स्टिंग आपरेशन की बात हो तो लोगों की पहली प्रतिक्रिया होती है कि कौन बड़ा आदमी कैमरे की लपेटे में आ गया, दूसरा सवाल होता है कि आखिर ये महान काम करने वाला चैनल कौन सा है। लेकिन आज मैं जिस स्टिंग आपरेशन का जिक्र कर रहा हूं यहां उल्टा हो गया है। पहली बार एक नामचीन चैनल के संपादक ही बेचारे कैमरे की चपेट में आ गए। वो अपने चैनल पर चल रही खबर को रोकने के लिए 100 करोड़ रुपये का सौदा कर रहे थे। इस मामले में संपादक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो गई है। उधर न्यूज चैनलों के संपादकों की संस्था ब्राडकास्टिंग एडीटर्स एसोसिएशन ( बीएई) ने अपनी संस्था की साख बचाए रखने के लिए इस संपादक की सदस्यता को खत्म कर उन्हें कोषाध्यक्ष पद से मुक्त कर दिया है।
इस विषय पर आने से पहले आप संपादक और चैनल के बारे में जान लीजिए। चैनल का नाम है जी न्यूज और इसके संपादक ने यहां कुछ महीने पहले ही कार्यभार ग्रहण किया है, नाम है सुधीर चौधरी। वैसे तो सुधीर चौधरी किसी परिचय के मोहताज नहीं है। आपको याद होगा दिल्ली में एक टीवी चैनल ने लगभग दो साल पहले एक खबर चला दी कि महिला टीचर स्कूल की बच्चियों से वैश्यावृत्ति कराती है। इस खबर के बाद बेचारी टीचर का जीना मुहाल हो गया, उसे पब्लिक के गुस्से का सामना करना पड़ा। बाद में जांच हुई तो ये खबर गलत साबित हुई। इस मामले को केंद्र सरकार ने काफी गंभीरता से लिया और चैनल को पूरे महीने भर के लिए आफ एयर ( यानि बंद ) कर दिया। ये एतिहासिक काम तब हुआ जब इसै चैनल में यही सुधीर चौधरी संपादक थे। वैसे श्री चौधरी का सीबीआई से भी पाला पड़ चुका है।
खैर अब ये सुधीर जी न्यूज के संपादक है। दरअसल पिछले दिनों देश मे कोल ब्लाक आवंटन का मामला छाया रहा, सभी चैनल और अखबारों ने इस मामले में बहुत खबरें कीं। जी न्यूज पर भी तमाम खबरें चलीं। बाद में जी न्यूज ने सीधे सीधे जिंदल की कंपनी को टारगेट कर एक सीरीज ही चला दी। खबर गलत और सही पर हम बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन आरोप ये लग रहा है कि खबर रोकने की कीमत लगाई गई सौ करोड रुपये। बताया जा रहा है कि इस सौदे को अंतिम रुप देने के लिए संपादक सुधीर चौधरी खुद एक होटल पहुंच गए। वहां पहले से ही कैमरे लगाए गए थे, जिसमें बेचारे संपादक जी की आवाज रिकार्ड हो गई। हालाकि मैं एक बात साफ कर दूं कि संपादक सौ करोड़ रुपये अपने लिए नहीं मांगे, उन्होंने 100 करोड का विज्ञापन चैनल को देने का प्रस्ताव रखा था।
वैसे एक बात है जी न्यूज चैनल और जिंदल की कंपनी में छिड़े विवाद को दो तरह से देखा जा सकता है। एक हम इसे पेड न्यूज कह सकते हैं, मतलब उन्होंने खबर रोकने के लिए पैसे की मांग की थी, दूसरी तरफ इसे ब्लैकमेलिंग भी कहा जा सकता है। अब आप अपनी सुविधानुसार तय कर लें कि ये पेड न्यूज है यै ब्लैकमेलिंग। बहरहाल जिंदल की कंपनी ने संपादक पर आरोप भर नहीं लगाया है बल्कि उन्होंने दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में बकायदा रिपोर्ट दर्ज कराई है और पुलिस ने इस मामले में जांच भी शुरू कर दी है। इस बीच मामले की गंभीरता को देखते हुए ब्रॉडकास्टिंग एडिटर्स एसोसिएशन (बीइए) ने बैठक कर सुधीर की सदस्यता को समाप्त कर दिया, वो संस्था के कोषाध्यक्ष भी थे, इस पद से भी उन्हें मुक्त कर दिया गया। बहरहाल संपादकों की चिंता छवि की है और चिंतन इस पर भी हो रहा है कि मीडिया की साख का क्या होगा ? सवाल बना हुआ है कि अगर मीडिया की नैतिक शक्ति ही नहीं बचेगी और वह मुनाफे की भेंट चढ़ जाएगी तो लोकतंत्र के एक मजबूत खंभे को ढहने से भला कौन बचा पाएगा ?
