Friday 19 July 2013

MEDIA : अब तो हद हो गई !



च कह रहा हूं, आने वाले समय की आहट हम सब सुन नहीं पा रहे हैं। इसका नतीजा किसी एक को नहीं, बल्कि हम सबको भुगतना पड़ सकता है। जरूरी है कि मीडिया एक बार फिर प्रोफेशन से हटकर मिशन बनकर उभरे। एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है, वो ये कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने पर राजनीतिक दल के साथ अचानक मीडिया उन्हें लेकर क्यों आक्रामक हो गई है ? मोदी कुछ भी बोलते हैं तो उनके एक शब्द को लेकर बुद्धू बक्से (टीवी) पर बहस शुरू हो जाती है। अब कांग्रेस के नेता... सॉरी,  उनके हास्य कलाकर कैमरे के सामने आते हैं और कुतर्क करने में जुट जाते हैं। अच्छा मोदी का विरोध नेता करें तो बात समझ में आती है, लेकिन मोदी के किसी बात को लेकर अगर मीडिया उसे मुद्दा बनाकर बहस करने लग जाए तो जाहिर है मीडिया पर सवाल खड़े होंगे ही। अब देखिए उत्तराखंड की तबाही को लेकर महीने भर से मीडिया घड़ियाली आंसू बहाती रही, लेकिन उत्तराखंड के पीडि़तों की मदद के लिए हैदराबाद में मोदी की रैली में आने वालों से पांच रूपये सहायता मांग लिया गया गया तो केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने सबसे पहले जहर उगला, और कहा कि मोदी की हैसियत के हिसाब से उनके भाषण की फीस वसूली जा रही है। मुझे लगता है कि तिवारी अच्छी तरह जानते हैं कि अगर मोदी की हैसियत पांच रूपये टिकट की है तो राहुल को तो 50 रुपये देकर जनता को बुलाना होगा। बहरहाल मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता, लेकिन ये जरूर कहूंगा कि सिर्फ राजनेताओं को नहीं मीडिया को भी ये स्वीकार करना होगा कि आज मोदी देश में सबसे लोकप्रिय नेता हैं, जिन्हें लोग पूरे मन से सुनते तो हैं।


हफ्ते भर से इलेक्ट्रानिक मीडिया में पिल्ला यानि कुत्ते के बच्चे को लेकर बहस छिड़ी हुई है। अच्छा ऐसा नहीं है कि ये बहस सिर्फ बुद्दू बक्से पर हो रही है। बल्कि अखबारों में भी संपादकीय पेज पर तमाम बड़े-बड़े पत्रकार पन्ना काला किए पड़े हैं। दरअसल हुआ ये कि एक पत्रकार ने गुजरात के मुख्यमंत्री से पूछा इतना बड़ा हादसा हुआ क्या आपको दुख नहीं हुआ ? मोदी ने जवाब दिया कि मैं भी एक इंसान हूं, आप अगर कार में पीछे बैठे हों और कार के नीचे एक पिल्ला भी आ जाता है तो हम ड्राइवर से कहते हैं कि गाड़ी ठीक से चलाओ भाई। कहने का मतलब आदमी जब एक जानवर के मारे जाने से दुखी हो जाता है तो वो तो इंसान थे। अब मीडिया ने मोदी के बयान से भी   शब्द निकाल दिया और शोर मचाने लगी  कि मोदी ने मुलसमानों की तुलना पिल्ले से की। हैरानी तब हुई कि पांच मिनट में ही कांग्रेस के एक दो नहीं कई नेता इसी शब्द को दुहराने लगे कि मोदी ने मुसलमानों को कुत्ता कहा। दिन में ये बात शुरू हुई और शाम को टीवी चैनलों पर ये बहस का मुद्दा बन गया।

