाये आपके स्वास्थ्य के लिए |

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    1. सर, मुझे पता है कि आपकी आंखो में तकलीफ है, फिर भी आपने इतने लंबे लेख को पढ़ा और आशीर्वाद दिया। आपका बहुत बहुत आभार।

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  12. पत्नी परबीन आजाद अपने पति के मौत को लेकर सरकार को ब्लैक मेल कर रही है,,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

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    1. जी, जो दिखाई दे रहा है, उससे तो यही लगता है।
      ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें उनके पति की हत्या का नहीं बल्कि एक खास वर्ग से जुड़े होने की वजह से सरकार अतिरिक्त तवज्जो दे रही है।

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  13. कौन क्या कर रहा है क्या सोच रहा है क्या खिचड़ी पका रहा है ये राजनीति में कोई नहीं बता सकता | शायद बीवी को टिकेट की आस हो राजनीति में आने के लिए इसलिए ये सारा प्रपंच रचा रही हो कौन जाने असलियत क्या है | राजनीती गोरख धंधा है |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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    1. राजनीति के बारे में तो मैने दो लाइन लिख ही दिया है। हाहाहा
      हां वैसे परबीन आजाद महत्वाकाक्षी है, कुछ भी फैसला कर सकती हैं।

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  14. आपकी ये पोस्ट पढ़कर लगता है कि मीडिया हो या सरकार जनता को तो किसी घटना का सच बताने वाला ही नहीं है कोई.... ऊपर से ये खेल , सच में दुखद है

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    1. जी,बिल्कुल यही हालत है। मीडिया के बारे में क्या कहूं, बस जितनी बड़ी घटना उतना बड़ा गला फाड़ते हैं, तथ्यों तक जाने की कोई जहमत नहीं उठा रहा। नेताओं को तो सब देख ही रहे हैं।

      आभार

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  15. MIDIYA KI MAYA BHI GAZAB HAI,KAHI TIL KA TAD AUR KAHIN TAD KA TIL BHI NAHI,IS CHAYTHE STAMBH KO KYA HO GYA ?

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    1. सच, मैं आपकी इस बात से तो पूरी तरह सहमत हूं।
      बिल्कुल सही..

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  16. बहुत सही और सार्थक पोस्ट..

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आपके विचारों का स्वागत है....