वैसे जी न्यूज ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया है, लेकिन एफआईआर में जिन सबूतों का जिक्र है उससे जी ग्रुप सवालों के घेरे में है। आज देश में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। इसमें मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। राजनेताओं को भी यह लगता है कि मीडिया के बिना उनका काम नहीं चल सकता। यह अलग बात है कि इन दिनों पारंपरिक राजनीतिक दल से अलग हटकर अन्ना आ गए हैं। यानी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए एक नया चेहरा आया है। ऐसे समय में मीडिया का सवालों के घेरे में आना दुर्भाग्यपूर्ण है। लोग किस पर विश्वास करें और अपना मत सुनिश्चित करें, क्योंकि एक भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। जिस मीडिया को अपनी सशक्त व धारदार भूमिका निभानी चाहिए वह आर्थिक सुधार की दौर में पेड़ से गिरे पत्ते की तरह हवा में उड़ रही है। उसकी न कोई दिशा है और न कोई मंजिल। सच कहूं तो आज मीडिया को भी बाजार संचालित कर रहा है, जहां बात मुद्दों की नहीं मुनाफे की ज्यादा हो रही है। नीरा राड़िया का टेप भी हम सब भूले नहीं है। जिसमें बड़े-बड़े मीडिया के चेहरे बेनकाब हुए । इसी दौर में यह खबर आती है कि भ्रष्टाचार को उजागर करने में जो न्यूज चैनल (जी न्यूज) सबसे आगे दिख रहा था, वह अब जांच के घेरे में है, क्योंकि खबरें न दिखाने के लिए पैसे मांगने के आरोप से वह घिरा हुआ है।
वैसे एक अहम सवाल है। जिंदल ग्रुप सीधे पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने तो नहीं ही पहुंचा होगा, पहले उसने चैनल के मालिकान से बात करने की कोशिश जरूरी की होगी। वहां कोई सुनवाई ना होने पर ही रिपोर्ट लिखाई होगी। सवाल उठता है कि संपादक सुधीर जो कुछ कर रहे थे क्या उसे जी न्यूज के मालिकों का भी समर्थन हासिल था? अगर हां तो हम कह सकते हैं कि अब मीडिया को लोकतंत्र का चौथैा खंभा नहीं बल्कि उद्योग का दर्जा दे दिया जाना चाहिए। आपको पता है वसूली और ब्लैकमेलिंग की जो धाराएं एफआईआर में है वह किसी आम आदमी पर लगी होती तो क्या होता ? उसे 24 घंटे के भीतर नोटिस भेजकर पूछताछ के लिए पुलिस मुख्यालय में बुलाया जाता। अगर वह नहीं आता तो उसे एक दूसरा नोटिस भेजा जाता। फिर वह हाजिर नहीं होता तो उसे गिरफ्तार करने का फरमान जारी हो जाता। इसके बाद उसे गिरफ्तार कर पूछताछ होती और पूछताछ के बाद बयान रिकार्ड कर सबूत को जांच के लिए भेजते। रिपोर्ट आने पर पूरा मामला कोर्ट में जाता। इस सारी कार्रवाई को करने में 15-20 दिन लगते। लेकिन इस मामले एक मीडिया ग्रुप के संपादक और मालिक के खिलाफ केस है तो उसे भला कौन छूएगा ? क्योंकि मीडिया की जरूरत सत्ता को भी है और भ्रष्ट होते पुलिस अधिकारियों को भी।