इस घटना के दो दिन बाद मीडिया ने दूसरा तमाशा खड़ा कर दिया। पुणे में एक जनसभा में मोदी ने भ्रष्टाचार पर चर्चा के दौरान कहाकि जब केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार पर चोट किया जाता है तो वह  सेक्यूलिज्म का बुर्का  ओढ़ लेती है। मीडिया ने मूल विषय के बजाए इस मुद्दे को साम्प्रदायिकता से जोड़ दिया और शाम को कुछ नेता और रिटायर्ड पत्रकार जिन्हें इलेक्ट्रानिक मीडिया वरिष्ठ पत्रकार कहती है, उनके साथ बहस शुरू हो गई। कई बार सोचता हूं कि मीडिया को आखिर क्या होता जा रहा है। मेरा मानना है कि अगर किसी मुद्दे को गलत ढंग से राजनेता पेश कर रहे हैं तो मीडिया को इसकी अगुवाई करके उस मामले में निष्पक्ष राय रखनी चाहिए और कोशिश होनी चाहिए कि मुद्दा भटकने ना पाए।

एक उदाहरण देता हूं। बिहार में मिड डे मील का भोजन करने से छपरा में 23 बच्चों की मौत हो गई। जिस दिन ये हादसा हुआ उसी दिन जेडीयू के नेताओं ने आरोप लगाया कि खाने में जहर मिलाया गया और ये काम एक खास राजनैतिक दल की ओर से किया गया। हालाकि जेडीयू ने पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा राष्ट्रीय जनता दय यानि लालू यादव की पार्टी पर था। मैं एक सवाल पूछना चाहता हूं कि क्या देश की राजनीति में इतनी गिरावट आ चुकी है कि किसी सरकार को बदनाम करने के लिए विपक्षी दल इस स्तर पर आ जाएंगे कि वो खाने में जहर मिलाकर स्कूली बच्चों को मरवा देंगे ? मैं लालू यादव का बिल्कुल समर्थक नहीं हू, लेकिन मैं इस मामले में उनके साथ खड़ा हूं। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि कम से कम राजनीतिक विरोध का स्तर अभी बिहार ही नहीं देश के किसी कोने में इस कदर नहीं गिरा है। मुझे लगता है कि यहां मीडिया को सख्त लहजे में इस बात पर कड़ा ऐतराज जताना चाहिए था, लेकिन मीडिया ने लीडरशिप नहीं ली और दो कौड़ी के नेताओं के साथ इनकी, उनकी धुन में राग मिलाती रही।

हालत ये हो गई है कि सोशल साइट पर मीडिया का मजाक बनाया जा रहा है। आप देखिए कैसे कैसे जोक्स मीडिया को लेकर सोसल साइट पर छाए हुए हैं।

नरेन्द्र मोदी. कुत्ते का बच्चा भी अगर मेरी गाड़ी के नीचे आ जाए तो मुझे दुख होगा।
मीडिया. BREKING NEWS मोदी ने दंगे में मारे  गए लोगों को कुत्ते का बच्चा कहा।

एक और

रिपोर्टर मोदी से, सर क्या आप चावल खाते हैं।
मोदी . नहीं मैं गेहूं की रोटी ज्यादा पसंद करता हूं।
मीडिया . BREKING NEWS मोदी को चावल पसंद नहीं, जो दक्षिण भारतीयों का अपमान है। क्योंकि दक्षिण में ज्यादातर लोग चावल से ही बने व्यंजन पसंद करते हैं। इतना ही नहीं सोशल साइट पर चैनल का नाम भले ना हो, लेकिन आम आदमी मीडिया को लेकर सोचता क्या है, ये तो जरूर साफ है। मीडिया के रिपोर्ट की नकल की जा रही है।

मैं फिर कहता हूं कि अभी समय है, मीडिया को अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। उसे सच और झूठ का अंतर कर खुद आगे बढ़कर लीडरशिप की भूमिका निभानी होगी। दो कौड़ी के नेताओं को लेकर स्टूडियो में बहस करने से कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है। हैरानी इस बात पर होती है कि जब दिल्ली में राष्ट्रीय मुद्दे पर बहस होती है तो कांग्रेस जैसी पार्टी से कोई बड़ा नेता बहस में शामिल नहीं होता, औपचारिका पूरी करने के लिए चैनल वालों को लखनऊ से कभी अखिलेश प्रताप सिंह या फिर रीता बहुगुणा को बैठाना पड़ जाता है। बताइये मुद्दा बिहार का हो और कांग्रेस जैसी पार्टी से लखनऊ से एक नेता बैठा हो, ऐसी बहस का क्या मतलब है ?  इसीलिए कहता हूं ..