न्यूज चैनल के लिए सबसे शर्मनाक ये है कि संपादक के खिलाफ इतने गंभीर आरोप लगने के बाद भी कोई आत्ममंथन करने को तैयार नहीं है। जी न्यूज के मालिकान अपने संपादक सुधीर चौधरी के साथ खड़े हैं, यही वजह है कि आज तक सुधीर को चैनल से बाहर नहीं किया गया है। एक बात मुझे हैरान करती है कि जब भी बात होती है मीडिया के लिए लक्ष्मण रेखा खींचने की तो संपादकों की यही संस्था बीईए इसे मीडिया की आजादी पर हमला बताती है। देश को भरोसा दिलाया जाता है कि हम खुद अपने ऊपर नियंत्रण करेंगे। सवाल ये है कि क्या इतना बड़ा मामला सामने के आने के बाद ये संस्था कोई ठोस पहल करेगी या फिर खुद को असहाय बताकर खामोश रह जाएगी। आज जब भ्रष्टाचार का मुद्दा राजनीति को हिला रहा है, वही भ्रष्टाचार अगर मीडिया में आ जाए तो सत्ता और सरकार का काम और आसान हो जाएगा।
न्यूज चैनल में पहली बार एक नई बात पता चल रही है। कहा जा रहा है कि सुधीर चैनल के संपादक के साथ ही विजिनेस हेड भी हैं। लिहाजा विज्ञापन के लिए वो तमाम लोगों के साथ जहां तहां मीटिंग करते रहते हैं। सच कहूं तो ये तर्क सही हो सकता है, लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया में शायद ये पहला उदाहरण हो कि संपादक ही चैनल का विजिनेस हेड है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोई संपादक खबर को लेकर निर्णय करे और वही आदमी खबर को लेकर बिजनेस का निर्णय करे तो खबर हावी होगा या बिजनेस? स्पष्ट है बिजनेस के लिए खबर हावी होगा और उस खबर से बिजनेस होगा। जी न्यूज से यही खेल चल पड़ा है और यह खेल पेड न्यूज से कहीं ज्यादा बदबूदार है।
बहरहाल अब इस मामले में तय किया गया है कि तीन वरिष्ठ पत्रकार जी न्यूज के संपादक से आरोपों के बारे में पूरी जानकारी लेंगे। इसके बाद बीईए एक नतीजे पर पहुंचेगी। अगर बीईए को लगता है कि सुधीर के खिलाफ पुख्ता प्रमाण है, तो संपादक के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करे, इससे पहले जी न्यूज प्रबंधन से कहा जाएगा कि वो खुद ही सुधीर को चैनल से बाहर करें। एक बड़ा सवाल ये है कि खबर रोकने के लिए जिंदल के आदमियों से पैसे की मांग करने के मामले में हफ्ते भर पहले रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद भी मीडिया में खबर क्यों नहीं बनी ? खबर ना बनाने से आज मीडिया पर चोर चोर मौसेरे भाई का आरोप लगाया जा रहा है। बहरहाल अब जी न्यूज की भी साख दांव पर लगी है, देखना है वो संस्था की साख बचाने के लिए ठोस पहल करते हैं या फिर राजनीतिज्ञों की तरह जांच की रिपोर्ट के आने की बात करते हैं। किसी तरह का भ्रम ना हो इसलिए मैं यहां बीईए ने जो कार्रवाई की वो पत्र और सुधीर चौधरी का जवाब भी यहां शामिल कर रहा हूं।
Sudhir Chaudhary removed from primary membership of the BEA
New Delhi, 18.10.2012
The Executive Committee of the Broadcast Editors’ Association (BEA) met to discuss and consider the report of the three-member Fact Finding Committee, comprising Mr N. K. Singh, Mr Dibang and Mr. Rahul Kanwal, in the matter of the issues of professional ethics emanating out of the allegations leveled by Jindal Steel and Power Limited against Mr Sudhir Chaudhary, Treasurer, BEA and Editor, Zee News, on October 18, 2012.
As the BEA is a body of editors of electronic news channels which seeks to ensure high standards in journalism, such an exercise had become imperative in the light of allegations made against one of its members.
After having satisfied itself that all possible and credible sources of information had been heard and investigated and all available material on the issue perused, the three-member fact-finding committee arrived at the following unanimously held conclusion “that Mr. Sudhir Chadhary is found to have acted in a manner that is unbecoming of an editor and in a fashion that is prejudicial to the interest and objects of the BEA”.
On the basis of the rules provided in the constitution of the BEA it was decided to arrive at a conclusion by putting the issue to a secret ballot. Subsequent to the vote by members of the Executive Committee, the BEA resolved to remove Mr Sudhir Chaudhary as member of the BEA. Mr Supriya Prasad, Managing Editor, Aajtak was the returning officer for the vote.
The committee also decided to appoint a new treasurer at its next meeting.
Shazi Zaman, President
NK Singh, General Secretary
www.beaindia.org
Sudhir Chaudhary’s Response to BEA
October 18, 2012 (6.45pm)
Mr. Shazi Zaman
President
Broadcast Editor’s Association (BEA)
New Delhi.
Sub: Your letter (via email) today informing me of my removal from the membership of the BEA is a premeditated and prejudicial pronouncement by Ethics Committee in violation of natural justice causing prejudice to me.
Dear Shazi,
Respectfully, I write this letter to you in anguish and pain at the disregard the BEA and the Ethics Committee (Committee) has shown for justice and fairness to fellow Editors in adjudicating on a canard sought to be spread by Naveen Jindal, MP.
The BEA/Committee has chosen, perhaps advertently, to ignore my repeated submissions in black and white and denied me representation and an opportunity to safeguard my Constitutional Rights in a criminal complaint pending against me and Samir Ahluwalia. Instead, BEA/Committee has relied on the false, malicious, and distractive propaganda unleashed by Naveen Jindal against me and Samir Ahluwalia and caused deep prejudice to both of us.
Given the unprecedented and over-reaching mandate trusted in your hands as a self-regulatory body for individual broadcast editors in their personal capacity, this is to place on the record that the BEA/Committee has fallen prey to the distractive machinations of the prime accused in the “Coalgate scam,” now recognized as the biggest abuse of natural resources in the history of the country.
Sadly, the pronouncement is a result of infancy of systems at BEA/Committee and the association’s inability to manage a handful of eager-beaver agendas, including, but not limited to, those of Editors on the Committee who I have removed from appearing on my channel.
The one-sided pronouncement is bad in law and unfair in the eyes of natural justice.It has not only sought to compromise my professional position, but also undermine my legal defence despite the clear forewarning and Constitutional position on the subject shared with you vide letter on October 17. 2012.
The BEA has come into being as a self-appointed self regulatory body with an avowed objective of not succumbing to external powers. The BEA/Committee mandate therefore should have been to examine the journalistic process in the ever-changing milieu of the way the government conducts its business and the way business sometimes works hand-in-glove with the government. The BEA/Committee therefore had to rise above amateurish notions that can be created upon the first-glance of concocted evidence especially when this involves exposing the high and mighty as was the case in the Naveen Jindal episode. This didn’t happen and the evidence wasn’t shared with me and Samir Ahluwalia.
It is in pursuit of larger good that means justify the end. At a time when the mainline media, including channels of Editors on the Committee, had fallen silent on India’s biggest ever scam, attempts by media houses like Zee to bring out the final truth is being muzzled and I am sad to say BEA has chosen to side with the mighty and powerful.
As regards your failure to stick to the process of fairness and due diligence in your suo motu probe, I wish to place again before you my repeated submissions for a fair hearing which the Committee repeatedly denied me and Samir Ahluwalia:
1. Denial of nomination even as BEA Ethics Committee allowed Naveen Jindal the facility: Please refer my letter dated October 16 to you seeking the nomination facility as per the norm of parity. This opportunity was denied to me.