वतन की फिक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है,
तेरी बरबादियों के मशवरे हैं आसमानों में।
ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तां वालों,
तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में।






36 comments:

  1. इस देश का अब क्या होगा..भगवान जाने..बढिया सटीक ,,

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  2. महेंद्र जी ...तो इस मीडिया को कौन सुधारेगा...ये काम कौन करेगा ??? है क्या किसी के बस में ?
    हर सवाल का जबाब हम सब के भीरत है ...पर आगे कोई नहीं आएगा ...पहला कदम कोई नहीं बढ़ाएगा ???

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  3. वास्तव में मीडिया अपनी निरपेक्ष रिपोर्टिंग के उद्येश्य से भटक गया है .टी आर पि के चक्कर में हर साधारण खबर को सनसनीखेज बनाना आदत बन गयी है
    latest post क्या अर्पण करूँ !
    latest post सुख -दुःख

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  4. महेन्द्र जी ,कैसे हैं आप ?
    आज आप अपनों पे बरसे .और खुल कर बरसे ...जो कहा..वो एक दम सही कहा..मेरा एक आम आदमी का पूरा समर्थन आपके साथ है !
    काश! आप की बिरादरी वाले भी आपकी पीढ पहचाने !
    शुभकामनायें!

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    1. सर नमस्ते,
      मैं बिल्कुल ठीक हूं। बस कभी कभी अपने गिरेंबा में झांक लेता हूं।

      आभार

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अमर शहीद मंगल पाण्डेय जी की 186 वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. kash ke duniya ko vahi dikhaya jaye jo sach hai .to shayad apne desh ji adhi samasya hi sulajh jaye
    rachana

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  7. आज राजनीति यही रह गयी है कि किसी की भी बात को तोड़ मरोड़ कर पेश किया जाए .... सटीक और सार्थक पोस्ट

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  8. मीडिया अपनी निरपेक्ष रिपोर्टिंग के उद्येश्य से भटक गया है,मीडिया को हर साधारण खबर को सनसनीखेज बनाकर टीआरपी बढ़ाने की आदत पड गयी है...

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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    1. हां, ये बात तो है, मैं भी सहमत हूं
      आभार

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  9. स्टिंग ओप्रेसोन में मिडिया सफल रही थी... मगर मोदी प्रकंरन ...पर कुछ विशेष हाला हो रहा है

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  10. इस देश में सच,सच्चाई,सार्थकता,सदाचार जैसी कोई चीज नहीं है
    अगर कोई चीज है, तो वह है, मुह्बाजी,लफ्फबाजी
    मीडिया मुह्बाजी का व्यापारिक केंद्र है
    जिस देश में स्वयं की कोई भाषा न हो वहां उलजलूल बातें करना अपराध नहीं होता
    भाई जी- एक बात तो है, आप वर्तमान के सच को बखूबी उजागर करतें हैं,
    साधुवाद

    आग्रह है
    केक्ट्स में तभी तो खिलेंगे--------

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (20-07-2013) को विचलित व्यथित मन से कैसे खोलूँ द्वार पर "मयंक का कोना" में भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  12. मीडिया को मसाला चाहिए घंटों उसपर बात होते रहे......
    तील का ताड़ करते रहे... अपने उत्तर दायित्व से भटक गयी है. सार्थक पोस्ट .

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  13. बिल्कुल सही आकलन किया है आपने

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  14. समसामायिक पोस्ट

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  15. महेन्द्र जी , मुझे नहीं लगता कि मीडिया इतना नासमझ है कि वो बातों को ठीक से समझ नहीं पा रहा है बल्कि मुझे लगता अंदरखाने मीडिया दूसरा खेल खेल रहा है !

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    1. कुछ हद तक आपकी बात भी सही है
      आभार

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  16. आज की परिस्थितियों पर यह लेख बहुत ही सटीक लिखा है.
    मीडिया जानती है कि उसका प्रभाव कितना है शायद उसी को पूरा भुनाने की कोशिश में लगी हुई है.
    वतन की फिक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है,
    तेरी बरबादियों के मशवरे हैं आसमानों में।
    आप की इन पंक्तियों को भी अनदेखा कर दिया जाएगा तो अंजाम बुरा ही होने वाला है.
    इतिहास में शायद यह काल भारतीय राजनीती के नैतिक पतन का उल्लेखनीय काल माना जाएगा.

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