2. Denial for one-on-one hearing and cross-examination with Naveen Jindal: This was sought in a communication addressed to you on 16th October but again the opportunity was denied while I was called for personal hearing again on October 17.
3. Deliberate attempt to tarnish my image by leaking details of Ethics Committee proceedingsinitiating a trial by media: I brought this out in details in my letter on October 16th since a section of the press carried detailed stories on Jindal’s hearing at your end quoting “sources” in the probe committee.
4. Deliberate attempt to prejudice my legal defense: The BEA did not take cognizance of my plea dated October 17 which requested that the proceedings undertaken by you would deserve to be kept in abeyance till such time the investigation in the false allegations made by Naveen Jindal are investigated by the police and we are not prejudiced in any manner by being compelled to share and disclose all such true details and relevant facts in an exercise which is in public domain and as such, any disclosure would not be permissible in law.
5. Denial of my right to see the evidence presented by Naveen Jindal via his nominees.
6. Pressure tactics of summoning me for hearings at a short notice even on the precise dates and timings I was to depose before police authorities as also not being given due notice to participate and talk to the Governing Body including the one conducted today (October 18): Please refer to my communication addressed to you today morning expressing my inability to heed to your request to attend the emergency meeting convened this morning given that there has been insufficient notice given to me.
7. An unseemly hurry to wind up the proceedings well before 15 days enshrined as the suggested time frame at the initial stages.
In view of the above, I fear that the move to pick up the Naveen Jindal case suo motu may have been inspired by the ulterior motive to tarnish me and my colleague Samir Ahluwalia. I chose all along to cooperate in the interest of bringing out the truth and my own commitment to self-regulation, given the fact that I had played my own part in the creation of BEA. Your letter today removing me from the membership has unfortunately confirmed my worst apprehensions. I would like the BEA/Committee to correct the wrong done to me on the above counts. As expressed in my letter of October 18, 2012, Samir Ahluwalia and I request a personal hearing before a Review Committee and the Governing Body and to be allowed appropriate hearing.
Yours sincerely
Sudhir Chaudhary
ये सत्य है कि मीडिया बिकाऊ है .... चिंता का विषय भी ...आखिर किस पर विस्वास करें
ReplyDeleteइस दौर में समाचारों पर भरोसा भी नहीं होता ये भी भ्रष्ट सिस्टम का एक हिस्सा है ...सार्थक लेख
देखिए कुछ लोगों की वजह से पूरे मीडिया को कटघरे में खड़ा करना मीडिया के साथ इंसाफ नहीं होगा। मैं जानता हूं बहुत सारे लोग हैं जो आज भी इसे मिशन के तौर पर आगे बढा रहे हैं।
Deleteहां कुछ ऐसे लोग जरूर हैं, जिनकी वजह से मीड़िया कटघरे में खड़ी हो जाती है।
आम जनता को कुछ भी पता नहीं चल पाता...लोग खबरों को ही सच मानेंगे...क्या कहा जाए|
ReplyDeleteजी बिल्कुल सावधानी जरूरी है
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteशुभकामनायें ।।
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाई जी ||
खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।
मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।
सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष, करे जो खबर खभरना ।।
खबर खभरना = मिलावटी खबर
आज जहाँ देखो वहीं ये हाल है,,,,सभी मौके की तलाश में रहतें है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
बिल्कुल सही, सहमत हूं
Deleteआप बधाई के पात्र हैं ,महेन्द्र जी !
ReplyDeleteआपके इष्ट आपको बुराई से दूर रखें ....
कीचड़ में कमल खिला रहे !
शुभकामनाएँ!
सर आपका ये स्नेह बना रहे,
Deleteमैं हमेशा आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करुंगा
सार्थक लेख....
ReplyDeleteशुक्रिया सुमन जी
Deleteजी बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1033 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
शुक्रिया
Deleteबहुत बहुत आभार
वैसे जी न्यूज ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया है, लेकिन एफआईआर में जिन सबूतों का जिक्र है उससे जी ग्रुप सवालों के घेरे में है। आज देश में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। इसमें मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। राजनेताओं को भी यह लगता है कि मीडिया के बिना उनका काम नहीं चल सकता। यह अलग बात है कि इन दिनों पारंपरिक राजनीतिक दल से अलग हटकर अन्ना आ गए हैं। यानी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए एक नया चेहरा आया है। ऐसे समय में मीडिया का सवालों के घेरे में आना दुर्भाग्यपूर्ण है। लोग किस पर विश्वास करें और अपना मत सुनिश्चित करें, क्योंकि एक भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। जिस मीडिया को अपनी सशक्त व धारदार भूमिका निभानी चाहिए वह आर्थिक सुधार की दौर में पेड़ से गिरे पत्ते की तरह हवा में उड़ रही है। उसकी न कोई दिशा है और न कोई मंजिल। सच कहूं तो आज मीडिया को भी बाजार संचालित कर रहा है, जहां बात मुद्दों की नहीं मुनाफे की ज्यादा हो रही है। नीरा राड़िया का टेप भी हम सब भूले नहीं है। जिसमें बड़े-बड़े मीडिया के चेहरे बेनकाब हुए । इसी दौर में यह खबर आती है कि भ्रष्टाचार को उजागर करने में जो न्यूज चैनल (जी न्यूज) सबसे आगे दिख रहा था, वह अब जांच के घेरे में है, क्योंकि खबरें न दिखाने के लिए पैसे मांगने के आरोप से वह घिरा हुआ है।
ReplyDeleteखबरिया चैनलों का कमोबेश कोर्पोरे -टी- करण हो चुका है अब प्रबंधक ही सम्पादक होता है .प्रिंट मीडिया में भी सम्पादक दिखाऊ तीहल ज्यादा होता है ,नौकर होता है वह .पत्रकारिता में से गणेशशंकर विद्यार्थी तत्व
विलुप्त प्राय :है .
बढ़िया खबर लाये हैं आप .बधाई .पेशकश और चिंता भी आपकी वाजिब रही .
आपका शुक्रिया
Deleteस्टिंग आपरेशन भी कमाल का हुनर है...बड़े बड़े सूरमाओं को भी चित करने से पीछे नहीं हटता....बहुत बढ़िया प्रस्तुति ..
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार
Deleteलगता है, हमें आने वाले वर्षों में प्रायोजित समाचार यानी झूठे समाचार ही ज्यादा देखने-सुनने को बाध्य होना पड़ेगा। विडंबना है कि झूठ के सीने में ही सच दफ्न होगा।
ReplyDeleteमैं सहमत हूं आपसे
Delete"पाठकों, श्रोताओं एवं दर्शकों को नीर में से क्षीर निकालना
ReplyDeleteआता है, कोयले में आग लगा कर रोटियाँ सेकना बहुत अच्छे
से आता है....."
"पाठकों, श्रोताओं एवं दर्शकों को नीर में से क्षीर निकालना
ReplyDeleteआता है, कोयले में आग लगा कर रोटियाँ सेकना बहुत अच्छे
से आता है....."
आपने लेख को पढा, यहां आईं आपका बहुत बहुत आभार
Delete" मुझे अच्छे-अच्छे लेखों में गंदे-गंदे लोगों के बारे में पढ़ना
Deleteबहुंत अच्छा लगता है....."
हां ये बात तो सही है,
Deleteवैसे नीतू मैं लोगों को कभी गंदा नहीं कहता, उनकी करतूंते उन्हें गंदा बनाती हैं।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
Deleteमीडिया हो या राजनीति ...हम सब जानते है कि आपके यहाँ सच ही पढ़ने को मिलता है और कुछ नया भी .....आज बात मीडिया की आई है तो आपकी चिंता वाजिब है
ReplyDeleteक्यों कि आप इसी क्षेत्र से जुड़े हुए है ...और ये खबर तो वैसे भी बहुत बड़ी है